- भारत,
- 12-Apr-2025 12:25 PM IST
US-China Tariff War: दुनिया आज ऐसे दौर से गुजर रही है, जहां शांति की कोशिशें बंद होती जा रही हैं और युद्ध के कई मोर्चे एक साथ खुलते जा रहे हैं। ऐसे में दो वैश्विक महाशक्तियों—अमेरिका और चीन—के बीच तनातनी एक गंभीर रूप ले चुकी है। शुरुआत टैरिफ वॉर से हुई, लेकिन हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि अब इस संघर्ष के सैन्य रूप लेने की आशंका भी गहराती जा रही है।
पनामा नहर: संघर्ष का नया केंद्र
अमेरिका ने चीन की वैश्विक विस्तारवादी नीति पर अंकुश लगाने के लिए पनामा नहर पर नियंत्रण वापस लेने की घोषणा कर दी है। अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने स्पष्ट कहा कि चीन के दखल को खत्म करने और पनामा की सुरक्षा के लिए सैन्य तैनाती की जा रही है। यह न सिर्फ एक रणनीतिक फैसला है बल्कि वैश्विक भू-राजनीति में एक निर्णायक मोड़ भी साबित हो सकता है। पनामा पर चीन की पकड़ को ढीला करने का अमेरिकी प्रयास, ट्रंप प्रशासन की उस नीति का हिस्सा है, जिसमें ड्रैगन की उड़ान को रोकने की ठानी गई है।
टैरिफ की जंग और बाजार का वर्चस्व
टैरिफ वॉर की शुरुआत में ही साफ हो गया था कि यह केवल व्यापारिक हितों तक सीमित नहीं रहेगा। अमेरिका ने चीन पर भारी-भरकम आयात शुल्क थोपे, जिसे चीन ने भी उसी आक्रामकता से जवाब दिया। दोनों देशों ने टैरिफ दरों को क्रमशः 145% और 125% तक पहुंचा दिया। जहां दुनिया के 75 देशों को अमेरिका ने राहत दी, वहीं चीन के लिए कोई नरमी नहीं बरती गई। बाजार पर कब्जे की इस जंग ने दुनिया को दो ध्रुवों में बांटने की भूमिका तैयार कर दी है।
चीन की बहुस्तरीय जवाबी रणनीति
चीन ने टैरिफ वॉर को सिर्फ एक आयाम तक सीमित नहीं रखा। उसने एक के बाद एक कई रणनीतिक मोर्चे खोल दिए:
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ताइवान पर सैन्य दबाव बढ़ाया,
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जापान और दक्षिण कोरिया को निशाने पर लिया,
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दक्षिण चीन सागर में सेना उतारी,
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और यूरोप व मध्य-पूर्व के साथ व्यापारिक गठजोड़ शुरू कर दिए।
चीन के विदेश मंत्रालय ने साफ कर दिया कि वह अमेरिका के हर कदम का जवाब देगा, चाहे वह टैरिफ वॉर हो या सैन्य रणनीति। यूरोपीय संघ और संयुक्त अरब अमीरात के साथ चीन ने व्यापार संबंध मजबूत करने की योजना बना ली है। स्पेन, UAE और EU जैसे देशों के साथ होने वाले शिखर सम्मेलन, इस योजना के मजबूत संकेत हैं।
अमेरिकी रणनीति: सैन्य घेराबंदी और चेतावनी
अमेरिका ने अब स्पष्ट रूप से चीन की घेराबंदी शुरू कर दी है। पेंटागन ने पनामा और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी सैन्य मौजूदगी को मजबूत कर दिया है।
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जापान के ओकिनावा द्वीप से चीन की निगरानी,
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दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी पनडुब्बियों की तैनाती,
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और टेक्सस की दक्षिणी सीमा पर 50 M-1126 स्ट्राइकर वाहनों की तैनाती,
ये सभी कदम स्पष्ट करते हैं कि अमेरिका किसी भी प्रकार की आक्रामकता के लिए पूरी तरह से तैयार है।
ट्रंप प्रशासन को आशंका है कि चीन के उकसावे पर मेक्सिको जैसे देशों से भी खतरा हो सकता है, जिससे अमेरिका की आंतरिक स्थिरता को चुनौती मिल सकती है। इसीलिए दक्षिणी सीमाओं पर सैन्य जमावड़ा तेज कर दिया गया है।
व्यापार युद्ध या वैश्विक संकट की आहट?
फिलहाल ये जंग टैरिफ और कूटनीतिक बयानबाजियों के जरिए लड़ी जा रही है, लेकिन इसकी दिशा सैन्य टकराव की ओर बढ़ती दिख रही है। दुनिया जिन आर्थिक और सामरिक अस्थिरताओं के दौर से गुजर रही है, उसमें अमेरिका और चीन की यह जंग एक वैश्विक संकट को जन्म दे सकती है।
इस सवाल का उत्तर कि क्या अमेरिका को इस टैरिफ वॉर में बढ़त मिलेगी, अभी अधर में है। लेकिन इतना तय है कि अगर दोनों देशों ने समय रहते संयम नहीं बरता, तो यह संघर्ष दुनिया को एक नई विभाजन रेखा की ओर धकेल सकता है—जहां शांति की जगह सिर्फ प्रभुत्व की लड़ाई होगी।