Reserve Bank Of India / देश के इन तीन बैंकों को RBI ने लेकर कही ये खास बात, जारी की डी-एसआईबी लिस्ट, जानें डिटेल

भारतीय रिजर्व बैंक ने भारतीय स्टेट बैंक, एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक को फिर से घरेलू प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंक (डी-एसआईबी) नामित किया है। ये तीनों बैंक 2024 में भी डी-एसआईबी बने रहेंगे, जिसके लिए उन्हें अतिरिक्त पूंजी संरक्षण बफर बनाए रखना होगा।

Vikrant Shekhawat : Nov 13, 2024, 02:20 PM
Reserve Bank Of India: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने तीन प्रमुख बैंकों—भारतीय स्टेट बैंक (SBI), एचडीएफसी बैंक, और आईसीआईसीआई बैंक—को एक बार फिर से घरेलू प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंक (D-SIB) के रूप में नामित किया है। केंद्रीय बैंक की इस घोषणा का मतलब यह है कि 2024 में भी ये तीन बैंक भारत के वित्तीय ढांचे के लिए महत्वपूर्ण बने रहेंगे। इन बैंकों को डी-एसआईबी में रखने का फैसला उनकी वित्तीय मजबूती और देश की बैंकिंग प्रणाली के स्थायित्व में उनके योगदान को दर्शाता है। डी-एसआईबी की इस सूची में शामिल होने के लिए बैंकों को अतिरिक्त पूंजी बफर बनाए रखना अनिवार्य होता है, जिससे ये बैंक किसी भी वित्तीय संकट के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने में सहायक सिद्ध हो सकें।

एसबीआई, एचडीएफसी और आईसीआईसीआई बैंक की श्रेणियां

आरबीआई की डी-एसआईबी सूची में एसबीआई, एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक को अलग-अलग बकेट में रखा गया है, जो उनकी प्रणालीगत महत्व के आधार पर वर्गीकृत हैं।

  1. भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई): देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई को बकेट 4 में रखा गया है। इसके अनुसार, एसबीआई को अन्य बैंकों के मुकाबले अधिक पूंजी बनाए रखनी होगी। इस बकेट के तहत, एसबीआई को 0.80% का अतिरिक्त कॉमन इक्विटी टियर 1 (CET1) बफर बनाए रखने की आवश्यकता होगी।

  2. एचडीएफसी बैंक: निजी क्षेत्र में अग्रणी एचडीएफसी बैंक को बकेट 2 में शामिल किया गया है। इसके लिए एचडीएफसी बैंक को 0.40% का अतिरिक्त CET1 बनाए रखना होगा।

  3. आईसीआईसीआई बैंक: निजी क्षेत्र के दूसरे बड़े ऋणदाता, आईसीआईसीआई बैंक को बकेट 1 में वर्गीकृत किया गया है। इसके लिए इस बैंक को 0.20% का अतिरिक्त CET1 बफर रखना होगा।

डी-एसआईबी अधिभार का प्रभाव और समयसीमा

भारतीय रिजर्व बैंक ने स्पष्ट किया है कि एसबीआई और एचडीएफसी बैंक पर उच्च डी-एसआईबी अधिभार का नया दर 1 अप्रैल, 2025 से लागू होगा। इस बीच, 31 मार्च, 2025 तक इन दोनों बैंकों पर अपेक्षाकृत कम डी-एसआईबी अधिभार लागू रहेगा। इसके तहत, एसबीआई को 0.60% और एचडीएफसी बैंक को 0.20% का अधिभार बनाए रखना होगा।

डी-एसआईबी की रूपरेखा और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

डी-एसआईबी की रूपरेखा 2014 में आरबीआई द्वारा पेश की गई थी, जिसका उद्देश्य उन बैंकों की पहचान करना था जो देश की वित्तीय स्थिरता के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। इसके तहत 2015 और 2016 में एसबीआई और आईसीआईसीआई बैंक को पहली बार डी-एसआईबी टैग दिया गया था, और इसके बाद 2017 में एचडीएफसी बैंक को भी इस सूची में शामिल किया गया। तब से ये तीनों बैंक लगातार इस सूची में बने हुए हैं और भारतीय वित्तीय तंत्र के लिए महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

डी-एसआईबी की सूची का महत्व

डी-एसआईबी टैग मिलने का अर्थ यह है कि ये बैंक वित्तीय स्थिरता के लिए इतने महत्वपूर्ण हैं कि इन पर संकट का सीधा प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। इस स्थिति को देखते हुए, इन्हें अतिरिक्त पूंजी बनाए रखने की जरूरत होती है, ताकि किसी भी तरह के वित्तीय जोखिम का प्रभाव बैंकिंग प्रणाली पर कम हो सके।

डी-एसआईबी के रूप में सूचीबद्ध इन बैंकों को एक विशेष सुरक्षा कवच प्रदान किया जाता है। डी-एसआईबी बैंकों का अतिरिक्त पूंजी बफर न केवल उनके वित्तीय स्थायित्व को मजबूत करता है बल्कि ग्राहकों में भी भरोसा बनाए रखता है। इसका लाभ पूरे बैंकिंग क्षेत्र को मिलता है और डी-एसआईबी बैंकों को अन्य बैंकों के मुकाबले विशेष अधिभार और सख्त मानदंडों का पालन करना होता है।

निष्कर्ष

भारतीय रिजर्व बैंक का यह निर्णय भारतीय बैंकिंग प्रणाली की मजबूती के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। एसबीआई, एचडीएफसी और आईसीआईसीआई बैंक का डी-एसआईबी सूची में बने रहना दर्शाता है कि ये बैंक भारत की अर्थव्यवस्था में कितने महत्वपूर्ण हैं। इन बैंकों के पास उच्च पूंजी बफर होने से ये किसी भी वित्तीय संकट का सामना करने में सक्षम होंगे और भारतीय वित्तीय तंत्र को स्थिरता प्रदान करेंगे।