देश / कई राज्यों में 'ब्लैक फंगल इन्फेक्शन' के 500 से अधिक मामले मिले हैं: एम्स प्रमुख

एम्स प्रमुख डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि कई राज्यों में म्यूकरमाइकोसिस या ब्लैक फंगल इन्फेक्शन के 500 से अधिक मामले मिले हैं। उन्होंने कहा, "स्टेरॉयड का दुरुपयोग इस संक्रमण का प्रमुख कारण है...कोविड-19 संक्रमित, मधुमेह और स्टेरॉयड लेने वाले मरीज़ों में इसकी संभावना अधिक है।" एम्स में इस संक्रमण के 23 मरीज़ों का इलाज हो रहा है।

Vikrant Shekhawat : May 16, 2021, 07:33 AM
नई दिल्ली: कोरोना कहर के बीच फंगल इन्फेक्शन के मामले में सामने आते जा रहे हैं। फंगल इंफेक्शन कोरोना मरीजों में ज्यादा पाया जा रहा है। एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि फंगस इन्फेक्शन पहले बहुत रेयर था। यह उन लोगों में दिखता था जिनका शुगर बहुत ज्यादा हो, डायबिटीज अनकंट्रोल है, इम्युनिटी बहुत कम है या कैंसर के ऐसे पेशंट्स हैं जो कीमोथैरपी पर हैं। लेकिन आज इसके ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। इसके साथ ही डॉ गुलेरिया ने कहा कि स्टेरॉयड्स का ज्यादा इस्तेमाल करने से ब्लैक फंगल के मामले आ रहे हैं।

फंगल इंफेक्शन के तेजी से बढ़े मामले

डॉ गुलेरिया ने कहा कि आम लोगों में आम तौर पर फंगल इंफेक्शन नहीं पाया जाता था लेकिन कोरोना की वजह से इसके केस काफी आ रहे हैं। एम्स में ही फंगल इन्फेक्शन के 23 मामले हैं। इनमें से 20 अभी भी कोरोना पॉजिटिव हैं और 3 कोरोना नेगेटिव हैं। कई राज्य ऐसे हैं जहां फंगल इन्फेक्शन से 400-500 केस हैं। उन्होंने बताया कि फंगल इंफेक्शन आंख, नाक, गला, फेफड़े पर हो सकता है। इससे आंखों की रोशनी, नाक से ब्लड और अगर फेफड़े में पहुंच गया तो सीने में दर्द फीवर जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

स्टेरॉयड्स से ज्यादा खतरा

डॉ गुलेरिया ने कहा कि स्टेरॉयड्स का दुरुपयोग फंगल इन्फेक्शन के प्रमुख कारणों में है। डायबिटीज के साथ कोरोना इन्फेक्शन वालों को अगर स्टेरॉयड दिया जा रहा है तो फंगल इन्फेक्शन का खतरा ज्यादा रहेगा। इसलिए स्टेरॉयड का मिसयूज कम करना होगा। माइल्ड इन्फेक्शन वाले मरीजों और ऐसे लोगों को जिनका ऑक्सिजन लेवल कम नहीं है, उन्हें स्टेरॉयड देने से फायदा कम नुकसान ज्यादा है।

एक और डॉक्टर ने दोहराई बात

एलएनजेपी अस्पताल के एमडी डॉ सुरेश कुमार ने भी डॉ रणदीप गुलेरिया की बात को दोहराया। उन्होंने कहा कि स्टेरॉयड का उपयोग कम किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि ऑक्सिजन लेवल 90 से अधिक है और मरीज को स्टेरॉड्स दिया गया है तो मरीज में ब्लैक फंगस का खतरा हो सकता है। ब्लैंक फंगस में तुरंत ध्यान देना चाहिए। चेहरे के सीटी स्कैन से इस संक्रमण का पता लगेगा। इलाज के लिए एंटिफंगल दवा एम्फोटेरिसिन का इस्तेमाल किया जा रहा है

कहां-कहां अटैक करता है ब्लैक फंगस?

विशेषज्ञों ने बताया कि कोविड के बाद ब्लैक फंगस या म्यूकरमाइकोसिस लोगों को घेर रहा है। इस रोग में काले रंग की फंगस नाक, साइनस, आंख और दिमाग में फैलकर उन्हें नष्ट कर रही है और मरीजों की जान पर बन रही है।

किसे हो सकता है ब्लैक फंगस?

- कोविड के दौरान जिन्हें स्टेरॉयड्स- मसलन डेक्सामिथाजोन, मिथाइल, प्रेडनिसोलोन आदि दी गई हों।

- कोविड मरीज को ऑक्सिजन सपॉर्ट पर या आईसीयू में रखना पड़ा हो।

- कैंसर, किडनी, ट्रांसप्लांट आदि की दवाएं चल रही हों।

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ब्लैक फंगस के लक्षण

- बुखार आ रहा हो, सर दर्द हो रहा हो, खांसी हो या सांस फूल रही हो।

- नाक बंद हो। नाक में म्यूकस के साथ खून आ रहा हो।

- आंख में दर्द हो। आंख फूल जाए, एक चीज दो दिख रही हो या दिखना बंद हो जाए।

- चेहरे में एक तरफ दर्द हो, सूजन हो या सुन्न हो।

- दांत में दर्द हो, दांत हिलने लगें, चबाने में दांत दर्द करे।

- उल्टी में या खांसने पर बलगम में खून आए।

क्या करें

ब्लैक फंगस के कोई लक्षण नजर आए तो तत्काल सरकारी अस्पताल में या किसी अन्य विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखाएं। नाक, कान, गले, आंख, मेडिसिन, चेस्ट या प्लास्टिक सर्जन विशेषज्ञ को तुरंत दिखाएं ताकि जल्दी इलाज शुरू हो सके।