News18 : Aug 24, 2020, 07:43 AM
काठमांडू। सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (NCP) के अंदर मतभेद को दूर करने के लिये गठित छह सदस्यीय समिति ने सुझाव दिया है कि प्रधानमंत्री के। पी। शर्मा ओली (KP Sharma Oli) को अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करना चाहिए। साथ ही, इसके कार्यकारी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' को पार्टी के कामकाज में पूर्ण कार्यकारी शक्तियों का उपयोग करने की अनुमति दी जाए। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने रविवार को यह जानकारी दी। कार्यबल का गठन ओली और प्रचंड ने 15 अगस्त को किया था और बाद में पार्टी के शक्तिशाली केंद्रीय सचिवालय ने 17 अगस्त को इसे मंजूरी दी थी। कार्यबल का नेतृत्व पार्टी महासचिव विष्णु पौडियाल कर रहे थे। समिति ने शनिवार को ओली और प्रचंड को अपनी रिपोर्ट सौंपी। समिति में पार्टी की स्थायी समिति के सदस्य शंकर पोखरेल, जनार्दन शर्मा, भीम रावल, सुरेंद्र पांडे और पंफा भुसाल भी शामिल थे।
हालांकि, रिपोर्ट का विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन यह उम्मीद जताई जा रही है कि यह पार्टी के अंदर आये दरार को पाटेगी। प्रचंड और वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल द्वारा प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे की मांग करने के बाद यह दरार और चौड़ी हो गई थी। एनसीपी के वरिष्ठ नेता एवं स्थायी समिति के सदस्य गणेश शाह के मुताबिक समिति ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि प्रधानमंत्री ओली को पूरे पांच साल तक सत्ता में बने रहना चाहिए, जबकि प्रचंड को पार्टी के कामकाज पर पूरी कार्यकारी शक्तियां मिलनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि ओली जब ढाई साल पहले 2018 में प्रधानमंत्री बने थे तब उनके और प्रचंड के बीच यह सहमति बनी थी कि वे प्रधानमंत्री का पद बारी-बारी से साझा करेंगे। शाह ने कहा कि समिति ने सुझाव दिया है कि पार्टी के शीर्ष नेताओं को एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत का पालन करना होगा और दोनों शीर्ष नेताओं के बीच समन्वय एवं सहयोग को बढ़ाना होगा। हालांकि, इस रिपोर्ट को स्थायी समिति की बैठक से अनुमोदित कराने की जरूरत है। यह बैठक इस हफ्ते बुलाये जाने की संभावना है।पार्टी के अंदर एकजुटतासमिति के सदस्य शंकर पोखरेल ने कहा कि इस वक्त पार्टी के अंदर एकजुटता बनाये रखने के लिये कोई अन्य रास्ता नहीं है। शाह ने कहा कि हालांकि यह देखना होगा कि समिति के सुझावों को कैसे लागू किया जाता है। पार्टी के अंदर मौजूद लोगों के मुताबिक प्रचंड के साथ शक्ति संतुलन के लिये समिति की रिपोर्ट को स्थायी समिति का अनुमोदन मिलने के शीघ्र बाद प्रधानमंत्री ओली द्वारा मंत्रिमंडल में फेरबदल करने की संभावना है। उल्लेखनीय है कि ओली और प्रचंड ने आपसी मतभेदों को दूर करने के लिये कई बैठकें की लेकिन वे नाकाम रहीं। दरअसल, प्रधानमंत्री ने एक व्यक्ति एक पद के सिद्धाांत को स्वीकार नहीं किया और बातचीत नाकाम हो गई। ओली ने प्रधानमंत्री और पार्टी के सह-अध्यक्ष, दोनों ही पदों को छोड़ने से इनकार कर दिया है। हाल ही में ओली के भारत विरोधी टिप्पणी के बाद पार्टी में अंदरूनी कलह बढ़ गया। प्रचंड सहित शीर्ष नेताओं ने ओली के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की मांग की थी। वे ओली की कामकाज की निरंकुश शैली के खिलाफ हैं।
हालांकि, रिपोर्ट का विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन यह उम्मीद जताई जा रही है कि यह पार्टी के अंदर आये दरार को पाटेगी। प्रचंड और वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल द्वारा प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे की मांग करने के बाद यह दरार और चौड़ी हो गई थी। एनसीपी के वरिष्ठ नेता एवं स्थायी समिति के सदस्य गणेश शाह के मुताबिक समिति ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि प्रधानमंत्री ओली को पूरे पांच साल तक सत्ता में बने रहना चाहिए, जबकि प्रचंड को पार्टी के कामकाज पर पूरी कार्यकारी शक्तियां मिलनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि ओली जब ढाई साल पहले 2018 में प्रधानमंत्री बने थे तब उनके और प्रचंड के बीच यह सहमति बनी थी कि वे प्रधानमंत्री का पद बारी-बारी से साझा करेंगे। शाह ने कहा कि समिति ने सुझाव दिया है कि पार्टी के शीर्ष नेताओं को एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत का पालन करना होगा और दोनों शीर्ष नेताओं के बीच समन्वय एवं सहयोग को बढ़ाना होगा। हालांकि, इस रिपोर्ट को स्थायी समिति की बैठक से अनुमोदित कराने की जरूरत है। यह बैठक इस हफ्ते बुलाये जाने की संभावना है।पार्टी के अंदर एकजुटतासमिति के सदस्य शंकर पोखरेल ने कहा कि इस वक्त पार्टी के अंदर एकजुटता बनाये रखने के लिये कोई अन्य रास्ता नहीं है। शाह ने कहा कि हालांकि यह देखना होगा कि समिति के सुझावों को कैसे लागू किया जाता है। पार्टी के अंदर मौजूद लोगों के मुताबिक प्रचंड के साथ शक्ति संतुलन के लिये समिति की रिपोर्ट को स्थायी समिति का अनुमोदन मिलने के शीघ्र बाद प्रधानमंत्री ओली द्वारा मंत्रिमंडल में फेरबदल करने की संभावना है। उल्लेखनीय है कि ओली और प्रचंड ने आपसी मतभेदों को दूर करने के लिये कई बैठकें की लेकिन वे नाकाम रहीं। दरअसल, प्रधानमंत्री ने एक व्यक्ति एक पद के सिद्धाांत को स्वीकार नहीं किया और बातचीत नाकाम हो गई। ओली ने प्रधानमंत्री और पार्टी के सह-अध्यक्ष, दोनों ही पदों को छोड़ने से इनकार कर दिया है। हाल ही में ओली के भारत विरोधी टिप्पणी के बाद पार्टी में अंदरूनी कलह बढ़ गया। प्रचंड सहित शीर्ष नेताओं ने ओली के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की मांग की थी। वे ओली की कामकाज की निरंकुश शैली के खिलाफ हैं।