राजनीति / जसवंत सिंह के बेटे मानवेन्द्र सिंह भाजपा में वापसी की अटकलें

भाजपा के संस्थापक सदस्य और कद्दावर नेता रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह के बेटे मानवेन्द्र सिंह का कांग्रेस से मोहभंग होता नजर आ रहा है। पार्टी में लगातार होती उपेक्षा से आहत मानवेन्द्र एक बार फिर अपनी पुरानी पार्टी भाजपा से पींगे बढ़ा रहे हैं। वे पार्टी में सम्मानजनक वापसी की सुगबुगाहट तेज होती जा रही है। वहीं, भाजपा इन दिनों वसुंधरा राजे के धुर विरोधी नेताओं को वापस जोड़ पार्टी का आधार मजबूत करने में जुटी है।

Vikrant Shekhawat : Dec 14, 2020, 11:57 AM
भाजपा के संस्थापक सदस्य और कद्दावर नेता रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह जसोल के बेटे मानवेन्द्र सिंह का कांग्रेस से मोहभंग होता नजर आ रहा है। पार्टी में लगातार होती उपेक्षा से आहत मानवेन्द्र एक बार फिर अपनी पुरानी पार्टी भाजपा से पींगे बढ़ा रहे हैं। वे पार्टी में सम्मानजनक वापसी की सुगबुगाहट तेज होती जा रही है। वहीं, भाजपा इन दिनों वसुंधरा राजे के धुर विरोधी नेताओं को वापस जोड़ पार्टी का आधार मजबूत करने में जुटी है।


राजनीतिक हलकों में मानवेन्द्र के कांग्रेस छोड़ एक बार फिर अपनी पुरानी पार्टी भाजपा का दामन थामने की सुगबुगाहट तेज होती जा रही है। हालांकि मानवेन्द्र ने इस बारे में चुप्पी साध रखी है। उनके करीबी लोगों का कहना है कि कुछ दिन में सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा। मानवेन्द्र को वसुंधरा राजे का धुर विरोधी माना जाता है। पिछला विधानसभा चुनाव भी उन्होंने वसुंधरा राजे के खिलाफ लड़ा था।


कांग्रेस से इस कारण हुआ मोह भंग

पिछले विधानसभा चुनाव से पहले मानवेन्द्र ने पचपदरा में अपने समर्थकों के साथ बड़ा सम्मेलन कर यह कहते हुए भाजपा छोड़ दी कि कमल का फूल हमारी भूल। इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए। लेकिन कांग्रेस उनका उपयोग नहीं कर सकी। विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस से तीन टिकट की मांग की, लेकिन पार्टी ने उनकी पत्नी समेत किसी समर्थक को टिकट नहीं दिया, बल्कि उन्हें वसुंधरा राजे के सामने बलि का बकरा बनाकर चुनाव में उतार दिया। यहीं से उनके मन में आक्रोश पनपना शुरू हो गया। लोकसभा चुनाव के दौरान भी पार्टी मानवेन्द्र का सही तरीके से उपयोग नहीं कर पाई। हाल ही हुए जिला परिषद व पंचायत समितियों के चुनाव में भी उनको तव्वजो तो दूर पूछा तक नहीं गया। इसके बाद पार्टी में बिलकुल अकेले पड़े मानवेन्द्र के सामने और कोई विकल्प नहीं रह गया।


यह पड़ेगा प्रभाव

जसवंत सिंह का राजपूत समाज पर गहरा प्रभाव रहा था। अभी भी समाज के लोग मानवेन्द्र से उम्मीद लगाए बैठे हैं। एक बार सांसद व एक बार विधायक रह चुके मानवेन्द्र की सीमावर्ती बाड़मेर-जैसलमेर सहित जोधपुर व जालोर क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। उनके कांग्रेस छोड़ने से इसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा।


इस कारण नहीं हो पाया कांग्रेस में उपयोग

मानवेन्द्र कांग्रेस की मारवाड़ में जाट आधारित राजनीति में सहज महसूस नहीं कर पा रहे थे। बाड़मेर के स्थानीय नेता उनके विरोध में डटे थे। स्थानीय नेताओं के विरोध के कारण विधानसभा चुनाव में उनकी पत्नी चित्रा सिंह को टिकट नहीं मिल पाया। वहीं उनको लोकसभा और हाल में संपन्न हुए जिला परिषद व पंचायत समितियों के चुनाव में कोई तव्वजो नहीं दी गई।


भाजपा में भी राह नहीं होगी आसान

मानवेन्द्र भाजपा में सम्मानजनक वापस की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन यह राह उतनी आसान नहीं रहने वाली है। भाजपा के लिए बाड़मेर-जैसलमेर या फिर जोधपुर की राजनीति में मानवेन्द्र को एडजस्ट करना अब इतना आसान नहीं रहा है। जोधपुर में केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत एक राजपूत नेता के रूप में अपने पांव जमा चुके हैं। वहीं बाड़मेर-जैसलमेर के सांसद रह चुके मानवेन्द्र के स्थान पर अब केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी काबिज हो चुके हैं। ऐसे में भाजपा में स्थानीय स्तर पर भी मानवेन्द्र को विरोध का सामना करना पड़ सकता है। उनके लिए अपने पूर्व शिव विधानसभा क्षेत्र के अलावा अन्य विकल्प बहुत सीमित रह गए हैं। वहीं भाजपा में मुख्यमंत्री बनने की होड़ में शामिल शेखावत नहीं चाहेंगे कि एक और प्रभावशाली राजपूत नेता पार्टी में अपने कदम जमाए। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि भाजपा उनको कितना सम्मान दे पाएगी।


वसुंधरा से है जोरदार नाराजगी

वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री बनते ही दोनों परिवारों के बीच रिश्तों में कड़वाहट आना शुरू हो गई। वसुंधरा ने जसवंत सिंह को तव्वजो देना बंद कर दिया। हालात ऐसे पैदा हो गए कि जसवंत सिंह का फोन तक उठाना बंद कर दिया। इस बीच जोधपुर में एक व्यक्ति ने वसुंधरा का मंदिर बनाने का प्रयास किया। जसवंत की पत्नी शीतल कंवर ने देवी-देवताओं का अपमान बता इसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया। यहां से दोनों परिवारों के बीच आई कड़वाहट सार्वजनिक हो गई और रिश्तों में दूरियां काफी बढ़ गई। जसवंत सिंह के पैतृक गांव जसोल में आयोजित एक सामाजिक समारोह में भाजपा के कुछ नेता शामिल हुए। वसुंधरा विरोधी इन नेताओं का स्वागत जसवंत ने मारवाड़ी परम्परा से अफीम की मनुहार से किया। इस मामले ने तूल पकड़ लिया। वसुंधरा के इशारे पर आयोजकों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ। यह मामला भी कई दिन तक सुर्खियों में रहा।


वसुंधरा का आखिरी प्रहार

दोनों परिवारों के बीच जारी तनातनी के बीच वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से काफी पहले जसवंत ने घोषणा कर दी कि यह उनका अंतिम चुनाव होगा। ऐसे में वे अपने खुद के संसदीय क्षेत्र बाड़मेर-जैसलमेर से चुनाव लड़ेंगे। चुनाव से एन पहले वसुंधरा ने पासा फेंका और जसवंत की बाजी पलट चुकी थी। कांग्रेस के सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी को वसुंधरा भाजपा में ले आई और आलाकमान से जिद कर उन्हें टिकट दिला ही दिया। जसवंत खाली हाथ रह गए। उन्होंने इस पीठ में छुरा भोंकने के समान बताया। इसके साथ ही उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। देश के सबसे चर्चित चुनाव में से एक इस संसदीय क्षेत्र से जसवंत को हार का सामना करना पड़ा। इसके कुछ महीने बाद न केवल जसवंत बल्कि दोनों परिवार के रिश्ते भी कोमा में चले गए।