देश / सूर्य की रोशनी से खुद ही नष्‍ट होगा ये नया प्‍लास्टिक, घटेगा नदियों और महासागरों का प्रदूषण

दुनियाभर के समंदरों और नदियों में प्‍लास्टिक कचरे व सिंथेटिक फाइबर के कारण होने वाले प्रदूषण को लेकर समय-समय पर चर्चा होती रही है। इससे ना सिर्फ महासागरों के पानी को नुकसान पहुंचता है बल्कि समुद्री जीवों की जिंदगी को भी खतरे की बातें होती रही हैं। वहीं, प्‍लास्टिक के कारण रिहायशी इलाकों में भी प्रदूषित पानी पीने की मजबूरी से संबंधित खबरें सामने आती रही हैं।

News18 : May 02, 2020, 04:45 PM
दिल्ली:  दुनियाभर के समंदरों (Ocean) और नदियों (Rivers) में प्‍लास्टिक कचरे व सिंथेटिक फाइबर के कारण होने वाले प्रदूषण (Pollution) को लेकर समय-समय पर चर्चा होती रही है। इससे ना सिर्फ महासागरों के पानी को नुकसान पहुंचता है बल्कि समुद्री जीवों की जिंदगी को भी खतरे की बातें होती रही हैं। वहीं, प्‍लास्टिक के कारण रिहायशी इलाकों में भी प्रदूषित पानी पीने की मजबूरी से संबंधित खबरें सामने आती रही हैं। कई देशों के वैज्ञानिक लगातार ऐसे प्‍लास्टिक (Plastic) की खोज में जुटे रहे, जो इस्‍तेमाल के बाद आसानी से नष्‍ट किया जा सके।

दरअसल, प्‍लास्टिक ना तो पानी में गलता है और न ही जमीन में दबाने से नष्‍ट होता है। वहीं, अगर उसे जलाया जाए तो जहरीले गैसें निकलकर वायु प्रदूषण करती हैं। इन सभी समस्‍याओं से निपटने के लिए अब अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऐसा पॉलिमर (Polymer) बना लिया है, जो अल्‍ट्रावायलेट रेडिएशन (UV Radiation) यानी सूर्य की रोशनी से खुद नष्‍ट हो जाएगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे दुनिया भर के समंदरों और नदियों में प्‍लास्टिक से फैलने वाले प्रदूषण पर रोक लगेगी।

लगातार बढ़ रहे प्‍लास्टिक की समस्‍या को खत्‍म करेगा ये पॉलिमर

कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में केमिस्‍ट्री व केमिकल बायोलॉजी के प्रोफेसर और नया पॉलिमर बनानो वाली टीम के प्रमुख डॉ। ब्रिस लिपिंस्‍की ने बताया कि इस नए प्‍लास्टिक से मछुआरों के इस्‍तेमाल किए जाने वाले बडे बडे जाल के साथ ही रस्सियां भी बनाई जा सकती हैं। ऐसे में अगर ये किसी वजह से समंदर में छूट जाते हैं तो ये खुद नष्‍ट हो जाएंगे। ये नया पॉलिमर हमारे आसपास के वातावरण में लगातार बढ़ रहे प्लास्टिक की समस्‍या को कम कर सकता है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, प्‍लास्टिक कचरा समंदर के पानी के साथ ही जल जीवों के लिए भी खतरनाक होते हैं। वे प्‍लास्टिक को खाकर मर जाते हैं और बाद में उन्‍हें सीफूड के तौर पर इंसान खा लेता है।

डॉ। ब्रिस लिपिंस्‍की ने कहा कि महासागरों में पाए जाने वाले कुल प्‍लास्टिक कचरे का करीब आधा हिस्‍सा क‍मर्शियल फिशिंग के कारण ही पहुंचता है। मछली पकडने के लिए बनाए जाने वाले जाल और मछलियां तीन तरह के पॉलिमर्स से बनाई जाती हैं। इनमें आइसोटैक्टि‍क पॉलिप्रोपिलीन, हाई-डेंसिटी पौलिएथिलीन और नायलोन-6 शामिल हैं। इन तीनों पॉलिमर्स में से एक भी पानी में खुद नष्‍ट नहीं होता है।


नया पॉलिमर बनाने में अमेरिकी वैज्ञानिकों को लगे 15 साल

डॉ। लिपिंस्‍की ने कहा कि हाल के वर्षों में बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए आसानी से नष्‍ट होने वाले प्‍लास्टिक की खोज पर काफी ध्‍यान दिया गया है। हमारे लिए कमर्शियल प्‍लास्टिक (Commercial Plastic) जैसा मजबूत पॉलिमर बनाना मुश्‍किल चुनौती था। उनकी टीम को नए पॉलिमर आईसोटैक्टिक पॉलिप्रॉपिलीन ऑक्‍साइड (iPPO) बनाने में 15 साल लगे।