AajTak : May 26, 2020, 11:15 AM
भारत: के सेना प्रमुख एम. एम नरवणे ने 15 मई को एक बयान में कहा था कि कालापानी को लेकर नेपाल किसी और के इशारे पर विरोध कर रहा है। सेना प्रमुख का इशारा चीन की तरफ था। इस बयान को लेकर अब नेपाल के उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल ने प्रतिक्रिया दी है। नेपाली रक्षा मंत्री ने कहा है कि भारतीय सेना प्रमुख के बयान से नेपाली गोरखाओं की भावनाएं आहत हुई हैं जो लंबे समय से भारत के लिए बलिदान करते आए हैं।
'द राइजिंग नेपाल' न्यूज आउटलेट को दिए एक इंटरव्यू में नेपाल के रक्षा मंत्री ने कहा कि जनरल मनोज नरवणे का कूटनीतिक विवाद में चीन की तरफ इशारा करना निंदनीय है। उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ती है तो नेपाली सेना लड़ाई भी करेगी।पोखरेल ने कहा, सेना प्रमुख के इस बयान से नेपाली गोरखाओं की भावनाएं भी आहत हुई हैं जो भारत की सुरक्षा के लिए अपनी जान देते आए हैं। उनके लिए (भारतीय सेना प्रमुख) गोरखा बल के सामने सिर ऊंचा कर खड़ा करना भी अब मुश्किल होगा। उन्होंने भारतीय सेना प्रमुख के बयान को राजनीतिक स्टंट करार दिया और कहा कि सेना प्रमुख से इस तरह के बयान की उम्मीद नहीं की जाती है।भारतीय सुरक्षा बलों में आजादी से पहले से ही नेपाली गोरखा शामिल रहे हैं और भारत-नेपाल के विवाद से उन्हें हमेशा दूर ही रखा गया है। भारतीय सेना में गोरखा की करीब 40 बटालियन हैं जिसमें नेपाल के सैनिक बड़ी संख्या में हैं। हालांकि, यह पहली बार है जब नेपाल के रक्षा मंत्री ने भारत-नेपाल के विवाद में गोरखा समुदाय को भी घसीट लिया है8 मई को दारचूला-लिपुलेख में भारत ने सड़क का उद्घाटन किया था जिसको लेकर नेपाल ने विरोध दर्ज कराया था। नेपाल इन इलाकों पर अपना दावा पेश करता रहा है। कुछ दिनों बाद ही सेना प्रमुख नरवणे ने बयान दिया कि लिंक रोड भारतीय क्षेत्र में है इसलिए नेपाल के पास विरोध करने की कोई वजह नहीं है। उन्होंने कहा था कि कई तर्क ऐसे हैं जिनके आधार पर ये माना जा सकता है कि उन्होंने किसी और के इशारे पर मुद्दे को उठाया होगा और ये एक बड़ी संभावना है।हालांकि, नेपाल की सेना ने इस मुद्दे पर चुप्पी बरती है। नेपाल की सेना के प्रवक्ता जनरल विज्ञान देव पांडे ने नरवणे के बयान पर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि वह किसी राजनीतिक क्षेत्र के मामले में नहीं पड़ना चाहते हैं। सोमवार को भी नेपाल के सेना प्रवक्ता ने पुराना ही रुख बनाए रखा और कहा कि वह रक्षा मंत्री की राय पर टिप्पणी करने के लिए अधिकृत नहीं हैंपोखरेल ने कहा कि उनकी सेना काठमांडू की जरूरत के हिसाब से एक्शन लेगी। उन्होंने कहा, सेना हमारे संविधान और सरकार के दिशानिर्देश के अनुसार सही वक्त आने पर अपनी भूमिका अदा करेगी।।।अगर जरूरत पड़ी तो हम लड़ेंगे। उन्होंने ये भी कहा कि नेपाल का मानना है कि कालापानी मुद्दे का समाधान राजनयिक वार्ता के जरिए ही निकाला जाए।पोखरेल की टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है जब नेपाल ने चीन के साथ अक्टूबर में हुए एक समझौते पर काम शुरू कर दिया है। इस समझौते के तहत, नेपाल को तिब्बत शहर से सामान लाने की अनुमति होगी। रेल-रोड ट्रांसपोर्ट सेवा से नेपाल अब नौ दिनों के भीतर चीन से माल की आपूर्ति हासिल करेगा। 2015 में भारत-नेपाल सीमा पर हुई अघोषित आर्थिक नाकेबंदी के बाद से ही वहां भारत-विरोधी जनभावनाओं का उभार हुआ है। 2015 के बाद से ही नेपाल में भारत पर अपनी निर्भरता कम करने की मांग तेज हुई है। चीन से समझौता भी इसी रणनीति का हिस्सा है।
'द राइजिंग नेपाल' न्यूज आउटलेट को दिए एक इंटरव्यू में नेपाल के रक्षा मंत्री ने कहा कि जनरल मनोज नरवणे का कूटनीतिक विवाद में चीन की तरफ इशारा करना निंदनीय है। उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ती है तो नेपाली सेना लड़ाई भी करेगी।पोखरेल ने कहा, सेना प्रमुख के इस बयान से नेपाली गोरखाओं की भावनाएं भी आहत हुई हैं जो भारत की सुरक्षा के लिए अपनी जान देते आए हैं। उनके लिए (भारतीय सेना प्रमुख) गोरखा बल के सामने सिर ऊंचा कर खड़ा करना भी अब मुश्किल होगा। उन्होंने भारतीय सेना प्रमुख के बयान को राजनीतिक स्टंट करार दिया और कहा कि सेना प्रमुख से इस तरह के बयान की उम्मीद नहीं की जाती है।भारतीय सुरक्षा बलों में आजादी से पहले से ही नेपाली गोरखा शामिल रहे हैं और भारत-नेपाल के विवाद से उन्हें हमेशा दूर ही रखा गया है। भारतीय सेना में गोरखा की करीब 40 बटालियन हैं जिसमें नेपाल के सैनिक बड़ी संख्या में हैं। हालांकि, यह पहली बार है जब नेपाल के रक्षा मंत्री ने भारत-नेपाल के विवाद में गोरखा समुदाय को भी घसीट लिया है8 मई को दारचूला-लिपुलेख में भारत ने सड़क का उद्घाटन किया था जिसको लेकर नेपाल ने विरोध दर्ज कराया था। नेपाल इन इलाकों पर अपना दावा पेश करता रहा है। कुछ दिनों बाद ही सेना प्रमुख नरवणे ने बयान दिया कि लिंक रोड भारतीय क्षेत्र में है इसलिए नेपाल के पास विरोध करने की कोई वजह नहीं है। उन्होंने कहा था कि कई तर्क ऐसे हैं जिनके आधार पर ये माना जा सकता है कि उन्होंने किसी और के इशारे पर मुद्दे को उठाया होगा और ये एक बड़ी संभावना है।हालांकि, नेपाल की सेना ने इस मुद्दे पर चुप्पी बरती है। नेपाल की सेना के प्रवक्ता जनरल विज्ञान देव पांडे ने नरवणे के बयान पर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि वह किसी राजनीतिक क्षेत्र के मामले में नहीं पड़ना चाहते हैं। सोमवार को भी नेपाल के सेना प्रवक्ता ने पुराना ही रुख बनाए रखा और कहा कि वह रक्षा मंत्री की राय पर टिप्पणी करने के लिए अधिकृत नहीं हैंपोखरेल ने कहा कि उनकी सेना काठमांडू की जरूरत के हिसाब से एक्शन लेगी। उन्होंने कहा, सेना हमारे संविधान और सरकार के दिशानिर्देश के अनुसार सही वक्त आने पर अपनी भूमिका अदा करेगी।।।अगर जरूरत पड़ी तो हम लड़ेंगे। उन्होंने ये भी कहा कि नेपाल का मानना है कि कालापानी मुद्दे का समाधान राजनयिक वार्ता के जरिए ही निकाला जाए।पोखरेल की टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है जब नेपाल ने चीन के साथ अक्टूबर में हुए एक समझौते पर काम शुरू कर दिया है। इस समझौते के तहत, नेपाल को तिब्बत शहर से सामान लाने की अनुमति होगी। रेल-रोड ट्रांसपोर्ट सेवा से नेपाल अब नौ दिनों के भीतर चीन से माल की आपूर्ति हासिल करेगा। 2015 में भारत-नेपाल सीमा पर हुई अघोषित आर्थिक नाकेबंदी के बाद से ही वहां भारत-विरोधी जनभावनाओं का उभार हुआ है। 2015 के बाद से ही नेपाल में भारत पर अपनी निर्भरता कम करने की मांग तेज हुई है। चीन से समझौता भी इसी रणनीति का हिस्सा है।