Vikrant Shekhawat : Dec 05, 2024, 08:35 AM
Pushpa 2 Review: “फ्लावर समझे क्या? फायर है मैं!” यह डायलॉग आज हर भारतीय के ज़ुबान पर है, और इसका श्रेय जाता है अल्लू अर्जुन और निर्देशक सुकुमार की जोड़ी को। ‘पुष्पा: द राइज’ ने जिस तरह से साउथ सिनेमा की ताकत और मास अपील का प्रदर्शन किया, उसी का स्तर अब ‘पुष्पा 2: द रूल’ ने और ऊंचा कर दिया है।
यह फिल्म थिएटर में देखने का अनुभव अनमोल है। अगर आपने इसे अभी तक नहीं देखा है, तो जल्दी से थिएटर की ओर रुख करें। पुष्पा का यह "रूल" यादगार बनने वाला है!
कहानी: पुष्पा का साम्राज्य और संघर्ष
रक्त चंदन के कारोबार से उठकर ताकतवर माफिया बने पुष्पराज की कहानी अब और गहराई में जाती है। पुष्पा अब मजदूर नहीं, बल्कि राज्य को अपनी मुट्ठी में रखने वाला एक शख्स है। लेकिन उसकी राह में चुनौती बनकर खड़ा है एसपी भंवर सिंह शेखावत। पुष्पा का परिवार, उसकी पत्नी श्रीवल्ली और उसके दुश्मन – सब मिलकर इस कहानी को और दिलचस्प बनाते हैं।निर्देशन और सिनेमेटोग्राफी: सुकुमार का जादू
सुकुमार ने ‘पुष्पा 2’ को एक सधे हुए विज़न के साथ पेश किया है। हर फ्रेम, हर सीन एक नई सोच को दर्शाता है। एक्शन सीक्वेंस से लेकर इमोशनल पल तक, हर सीन में दर्शक को बांधकर रखने की क्षमता है। फिल्म में 200 साथियों को छुड़ाने वाले सीन जैसे पल दर्शकों को चौंका देते हैं, और यही सुकुमार की सबसे बड़ी ताकत है।एक्टिंग: अल्लू अर्जुन की काबिल-ए-तारीफ परफॉर्मेंस
अल्लू अर्जुन ने इस फिल्म में अपनी एक्टिंग की नई ऊंचाइयों को छुआ है। एक साधारण मजदूर से लेकर प्रभावशाली डॉन तक की उनकी जर्नी बेमिसाल है। फिल्म में उनका ‘काली मां’ का अवतार हो या उनके परिवार के प्रति उनके इमोशन्स – हर सीन में वो दमदार नजर आते हैं। रश्मिका मंदाना ने श्रीवल्ली के किरदार में एक नई गहराई जोड़ दी है, और फहाद फासिल की एक्टिंग भी अपने आप में कमाल है।महिलाओं के प्रति सम्मान का संदेश
साउथ सिनेमा पर अक्सर महिलाओं को सिर्फ ग्लैमर दिखाने के आरोप लगते हैं। लेकिन ‘पुष्पा 2’ ने इस ट्रेंड को तोड़ते हुए महिलाओं के सम्मान को एक नए स्तर पर प्रस्तुत किया है। पुष्पा का अपनी पत्नी और अन्य महिलाओं के प्रति व्यवहार फिल्म में बदलाव का संकेत देता है।डबिंग और म्यूजिक: फिल्म की जान
श्रेयस तलपड़े की आवाज ने पुष्पा के किरदार को नई पहचान दी है। बैकग्राउंड म्यूजिक शानदार है और सीन की गहराई को बढ़ाता है। यह फिल्म न सिर्फ देखने बल्कि सुनने का भी बेहतरीन अनुभव देती है।एक्शन सीक्वेंस: तालियों के लायक
फिल्म के एक्शन सीन दिलचस्प और अलग अंदाज में डिजाइन किए गए हैं। पुष्पा की दूसरी एंट्री तो खासतौर पर थिएटर में सीटियां और तालियां बजाने पर मजबूर कर देती है।फाइनल वर्डिक्ट
‘पुष्पा 2: द रूल’ केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा का एक नया आयाम है। यह फिल्म न केवल साउथ बल्कि पूरे भारत के दर्शकों के लिए गर्व का विषय है। अल्लू अर्जुन की शानदार एक्टिंग, सुकुमार का निर्देशन, और फिल्म की कसी हुई कहानी इसे एक मास्टरपीस बनाती है।रेटिंग: 4.5/5यह फिल्म थिएटर में देखने का अनुभव अनमोल है। अगर आपने इसे अभी तक नहीं देखा है, तो जल्दी से थिएटर की ओर रुख करें। पुष्पा का यह "रूल" यादगार बनने वाला है!