AMAR UJALA : Sep 14, 2020, 09:21 AM
वाशिंगटन के साथ जारी तनाव के बीच चीन ने अपनी सेना पर आई अमेरिकी रिपोर्ट की तीखी आलोचना की है। चीनी रक्षा मंत्रालय ने रविवार को एक बयान जारी कर अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा करार दिया है। अमेरिका पर पलटवार करते हुए चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल वू कियान ने कहा कि रिपोर्ट पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और 140 करोड़ लोगों के बीच संबंधों की एक गलत तस्वीर पेश करती है।बीते वर्षों के घटनाक्रम पर नजर डालें तो पता चलता है कि क्षेत्रीय अशांति के लिए पूरी तरह अमेरिका जिम्मेदार है। वह न केवल अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का उल्लंघन करता है, बल्कि वाशिंगटन की ओर से उठाए गए कदम विश्व शांति को नुकसान पहुंचाते हैं। चीनी रक्षा मंत्रालय ने कहा, सीरिया लीबिया और इराक में अमेरिकी कार्रवाई के चलते बीते दो दशकों के दौरान 8 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई। जबकि लाखों अन्य लोगों को विस्थापन के लिए मजबूर होना पड़ा।खुद के अंदर झांकने बजाय अमेरिका ने चीन के संबंध में एक तथाकथित रिपोर्ट जारी, जिसमें आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई हैं। हम अमेरिका से चीन के सैन्य निर्माण को निष्पक्ष तरीके से देखने और झूठे बयान व रिपोर्टो पर रोक लगाने का आह्वान करते हैं।
अमेरिका ने 2 सितंबर को जारी थी रिपोर्टअमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने चीन की सैन्य महत्वाकांक्षा को लेकर 2 सितंबर को संसद में एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विस्तारवादी सोच और महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा का जिक्र था।
रिपोर्ट में कहा गया था कि चीन के बढ़ते प्रभाव से न केवल अमेरिका के राष्ट्रीय हित प्रभावित होंगे, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा पैदा होगा। रिपोर्ट में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार, टेक्नोलॉजी, ताइवान, मानवाधिकार और दक्षिण चीन सागर के मुद्दों को लेकर टकराव का भी उल्लेख था।
अमेरिका ने 2 सितंबर को जारी थी रिपोर्टअमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने चीन की सैन्य महत्वाकांक्षा को लेकर 2 सितंबर को संसद में एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विस्तारवादी सोच और महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा का जिक्र था।
रिपोर्ट में कहा गया था कि चीन के बढ़ते प्रभाव से न केवल अमेरिका के राष्ट्रीय हित प्रभावित होंगे, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा पैदा होगा। रिपोर्ट में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार, टेक्नोलॉजी, ताइवान, मानवाधिकार और दक्षिण चीन सागर के मुद्दों को लेकर टकराव का भी उल्लेख था।