देश / ...इसलिए आज तक नहीं बन पाई HIV एड्स की वैक्सीन, कोरोना में भी यही डर

कोरोना वायरस की तबाही के बीच आज हर किसी को उस वैक्सीन का इंतजार है जो इस महामारी से इंसानों को बचाएगी। हालांकि वैज्ञानिक पहले ही बता चुके हैं कि किसी भी महामारी के लिए वैक्सीन तैयार करना आसान काम नहीं होता है। इसमें सालों लग सकते हैं और कई बार तो वैक्सीन बनने की संभावना नहीं होती है। एचआईवी संक्रमण के लिए भी आज तक कोई वैक्सीन नहीं बन पाई है।

AajTak : May 18, 2020, 03:24 PM
दिल्ली: कोरोना वायरस की तबाही के बीच आज हर किसी को उस वैक्सीन का इंतजार है जो इस महामारी से इंसानों को बचाएगी। हालांकि वैज्ञानिक पहले ही बता चुके हैं कि किसी भी महामारी के लिए वैक्सीन तैयार करना आसान काम नहीं होता है। इसमें सालों लग सकते हैं और कई बार तो वैक्सीन बनने की संभावना नहीं होती है। एचआईवी संक्रमण के लिए भी आज तक कोई वैक्सीन नहीं बन पाई है।

आज पूरी दुनिया 'वर्ल्ड एड्स वैक्सीन डे' मना रही है। इस लाइलाज बीमारी की वैक्सीन के लिए वैज्ञानिक सालों से कोशिश कर रहे हैं, लेकिन आज तक किसी को सफलता नहीं मिली। हालांकि वैक्सीन न होने के बावजूद इसकी रोकथाम से एड्स को काफी हद तक कंट्रोल किया जा चुका है।

साल 1984 में पहली बार सामने आए इस रोग को लेकर अमेरिका के हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विस विभाग ने कहा था कि वे दो साल के भीतर इसकी वैक्सीन तैयार कर लेंगे। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी असफलता ही हाथ लगी। आइए आज आपको बताते हैं कि आखिर क्यों वैज्ञानिकों के निरंतर प्रयास के बाद भी एचआईवी की वैक्सीन आज तक नहीं बन पाई।

1। इंसान के शरीर में रोगों से लड़ने वाला इम्यून सिस्टम एचआईवी वायरस के खिलाफ प्रतिक्रिया नहीं देता है।  रोगी के शरीर में इम्यून एंटीबॉडी प्रोड्यूस तो करता है, लेकिन वो सिर्फ रोग की गति को धीमा करती हैं, उसे रोक नहीं पाती।

2। एचआईवी के संपर्क में आने के बाद मरीज की रिकवरी होना लगभग असंभव है। एचआईवी पर इम्यून का कोई रिएक्शन न दिखने की वजह से वैज्ञानिक वैक्सीन नहीं बना सकते जो शरीर में एंटीबॉडी प्रोडक्शन की नकल कर सके।

3। शरीर में एचआईवी संक्रमण फैलने की एक लंबी अवधि होती है। इस दौरान वायरस इंसान के डीएनए में छिपकर रहता है। शरीर के लिए डीएनए में छिपे वायरस को खोजकर उसे नष्ट करना मुश्किल काम है। वैक्सीन के मामले में भी ऐसा ही होता है।

4। वैक्सीन बनाने में ज्यादातर कमजोर या नष्ट हो चुके वायरस का ही इस्तेमाल होता है, लेकिन नष्ट हो चुका एचआईवी शरीर में इम्यून को सही ढंग से प्रोड्यूस नहीं कर पाता है। वायरस के किसी भी जीवित रूप का इस्तेमाल भी बेहद खतरनाक है।

5। ज्यादातर वैक्सीन ऐसे वायरस से सुरक्षा करती है जो शरीर में रेस्पिरेटरी और गैस्ट्रो-इंटसटाइनल सिस्टम से दाखिल होती हैं। जबकि एचआईवी का संक्रमण जननांग सतह या खून के जरिए शरीर में फैलता है।

6। जानवरों पर टेस्ट करने के बाद ही किसी वैक्सीन को इंसान के लिए तैयार किया जाता है। लेकिन दुर्भाग्यवश एचआईवी के लिए जानवरों का एक भी ऐसा मॉडल नहीं है जिसकी तर्ज पर इंसानों के लिए एड्स की वैक्सीन तैयार की जा सके।

7। एचआईवी वायरस बड़ी तेजी से रूप बदलता है, जबकि वैक्सीन वायरस के एक विशेष रूप को ही टारगेट बना सकती है। वायरस के रूप बदलते ही इस पर वैक्सीन का असर काम करना बंद कर देता है। ये सभी वजहें हैं जिनके कारण आज तक एचआईवी का वैक्सीन तैयार नहीं किया जा सका।