Vikrant Shekhawat : Nov 10, 2021, 03:04 PM
नई दिल्ली: चारधाम के लिए सड़क की चौड़ाई बढ़ाने के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि देश की सुरक्षा को प्राथमिकता देना जरूरी है। शीर्ष न्यायालय ने हाल के दिनों में चीनी सीमा पर टकराव की घटनाओं का अप्रत्यक्ष हवाला देते हुए कहा कि रक्षा से जुड़ी चिंताओं को पर्यावरण के आधार पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।भारतीय सैनिकों को 1962 के हालात में नहीं देखना चाहते: न्यायमूर्ति चंद्रचूड़न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि हम नहीं चाहते कि भारतीय सैनिक 1962 के हालात में हों, लेकिन रक्षा और पर्यावरण दोनों की जरूरतें संतुलित होनी चाहिए। अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार ने कहा है कि वह चीनी सीमा तक सैन्य उपकरण, साजो-सामान ले जाने और आवाजाही के लिए यह 900 किलोमीटर लंबी सड़क बना रही है। ऐसे में हम कुछ नहीं कर सकते, यदि यह सड़क पर्यटन के लिए होती तो हम इस पर कड़े पर्यावरणीय प्रतिबंध लगाते।चीन हेलीपैड-इमारतें बना रहा, सड़क बनाना जरूरी: केंद्रकेंद्र ने सड़क चौड़ी करने की मांग करते हुए कहा कि चीन द्वारा दूसरी तरफ जबरदस्त निर्माण किया गया है। चीन दूसरी तरफ हेलीपैड, इमारतें और गांव बना रहा है। ऐसे में भारत की ओर सड़क बनाना जरूरी है। इसलिए संरक्षा के हिसाब से सड़क की चौड़ाई 10 मीटर की जानी चाहिए।सेना से सड़क चौड़ी करने को कभी नहीं कहा: याचीयाचिकाकर्ता एनजीओ की ओर से एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि सेना ने कभी नहीं कहा कि हम सड़कों को चौड़ा करना चाहते हैं। राजनीतिक सत्ता में कोई उच्च व्यक्ति चार धाम यात्रा पर राजमार्ग चाहता था। ऐसी स्थिति में सेना एक अनिच्छुक भागीदार बन गई। इस साल विस्तारित मानूसन के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन से पहाड़ों में क्षति हुई है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ सबसे नए हैं और यह सड़कों के निर्माण के लिए कतई उपयुक्त नहीं हैं। 2013 में केदारनाथ में बादल फटा था, अदालत ने इस पर संज्ञान लिया था और अलकनंदा और भागीरथी पर बन रही 24 जलविद्युत परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी।इस पर अदालत ने कहा कि दूसरा देश तो लगातार निर्माण कर रहा है। क्या उन्हें पर्यावरण की चिंता नहीं है क्यों वहां की न्यायपालिका ने उन्हें नहीं रोका है। मामले की सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी।क्या अदालत रक्षा जरूरतों को नजरअंदाज कर सकती हैअदालत ने कहा कि लद्दाख के सबसे दुर्गम क्षेत्रों में सबसे बड़े बौद्ध मठ हैं। उन तक जाने वाली सड़कों का इस्तेमाल सेना के साथ आम नागरिक भी करते हैं। इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि इतनी ऊंचाई पर राष्ट्र की सुरक्षा दांव पर है। क्या संवैधानिक अदालत यह कह सकता है कि रक्षा आवश्यकताओं को विशेष रूप से हाल की घटनाओं को देखते हुए, प्राथमिकता नहीं देंगे। हम ग्लेशियरों के पिघलने के पहलू को महसूस करते हैं लेकिन यह बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं के कारण भी हो रहा है। क्या हम कह सकते हैं कि देश की सामरिक जरूरतों पर पर्यावरण की विजय होगी।