COVID-19 Update / 15000 साल पुरानी बर्फ में मिले वायरस, वैज्ञानिकों को नहीं थी इनकी कोई जानकारी

दुनिया में कोविड-19 महामारी फैलने के बाद से वायरस (Virus) पर लोगों का ज्यादा ध्यान है। इस महामारी ने बता दिया है कि वायरस कितने ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं। वायरस के बारे में हमारे वैज्ञानिकों अभी तक पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है। हाल ही में हुई एक खोज ने भी यह साबित किया है। इस खोज में वैज्ञानको के चीन (China) के तिब्बती पठार में 15 हजार साल पुराने बर्फ के नमूनों (Ice Samples) में वायरस मिले हैं

Vikrant Shekhawat : Jul 22, 2021, 05:14 PM
Delhi: दुनिया में कोविड-19 महामारी फैलने के बाद से वायरस (Virus) पर लोगों का ज्यादा ध्यान है। इस महामारी ने बता दिया है कि वायरस कितने ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं। वायरस के बारे में हमारे वैज्ञानिकों अभी तक पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है। हाल ही में हुई एक खोज ने भी यह साबित किया है। इस खोज में वैज्ञानको के चीन (China) के तिब्बती पठार में 15 हजार साल पुराने बर्फ के नमूनों (Ice Samples) में वायरस मिले हैं जिनके बारे में इंसानों को अभी तक कोई जानकारी नहीं थी।

इन वायरस में से ज्यादातर इसलिए जिंदा रह सके क्योंकि वे हजारों सालों तक बर्फ में जमे रहे ये वायरस आज तक खोजे सभी वायरस से अलग हैं यानि इस तरह के वायरसों की हमारे वैज्ञानिकों को कोई जानकारी नहीं थी। इस अध्ययन के नतीजे माइक्रोबायोम जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। इस शोध से वैज्ञानिकों को वायरस के विकासक्रम को समझने में मदद मिल सकती है

इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने बर्फ में मिलने वाले सूक्ष्मजीवों और वायरस के अध्ययन का नया तरीका अपनाया। यह सूक्ष्मजीवों का विश्लेषण करने का बहुत ज्यादा सफाई वाली पद्धति है जिससे बर्फ में संक्रमण नहीं होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये बर्फ उन्हें ग्लेशियर से मिली जो धीरे धीरे बने थे और उनके साथ धूल और गैस के साथ बहुत सा वायरस बर्फ में जम गए।

इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता ब्रिड पोलर एंड क्लाइमेट रिसर्च सेटर के शोधकर्ता झी-पिंग झोंग ने बताया कि पश्चिमी चीन में ग्लेशियरों का अच्छे से अध्ययन नहीं किया गया है और उनका उद्देश्य पुरातन वातावरण की जानकारी हासिल करना था जिनका ये वायरस हिस्सा थे। टीम ने साल 2015 में पश्चिमी चीन से गुलिया आइस कैप से निकाली गई बर्फ का विश्लेषण किया।

ये नमूने काफी ऊंचाई से लिए गए थे जो गुलिया के शीर्ष पर थे जहां से ग्लेशियर निकलता है।  यह स्थान समुद्र स्तर से 22 हजार फुट की ऊंचाई पर है। जब बर्फ का विश्लेषण किया तो शोधकर्ताओं को 33 वायरस के जेनेटिक कोड मिले इनमें से चार ऐसे वायरस थे जो वैज्ञानिक समुदाय द्वारा पहले ही पहचाने जा चुके थे। वहीं 28 वायरस पूरी तरह से नए थे।

इस विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने पाया की आधे वायरस उस समय बच गए थ जब वे जम गए थे। इस तरह से वे बर्फ की वजह से बचे थे बर्फ से नहीं। ओहियो स्टेट में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर मैथ्यू सुलीवान का कहना है कि ये वे वायरस थे जो चरम किस्म के वातावरण में भी जिंदा रह सकते होंगे।

सुलीवान ने बताया कि इन वायरस में ऐसे जीन सिग्नेचर हैं जो ठंडे वातावरण में कोशिकों को संक्रमित कर सकते हैं। इस तरह के संकेत बताते हैं कि यह वायरस चरम हालात में कैसे खुद को बचाए रखते हैं। गुलिया आइस कैप पर मिले चार वायरस तो पहले भी पहचाने जा चुके थे। वे ऐसे वायरस परिवार से हैं  जो बैक्टीरिया को संक्रमित करते हैं। महासागरों और मिट्टी में पाए जाने वाले ये वायरस बहुत ही कम मात्रा में मिले हैं।

विश्लेषण बताता है कि वायरस मिट्टी या पौधों के साथ पनपे होंगे, लेकिन जानवरों और इंसानों के साथ नहीं। शोधकर्ताओं का यह निष्कर्ष वातावरण और ज्ञात वायरसों के डेटाबेस के आधार पर निकाला है। चूंकिवायरस की कोई सार्वभौमिक समान जीन नहीं होती है इसलिए इन नए वायरस को नाम नहीं दिया जा सका है।