जालोर / जहां बेटियों के हाथ में सिर्फ बेलन नसीब था, वे अब हॉकी की चैम्पियन, 'चक दे इण्डिया' को किया साकार

राजस्थान के जालोर जिले का झाक गांव। यहां बेटियों को सिर्फ घर के काम और चूल्हे चौके तक सीमित रखने की कोशिशें ही तारी थीं। परन्तु बीते कुछ सालों में बेटियों के हाथों में हॉकी स्टिक क्या आई, कि उनकी पहचान एक नई करवट लेने लगी। शारीरिक शिक्षक राजेन्द्रसिंह परमार ने गांव की लड़कियों को खेल में आगे लाने के लिए अभिभावकों को प्रेरित किया और वे लगातार चार साल से हॉकी का खिताब जीत रही हैं।

Vikrant Shekhawat : Sep 14, 2019, 11:14 AM
राजस्थान के जालोर जिले का झाक गांव। यहां बेटियों को सिर्फ घर के काम और चूल्हे चौके तक सीमित रखने की कोशिशें ही तारी थीं। परन्तु बीते कुछ सालों में बेटियों के हाथों में हॉकी स्टिक (Hockey Stick) क्या आई, कि उनकी पहचान एक नई करवट लेने लगी। शारीरिक शिक्षक राजेन्द्रसिंह परमार ने गांव की लड़कियों को खेल (Sports) में आगे लाने के लिए अभिभावकों को प्रेरित किया और वे लगातार चार साल से हॉकी का खिताब जीत रही हैं। 
इस टीम और इनके कोच के प्रयासों को सालों पहले आई शाहरुख खान (Shahrukh Khan) अभिनीत चक दे इण्डिया (Chak de India) का साकार रूप कहें तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। 
महिला साक्षरता के लिहाज से जालोर देश के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार है। झाक स्कूल की बेटियों ने हॉकी खेलना तो दूर देखा भी नहीं था। यहां तक  अभिभावक कभी अपनी बेटियों को खेलकूद में तो क्या गांव के बाहर भी नहीं भेजते थे। इस गांव की बेटियां सिर्फ पढ़ाई तक ही सीमित थीं, लेकिन इस सोच को बदला झाक के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत शिक्षक राजेन्द्रसिंह परमार ने। नतीजा यह निकला कि यहां कि बेटियां पिछले चार साल से हॉकी की जिला चैम्पियनशिप जीत रही हैं। शिक्षक ने बेटियों को खेलकूद में भी आगे बढऩे को लेकर अभिभावकों से घर-घर जाकर पढ़ाई के साथ जीवन में खेल के बारे में भी प्रेरित किया। इस स्कूल में शारीरिक शिक्षक का पद पिछले 12 साल से रिक्त चल रहा है। ऐसे में शारीरिक शिक्षक की भूमिका शिक्षक राजेन्द्रसिंह परमार ने निभाते हुए न केवल बच्चों को पढ़ाई के प्रति प्रेरिता किया वरन् खेलकूद में भी ऐसे गुर सिखाए कि आज उनकी काबिलियत की चर्चा पूरे जिले में हो रही है।  परमार ने 7 साल की राजकीय सेवा में ही वो मुकाम हासिल कर लिया है जो कुछ गिने चुने लोगो को ही हासिल हुआ है। चाहे खेल हो शिक्षा हो या सामाजिक कार्य उन्होंने हर क्षेत्र में अपना झंडा गाड़ा है। खेल में आगे बढ़ने के बाद बेटियों का हौसला मजबूत हुआ है। 

अभिभावकों के घर जाकर प्राप्त करते थे अनुमति, छात्रों की भी हैट्रिक
शिक्षक राजेन्द्रसिंह परमार ने जिस से बेटियों को हॉकी थमाई थी उस दिन से ही बेटियों में हॉकी खेलने के जुनून को पहचान लिया था। स्कूल में वे नियमित रूप से अभ्यास कराते थे, लेकिन गांव से जिला स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति अभिभावकों से लेनी जरूरी थी। इस पर शिक्षक ने अभिभावकों के घर-घर जाकर बेटियों के खेलने को लेकर अनुमति मांगी। साथ ही लडक़ों की टीम भी लगातार तीन साल से चैंपियन बन रही है। 

शिक्षक का खेल के प्रति अनूठा समर्पण
खेल के प्रति समर्पित भाव को देखते हुये जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा ब्लॉक में खेल कूद प्रतियोगिता के सफल आयोजन के लिए ब्लॉक खेलकूद प्रभारी का अतिरिक्त प्रभार भी दिया हुआ है। यद्यपि अपनी दोनों टीमों को कोचिंग देने की जिम्मेदारी भी उनके सर थी तो उन्होंने अपना पूरा समय खेल को समर्पित कर दिया। सुबह 7 बजे उनकी दिन चर्या शुरू होती थी 7 बजे से 9 बजे तक विद्यालय के खेल ग्राउंड में बच्चो को हॉकी की तैयारी कराना, फिर अपने निजी वाहन से जसवंतपुरा जाकर ब्लॉक की खेलकूद गतिविधियों को सुचारू रूप से संचालन करने के लिए व्यवस्था करना और इस संबंध में ऑफि़स में काम करना, फिर 5 बजे वहाँ से रवाना होकर पुन: झाक स्कूल ग्राउंड में पहुँचकर 7 बजे तक बच्चों को हॉकी की तैयारी करवाना ओर शनिवार और रविवार को छुट्टी के दिन पूरे दिन बच्चो को तैयारी करवाना शामिल था। 

दानदाता भी अपने स्तर पर 
इस साल झाक में जिला स्तरीय हॉकी टूर्नामेंट भी थे। इसलिए इसकी व्यवस्था के लिये भामाशाहों की व्यवस्था करने की जिम्मेवारी भी अध्यापक राजेन्द्र सिंह के कंधो पर थी इसलिये बच्चों की तैयारी ओर ऑफिस कार्य मे कोई समस्या नहीं आए इसलिए रात को नौ बजे तक भामाशाहों से सम्पर्क किया तथा 3 लाख से अधिक की राशि एकत्रित कर टूर्नामेंट का भव्य आयोजन करवाया। न केवल टूर्नामेंट का सफल आयोजन किया बल्कि झाक की दोनों टीम को जिला स्तरीय हॉकी टूर्नामेंट में चैंपियन भी बनी। यहां लड़कियां चार साल से चैंपियन हैं वहीं लडक़ों ने भी तीसरी बार खिताब अपने नाम कर दिया। एक अध्यापक अपने परिवार से ज्यादा समय स्कूल और स्कूल के बच्चों को देता है,ओर उसी का परिणाम है कि जिस गांव की लड़कियां हॉकी खेलना जानती ही नही थी उस गांव की लड़कियां लगातार जिला स्तर पर चैंपियंस रह रही है।जो अपने आप मे उपलब्धि है। 

अध्यापन में भी बेमिसाल
अध्यापक राजेन्द्र सिंह की उपलब्धि खेल में ही नहीं बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका योगदान लाजवाब है। सत्र 2015-16 में कार्यवाहक प्रधानाध्यापक के रूप में विद्यालय को नई बुलंदियों पर पहुचाने का कार्य किया और शैक्षिक दृष्टि से बेहतर प्रदर्शन करने के कारण उनका विद्यालय उत्कृष्ट विद्यालय चयन योजना में ब्लॉक में प्रथम रहा। इसके लिए राजेन्द्र सिंह को उपखंड स्तर और जिला स्तर पर सम्मानित भी किया जा चुका है। प्रवेश प्रभारी के रूप में कार्य करते हुए एक ही वर्ष में 90 से अधिक नवीन बच्चों का प्रवेश कराने का कीर्तिमान भी अपने नाम किया। इसमें 60 प्रतिशत से अधिक बच्चे निजी विद्यालय से थे। यानि हर क्षेत्र में अध्यापक राजेन्द्र सिंह बेहतरीन प्रदर्शन कर आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बने हैं।

ग्रामीणों ने कंधों पर उठाकर निकाला जुलूस
झाक लगातार चौथी जीत दिलाने वाले प्रशिक्षक राजेन्द्र सिंह को ग्रामीणों ने उठाया कंधों पर और डीजे संग पूरे गांव में जुलूस निकालकर किया खुशी का इजहार। पिछले चार साल से ग्रामीणों को जश्न का मौका देने वाले छात्रों और उनको तैयार करने वाले अध्यापक राजेन्द्र सिंह को सम्मान देने के लिए ओर उनका हौसला बढ़ाने के लिए ग्रामीणों ने भव्य जुलूस निकाला। डीजे पर छात्रों के साथ साथ अध्यापक, ग्रामीण महिलाएं और पुरुष सभी ने शानदार नृत्य प्रस्तुत किया और जयकारे लगाए। सभी ग्रामीणों ने छात्रों और अध्यापकों को ऐसा ही प्रदर्शन निरंतर जारी रखने का आशीर्वाद दिया। क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी ग्रामीण डीजे संग नाचे और कई बार ग्रामीणों ने अध्यापक राजेन्द्र सिंह को कंधों पर भी बिठाया।