Dainik Bhaskar : May 23, 2019, 09:39 AM
चुरू में चार बार से लगातार जीतती आ रही भाजपा, इस बार मुकाबला दिलचस्पइन तीनों सीटों पर सैनिक परिवार और किसान करते आए हैं उम्मीदवारों की किस्मत का फैसलासीकर। लोकसभा चुनाव की मतगणना गुरुवार सुबह 8 बजे से शुरू हो गई है। सीकर से कांग्रेस ने सुभाष महरिया, तो भाजपा ने सुमेधानंद सारस्वत को मैदान में उतारा है। चूरू से रफीक मंडेला (कांग्रेस) और राहुल कांस्वा (भाजपा), झुंझुनू से श्रवण कुमार (कांग्रेस) और नरेंद्र खींचल (भाजपा) मैदान में हैं। सीकर। मोदी लहर में ढहा कांग्रेस का गढ़
1952 से हुए 16 लोकसभा चुनाव में से 7 बार कांग्रेस, 4 बार भाजपा ने जीत दर्ज की। सीकर में कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है। यहां से जनता दल, जनता पार्टी सेक्युलर, भारतीय लोकदल व अखिल भारतीय रामराज्य परिषद ने एक-एक बार जीत दर्ज की है। शेखावटी का जाट बहुल सीकर, प्रदेश में सैनिकों के जिले के नाम से भी जाना जाता है। जाट बहुल सीकर को सैनिकों का जिला भी कहा जाता है। सीकर में हमेशा कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है, लेकिन पिछले चुनाव में चली मोदी लहर में यहां भी कांग्रेस का गढ़ ढह गया और भाजपा के उम्मीदवार सुमेधानंद सरस्वती ने जीत दर्ज की। भाजपा के सुभाष महरिया को साल 1996 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 1998, 1999 व 2004 के चुनाव में महरिया ने जीत दर्ज की।
चूरू: 1999 से एक ही परिवार का कब्जा
1977 से हुए 11 चुनावों में भाजपा ने 5 और कांग्रेस ने केवल 3 बार यहां से जीत दर्ज की। पिछले 4 चुनाव यानी साल 1999 से यहां भाजपा ने लगातार जीत दर्ज की। 1999 से यहां एक ही परिवार का कब्जा है। 1999 से तीन बार राम सिंह कस्वां तो पिछले चुनाव में उनके बेटे राहुल कस्वां ने यहां से जीत दर्ज की। एक-एक बार भारतीय लोक दल, जनता पार्टी, जनता दल ने जीत दर्ज की। दौलत राम सारण भी यहां से 3 बार चुनाव जीत चुके हैं। कांग्रेस के नरेंद्र बुढानिया ने यहां से लगातार दो बार जीत दर्ज की है।
झुंझुनू: मोदी लहर में कांग्रेस को मिली थी हार
इस सीट पर 1952 से 1962 तक कांग्रेस ने लगातार जीत हासिल की थी। लेकिन, 1967, 1977 और 1980 में लगातार तीन चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। 1984 में कांग्रेस ने वापसी तो की, लेकिन 1989 में फिर से जनता दल के सामने हार गई। 1991 से इस सीट पर कांग्रेस का राज रहा और लगातार छह चुनावों में जीत हासिल की। 2014 की मोदी लहर में एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा। यह क्षेत्र जवान और किसान के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है। यहां रिटायर्ड व वर्तमान सैनिकों का आंकड़ा सवा लाख से ज्यादा है। प्रदेश के 1660 में से 460 से ज्यादा शहीद अकेले झुंझुनूं से हैं। इसलिए यहां जवानों के लिए राष्ट्रवाद और किसानों के लिए कर्जमाफी बड़ा मुद्दा है।
1952 से हुए 16 लोकसभा चुनाव में से 7 बार कांग्रेस, 4 बार भाजपा ने जीत दर्ज की। सीकर में कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है। यहां से जनता दल, जनता पार्टी सेक्युलर, भारतीय लोकदल व अखिल भारतीय रामराज्य परिषद ने एक-एक बार जीत दर्ज की है। शेखावटी का जाट बहुल सीकर, प्रदेश में सैनिकों के जिले के नाम से भी जाना जाता है। जाट बहुल सीकर को सैनिकों का जिला भी कहा जाता है। सीकर में हमेशा कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है, लेकिन पिछले चुनाव में चली मोदी लहर में यहां भी कांग्रेस का गढ़ ढह गया और भाजपा के उम्मीदवार सुमेधानंद सरस्वती ने जीत दर्ज की। भाजपा के सुभाष महरिया को साल 1996 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 1998, 1999 व 2004 के चुनाव में महरिया ने जीत दर्ज की।
चूरू: 1999 से एक ही परिवार का कब्जा
1977 से हुए 11 चुनावों में भाजपा ने 5 और कांग्रेस ने केवल 3 बार यहां से जीत दर्ज की। पिछले 4 चुनाव यानी साल 1999 से यहां भाजपा ने लगातार जीत दर्ज की। 1999 से यहां एक ही परिवार का कब्जा है। 1999 से तीन बार राम सिंह कस्वां तो पिछले चुनाव में उनके बेटे राहुल कस्वां ने यहां से जीत दर्ज की। एक-एक बार भारतीय लोक दल, जनता पार्टी, जनता दल ने जीत दर्ज की। दौलत राम सारण भी यहां से 3 बार चुनाव जीत चुके हैं। कांग्रेस के नरेंद्र बुढानिया ने यहां से लगातार दो बार जीत दर्ज की है।
झुंझुनू: मोदी लहर में कांग्रेस को मिली थी हार
इस सीट पर 1952 से 1962 तक कांग्रेस ने लगातार जीत हासिल की थी। लेकिन, 1967, 1977 और 1980 में लगातार तीन चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। 1984 में कांग्रेस ने वापसी तो की, लेकिन 1989 में फिर से जनता दल के सामने हार गई। 1991 से इस सीट पर कांग्रेस का राज रहा और लगातार छह चुनावों में जीत हासिल की। 2014 की मोदी लहर में एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा। यह क्षेत्र जवान और किसान के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है। यहां रिटायर्ड व वर्तमान सैनिकों का आंकड़ा सवा लाख से ज्यादा है। प्रदेश के 1660 में से 460 से ज्यादा शहीद अकेले झुंझुनूं से हैं। इसलिए यहां जवानों के लिए राष्ट्रवाद और किसानों के लिए कर्जमाफी बड़ा मुद्दा है।