NavBharat Times : Aug 06, 2020, 09:40 AM
दिल्ली एम्स में हुए परीक्षण में प्लाज्मा थेरेपी (Plasma Therapy Trials In AIIMS) के बारे में कुछ चौंकाने वाले परिणाम सामने आए। वैसे तो दिल्ली में ही सबसे पहले इस तरह की थेरेपी शुरू हुई थी और कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों को इससे लाभ भी मिला था। लाभ मिलने के बाद से ही एक बहस छिड़ गई थी कि क्या इस बीमारी से निजात पाने के लिए प्लाज्मा थेरेपी ही बेस्ट ऑप्शन है लेकिन आईसीएमआर ने प्लाज्मा के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी और इसके रिचर्च की बात कही थी।
देशभर के 38 इंस्ट्यूशन प्लाज्मा थेरेपी पर रिचर्स कर रही हैं। अभी इनके परिणाम सामने आना बाकी है। दिल्ली एम्स में भी इस पर रिसर्च चल रही थी, जिसमें ये बात सामने आई है कि प्लाज्मा थेरेपी कोई बहुत सार्थक इलाज नहीं है। ट्रायल के दौरान कोरोना वायरस से मौत को रोकने में इस थेरेपी का कोई खास परिणाम सामने नहीं आया। लेकिन इस थेरेपी के कोई साइड इफेक्ट नहीं मिले। ये पूरी तरह से सेफ पाई गई।
'जब तक रिसर्च चल रही, सावधानी से इस्तेमाल करिए'
डॉ सोंजा ने संस्थान द्वारा आयोजित एक वेबकास्ट में कोविड -19 रोगियों में प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग करने के अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा, "जब तक हम मरीजों के सबसेट की विशेषताओं को जानते हैं, तब तक हमें बहुत ही सावधानी से इसका उपयोग करना चाहिए।
प्लाज्मा थेरेपी को जादू की गोली नहीं- डॉ सोंजा
एम्स में मेडिसिन विभाग में अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ मनीष सोंजा ने कहा, "कंवलसेंट प्लाज्मा कोई जादू की गोली नहीं है।" उन्होंने कहा कि रोगियों का एक निश्चित सबसेट हो सकता है जो इससे लाभान्वित हो सकते हैं लेकिन यह अभी भी इसकी जांच प्रगति पर है।
अभी तक कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आए
इंडियन मेडिकल काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) भी प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावकारिता का आंकलन करने के लिए परीक्षण कर रहा है लेकिन परिणाम अभी तक सामने नहीं आए हैं। इस बीच, अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने हाल ही में दिखाया कि प्लाज्मा थेरेपी प्राप्त करने वाले रोगियों में 28 दिन में मृत्यु दर में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं था
प्लाज्मा थेरेपी से मौत के आंकड़ों पर कोई फर्क नहीं
दिल्ली एम्स में दो ग्रुप इस पर रिसर्च करने के लिए लगाए गए थे। दोनों को इसकी उपयोगिता अलग-अलग मिली लेकिन रिजल्ट दोनों के एक ही थे। दोनों ग्रुप को कोरोना वायरस से होने वाली मौतों को रोकने में इस थेरेपी से कोई बड़ा अंतर सामने नहीं मिला। एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि एक ग्रुप को इस थेरेपी को एक स्टैंडर्ड इलाज बताया। उन्होंने कहा कि इससे मौत के आंकड़ों पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
प्लाज्मा के बाद सांस लेने में दिक्कत नहीं होती
वैज्ञानिकों ने कहा, '' हमने कांसल प्लाज्मा की प्रभावकारिता का आंकलन करने के लिए एक छोटा परीक्षण किया, जिसमें मृत्यु दर का कोई लाभ नहीं दिखा। हालांकि, रोगियों की श्वसन मापदंडों में स्पष्ट सुधार था। कोरोनो मरीज जिनको ये थेरेपी मिलती है उनको सांस लेने में तकलीफ कम हो जाती है लेकिन जिनको नहीं मिलती उनको सांस लेने में तकलीफ बनी रहती है।
क्या है प्लाज्मा थेरपी?
सीधे तौर पर इस थेरपी में एंटीबॉडी का इस्तेमाल किया जाता है। किसी खास वायरस या बैक्टीरिया के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी तभी बनता है, जब इंसान उससे पीड़ित होता है। अभी कोरोना वायरस फैला हुआ है, जो मरीज इस वायरस की वजह से बीमार हुआ था। जब वह ठीक हो जाता है तो उसके शरीर में इस कोविड वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनता है। इसी एंटीबॉडी के बल पर मरीज ठीक होता है। जब कोई मरीज बीमार रहता है तो उसमें एंटीबॉडी तुरंत नहीं बनता है, उसके शरीर में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनने में देरी की वजह से वह सीरियस हो जाता है।डॉ सोंजा ने संस्थान द्वारा आयोजित एक वेबकास्ट में कोविड -19 रोगियों में प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग करने के अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा, "जब तक हम मरीजों के सबसेट की विशेषताओं को जानते हैं, तब तक हमें बहुत ही सावधानी से इसका उपयोग करना चाहिए।
प्लाज्मा थेरेपी को जादू की गोली नहीं- डॉ सोंजा
एम्स में मेडिसिन विभाग में अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ मनीष सोंजा ने कहा, "कंवलसेंट प्लाज्मा कोई जादू की गोली नहीं है।" उन्होंने कहा कि रोगियों का एक निश्चित सबसेट हो सकता है जो इससे लाभान्वित हो सकते हैं लेकिन यह अभी भी इसकी जांच प्रगति पर है।
अभी तक कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आए
इंडियन मेडिकल काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) भी प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावकारिता का आंकलन करने के लिए परीक्षण कर रहा है लेकिन परिणाम अभी तक सामने नहीं आए हैं। इस बीच, अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने हाल ही में दिखाया कि प्लाज्मा थेरेपी प्राप्त करने वाले रोगियों में 28 दिन में मृत्यु दर में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं था
प्लाज्मा थेरेपी से मौत के आंकड़ों पर कोई फर्क नहीं
दिल्ली एम्स में दो ग्रुप इस पर रिसर्च करने के लिए लगाए गए थे। दोनों को इसकी उपयोगिता अलग-अलग मिली लेकिन रिजल्ट दोनों के एक ही थे। दोनों ग्रुप को कोरोना वायरस से होने वाली मौतों को रोकने में इस थेरेपी से कोई बड़ा अंतर सामने नहीं मिला। एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि एक ग्रुप को इस थेरेपी को एक स्टैंडर्ड इलाज बताया। उन्होंने कहा कि इससे मौत के आंकड़ों पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
प्लाज्मा के बाद सांस लेने में दिक्कत नहीं होतीवैज्ञानिकों ने कहा, '' हमने कांसल प्लाज्मा की प्रभावकारिता का आंकलन करने के लिए एक छोटा परीक्षण किया, जिसमें मृत्यु दर का कोई लाभ नहीं दिखा। हालांकि, रोगियों की श्वसन मापदंडों में स्पष्ट सुधार था। कोरोनो मरीज जिनको ये थेरेपी मिलती है उनको सांस लेने में तकलीफ कम हो जाती है लेकिन जिनको नहीं मिलती उनको सांस लेने में तकलीफ बनी रहती है।
क्या है प्लाज्मा थेरपी?सीधे तौर पर इस थेरपी में एंटीबॉडी का इस्तेमाल किया जाता है। किसी खास वायरस या बैक्टीरिया के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी तभी बनता है, जब इंसान उससे पीड़ित होता है। अभी कोरोना वायरस फैला हुआ है, जो मरीज इस वायरस की वजह से बीमार हुआ था। जब वह ठीक हो जाता है तो उसके शरीर में इस कोविड वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनता है। इसी एंटीबॉडी के बल पर मरीज ठीक होता है। जब कोई मरीज बीमार रहता है तो उसमें एंटीबॉडी तुरंत नहीं बनता है, उसके शरीर में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनने में देरी की वजह से वह सीरियस हो जाता है।
देशभर के 38 इंस्ट्यूशन प्लाज्मा थेरेपी पर रिचर्स कर रही हैं। अभी इनके परिणाम सामने आना बाकी है। दिल्ली एम्स में भी इस पर रिसर्च चल रही थी, जिसमें ये बात सामने आई है कि प्लाज्मा थेरेपी कोई बहुत सार्थक इलाज नहीं है। ट्रायल के दौरान कोरोना वायरस से मौत को रोकने में इस थेरेपी का कोई खास परिणाम सामने नहीं आया। लेकिन इस थेरेपी के कोई साइड इफेक्ट नहीं मिले। ये पूरी तरह से सेफ पाई गई।
'जब तक रिसर्च चल रही, सावधानी से इस्तेमाल करिए'
डॉ सोंजा ने संस्थान द्वारा आयोजित एक वेबकास्ट में कोविड -19 रोगियों में प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग करने के अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा, "जब तक हम मरीजों के सबसेट की विशेषताओं को जानते हैं, तब तक हमें बहुत ही सावधानी से इसका उपयोग करना चाहिए।
प्लाज्मा थेरेपी को जादू की गोली नहीं- डॉ सोंजा
एम्स में मेडिसिन विभाग में अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ मनीष सोंजा ने कहा, "कंवलसेंट प्लाज्मा कोई जादू की गोली नहीं है।" उन्होंने कहा कि रोगियों का एक निश्चित सबसेट हो सकता है जो इससे लाभान्वित हो सकते हैं लेकिन यह अभी भी इसकी जांच प्रगति पर है।
अभी तक कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आए
इंडियन मेडिकल काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) भी प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावकारिता का आंकलन करने के लिए परीक्षण कर रहा है लेकिन परिणाम अभी तक सामने नहीं आए हैं। इस बीच, अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने हाल ही में दिखाया कि प्लाज्मा थेरेपी प्राप्त करने वाले रोगियों में 28 दिन में मृत्यु दर में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं था
प्लाज्मा थेरेपी से मौत के आंकड़ों पर कोई फर्क नहीं
दिल्ली एम्स में दो ग्रुप इस पर रिसर्च करने के लिए लगाए गए थे। दोनों को इसकी उपयोगिता अलग-अलग मिली लेकिन रिजल्ट दोनों के एक ही थे। दोनों ग्रुप को कोरोना वायरस से होने वाली मौतों को रोकने में इस थेरेपी से कोई बड़ा अंतर सामने नहीं मिला। एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि एक ग्रुप को इस थेरेपी को एक स्टैंडर्ड इलाज बताया। उन्होंने कहा कि इससे मौत के आंकड़ों पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
प्लाज्मा के बाद सांस लेने में दिक्कत नहीं होती
वैज्ञानिकों ने कहा, '' हमने कांसल प्लाज्मा की प्रभावकारिता का आंकलन करने के लिए एक छोटा परीक्षण किया, जिसमें मृत्यु दर का कोई लाभ नहीं दिखा। हालांकि, रोगियों की श्वसन मापदंडों में स्पष्ट सुधार था। कोरोनो मरीज जिनको ये थेरेपी मिलती है उनको सांस लेने में तकलीफ कम हो जाती है लेकिन जिनको नहीं मिलती उनको सांस लेने में तकलीफ बनी रहती है।
क्या है प्लाज्मा थेरपी?
सीधे तौर पर इस थेरपी में एंटीबॉडी का इस्तेमाल किया जाता है। किसी खास वायरस या बैक्टीरिया के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी तभी बनता है, जब इंसान उससे पीड़ित होता है। अभी कोरोना वायरस फैला हुआ है, जो मरीज इस वायरस की वजह से बीमार हुआ था। जब वह ठीक हो जाता है तो उसके शरीर में इस कोविड वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनता है। इसी एंटीबॉडी के बल पर मरीज ठीक होता है। जब कोई मरीज बीमार रहता है तो उसमें एंटीबॉडी तुरंत नहीं बनता है, उसके शरीर में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनने में देरी की वजह से वह सीरियस हो जाता है।डॉ सोंजा ने संस्थान द्वारा आयोजित एक वेबकास्ट में कोविड -19 रोगियों में प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग करने के अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा, "जब तक हम मरीजों के सबसेट की विशेषताओं को जानते हैं, तब तक हमें बहुत ही सावधानी से इसका उपयोग करना चाहिए।
प्लाज्मा थेरेपी को जादू की गोली नहीं- डॉ सोंजा
एम्स में मेडिसिन विभाग में अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ मनीष सोंजा ने कहा, "कंवलसेंट प्लाज्मा कोई जादू की गोली नहीं है।" उन्होंने कहा कि रोगियों का एक निश्चित सबसेट हो सकता है जो इससे लाभान्वित हो सकते हैं लेकिन यह अभी भी इसकी जांच प्रगति पर है।
अभी तक कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आए
इंडियन मेडिकल काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) भी प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावकारिता का आंकलन करने के लिए परीक्षण कर रहा है लेकिन परिणाम अभी तक सामने नहीं आए हैं। इस बीच, अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने हाल ही में दिखाया कि प्लाज्मा थेरेपी प्राप्त करने वाले रोगियों में 28 दिन में मृत्यु दर में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं था
प्लाज्मा थेरेपी से मौत के आंकड़ों पर कोई फर्क नहीं
दिल्ली एम्स में दो ग्रुप इस पर रिसर्च करने के लिए लगाए गए थे। दोनों को इसकी उपयोगिता अलग-अलग मिली लेकिन रिजल्ट दोनों के एक ही थे। दोनों ग्रुप को कोरोना वायरस से होने वाली मौतों को रोकने में इस थेरेपी से कोई बड़ा अंतर सामने नहीं मिला। एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि एक ग्रुप को इस थेरेपी को एक स्टैंडर्ड इलाज बताया। उन्होंने कहा कि इससे मौत के आंकड़ों पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
प्लाज्मा के बाद सांस लेने में दिक्कत नहीं होतीवैज्ञानिकों ने कहा, '' हमने कांसल प्लाज्मा की प्रभावकारिता का आंकलन करने के लिए एक छोटा परीक्षण किया, जिसमें मृत्यु दर का कोई लाभ नहीं दिखा। हालांकि, रोगियों की श्वसन मापदंडों में स्पष्ट सुधार था। कोरोनो मरीज जिनको ये थेरेपी मिलती है उनको सांस लेने में तकलीफ कम हो जाती है लेकिन जिनको नहीं मिलती उनको सांस लेने में तकलीफ बनी रहती है।
क्या है प्लाज्मा थेरपी?सीधे तौर पर इस थेरपी में एंटीबॉडी का इस्तेमाल किया जाता है। किसी खास वायरस या बैक्टीरिया के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी तभी बनता है, जब इंसान उससे पीड़ित होता है। अभी कोरोना वायरस फैला हुआ है, जो मरीज इस वायरस की वजह से बीमार हुआ था। जब वह ठीक हो जाता है तो उसके शरीर में इस कोविड वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनता है। इसी एंटीबॉडी के बल पर मरीज ठीक होता है। जब कोई मरीज बीमार रहता है तो उसमें एंटीबॉडी तुरंत नहीं बनता है, उसके शरीर में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनने में देरी की वजह से वह सीरियस हो जाता है।