राजस्थान की राजनीति में दो चेहरे चर्चा में / कांग्रेस के बागी विधायक भंवर लाल शर्मा और विश्वेंद्र सिंह दल-बदलू रहे, जिस पार्टी में गए, असंतुष्ट हुए और मोर्चा खोला

राजस्थान में सियासी उठापटक के बीच कांग्रेस से निलंबित और बागी विधायक विश्वेंद्र सिंह और भंवरलाल शर्मा चर्चा में हैं। दोनों विधायकों का राजनीतिक इतिहास विवादों में रहा है। दोनों नेता हमेशा असंतुष्ट की भूमिका में रहने के साथ दल-बदलू भी रहे हैं। दोनों ने ही दूसरी पार्टी से अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की। दोनों जनता दल और भाजपा में भी रहे हैं।

Vikrant Shekhawat : Jul 19, 2020, 10:39 PM
  • भंवर लाल शर्मा और विश्वेंद्र सिंह सबसे पहले जनता दल और फिर भाजपा में रहे, चुनाव भी लड़ा
  • दोनों नेताओं ने पहला चुनाव जनता दल से लड़ा और जीता, अब कांग्रेस के लिए मुसीबत बने

 दोनों नेता हमेशा असंतुष्ट की भूमिका में रहने के साथ दल-बदलू भी रहे हैं। दोनों ने ही दूसरी पार्टी से अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की। दोनों जनता दल और भाजपा में भी रहे हैं।

75 साल के भंवरलाल शर्मा चुरू जिले की सरदार शहर सीट से विधायक हैं। उन्होंने साल 1962 में जैतसर ग्राम पंचायत से बतौर प्रधान चुने जाने के साथ राजनीतिक करियर की शुरुआत की। वे 1982 तक ग्राम प्रधान रहे। शर्मा 1985 में पहली बार लोकदल के टिकट पर विधायक चुने गए थे। साल 2011 से अखिल भारतीय ब्राह्मण फेडरेशन के अध्यक्ष हैं।

शेखावत सरकार को गिराने की साजिश में शामिल रहे
1992 से दिसंबर 1993 तक राजस्थान में राष्ट्रपति शासन रहा। इसके बाद विधानसभा का चुनाव हुआ और एक बार फिर भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। उन्हें 116 विधायकों का समर्थन मिला। इसमें जनता दल के 6 और कुछ निर्दलीय विधायक शामिल थे। 

चुनाव से पहले भंवरलाल शर्मा भाजपा में शामिल हो गए थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें बाहर कर दिया। इसके बाद शर्मा जनता दल में शामिल हो गए और फिर 1996 में उपचुनाव में जीत गए। शर्मा पर आरोप लगे कि उन्होंने भाजपा के विधायकों के साथ मिलकर शेखावत सरकार को गिराने की कोशिश की। तब शेखावत इलाज कराने के लिए 1996 में अमेरिका गए थे। हालांकि, वे इसमें सफल नहीं रहे।




विश्वेंद्र ने करियर की शुरूआत कांग्रेस विरोधी मंच से की
भरतपुर राजवंश से ताल्लुक रखने वाले विश्वेंद्र ने भी करियर की शुरुआत कांग्रेस विरोधी मंच से की। विश्वेंद्र पहली बार 1989 में जनता दल के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए। इसके बाद वे 13वीं और 14वीं लोकसभा में भी भाजपा के टिकट पर चुने गए। यह वो दौर था, जब राजस्थान में वसुंधरा राजे का उदय हो रहा था।

विश्वेंद्र भाजपा में असहज महसूस कर रहे थे। राजे ने जुलाई 2008 में विश्वेंद्र को अपना राजनीतिक सलाहकार नियुक्त किया। लेकिन, बात जमी नहीं। विश्वेंद्र ने 2008 में भाजपा छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए। साल 2013 के चुनाव में वे राजस्थान विधानसभा के लिए चुने गए। इसके बाद पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के टिकट पर लड़े और जीतकर आए। अशोक गहलोत सरकार में पर्यटन और देवस्थान मंत्री बने। अब दोनों ही नेता एक बार फिर असंतुष्ट हैं और अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। दोनों ने सचिन पायलट के नेतृत्व में पार्टी से बगावत कर दी है।

भंवर लाल और विश्वेंद्र सिंह पर हॉर्स ट्रेडिंग के आरोप, तलाश में पुलिस
यह एक संयोग ही है कि दोनों नेता वर्तमान में चल रहे सियासी घमासान के मुख्य किरदार भी हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी ने विधायक खरीद-फरोख्त मामले में 3 ऑडियो जारी किए हैं। दावा है कि इनमें कांग्रेस विधायक भंवरलाल शर्मा, विश्वेंद्र और दलाल संजय सौदेबाजी कर रहे हैं।

भंवरलाल कह चुके हैं कि ये ऑडियो फर्जी है और बगावत के कारण सरकार बौखलाई हुई है। कांग्रेस ने दोनों को ही पार्टी से निलंबित कर दिया है। दोनों नेता सचिन पायलट के साथ किसी ऐसी जगह हैं, जिसके बारे में कोई नहीं जानता। एसओजी दोनों नेताओं के वॉयस सैंपल के लिए हरियाणा के मानेसर गई, लेकिन वे वहां नहीं मिले। फिलहाल, राजस्थान पुलिस को दोनों की तलाश है।