Shyam Benegal: भारतीय सिनेमा के इतिहास में श्याम बेनेगल का नाम हमेशा अद्वितीय रहेगा। उनकी फिल्मों ने न केवल दर्शकों का मनोरंजन किया, बल्कि समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया। अपनी कहानियों के माध्यम से वो हमेशा समाज के असल मुद्दों को उठाते रहे। 90 वर्षीय श्याम बेनेगल ने 23 दिसंबर 2024 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। शाम 6.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु से भारतीय सिनेमा में एक युग का अंत हो गया।
गुरु दत्त से जुड़ा था गहरा रिश्ता
14 दिसंबर 1934 को हैदराबाद में जन्मे श्याम बेनेगल, प्रसिद्ध अभिनेता और फिल्मकार गुरु दत्त के कजिन भाई थे। बचपन से ही उनका रुझान सिनेमा की तरफ था। उनके इस जुनून ने उन्हें भारतीय सिनेमा के महानतम निर्देशकों की श्रेणी में ला खड़ा किया। बेनेगल को 1976 में पद्म श्री, 1991 में पद्म भूषण और 2005 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
फिल्मी सफर की शुरुआत
श्याम बेनेगल के फिल्मी करियर की शुरुआत 1974 में आई फिल्म
‘अंकुर’ से हुई। इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा में यथार्थवादी कहानियों की शुरुआत की। इसके बाद 1975 में आई
‘निशांत’ ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफलता पाई, बल्कि इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान दिलाई। कान फिल्म समारोह में पाल्मे डी’ओर के लिए नामांकित होना इस फिल्म की बड़ी उपलब्धि रही।बेनेगल ने
‘मंथन’,
‘भूमिका’,
‘जुबैदा’,
‘जुनून’, और
‘सरदारी बेगम’ जैसी नायाब फिल्में बनाई। उनकी फिल्में केवल मनोरंजन का साधन नहीं थीं, बल्कि वे समाज के महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करने का माध्यम भी थीं।
कला और कलाकारों का संगम
श्याम बेनेगल की फिल्मों ने नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल और गिरीश कर्नाड जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों को पहचान दिलाई। उनकी फिल्मों में इन कलाकारों का अभिनय और बेनेगल का निर्देशन, दोनों ने मिलकर जादू पैदा किया।
आखिरी दिनों तक सक्रियता
श्याम बेनेगल, किडनी से जुड़ी समस्याओं से जूझने के बावजूद, अपने काम से कभी दूर नहीं हुए। अपनी आखिरी सांस तक उन्होंने नई परियोजनाओं पर काम जारी रखा। हाल ही में उनका 90वां जन्मदिन भी बड़े धूमधाम से मनाया गया था। शबाना आजमी और नसीरुद्दीन शाह के साथ उनकी तस्वीरों ने फिल्म जगत के इस महानायक की जिंदगी के खास पलों को साझा किया।
एक युग का अंत
श्याम बेनेगल का निधन केवल एक व्यक्ति का जाना नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा के एक महत्वपूर्ण अध्याय का अंत है। उनकी फिल्मों और विचारधारा ने भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।