Makar Sankranti 2025: जब ग्रहों के राजा सूर्य देव मकर राशि में गोचर यानी मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति का यह पर्व भारत में अत्यंत उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर सूर्य देव की पूजा-अर्चना का विधान है और इसे 'खिचड़ी पर्व' के नाम से भी जाना जाता है। आज यानी 14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति का यह पावन पर्व मनाया जा रहा है।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व
मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा, यमुना, गोदावरी और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही, इस दिन दान करने का भी विशेष महत्व माना गया है। विशेष रूप से तिल, गुड़, खिचड़ी और गर्म कपड़ों का दान करना शुभ फलदायी माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति की कथा का पाठ करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। आइए जानते हैं मकर संक्रांति से जुड़ी प्रमुख पौराणिक कथाओं के बारे में।
मकर संक्रांति की पहली कथा: सूर्य देव और शनिदेव की कथा
धर्म शास्त्रों में वर्णित एक पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य देव की दो पत्नियां थीं - संज्ञा और छाया। सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया से शनिदेव का जन्म हुआ। लेकिन सूर्य देव को शनिदेव का रंग काला होने के कारण उन्हें अपनाने में संकोच हुआ। उन्होंने अपनी पत्नी छाया और पुत्र शनिदेव के प्रति उदासीनता दिखाते हुए उन्हें अलग कर दिया। इस व्यवहार से आहत होकर छाया ने सूर्य देव को श्राप दे दिया कि वे कुष्ठ रोग से पीड़ित हो जाएंगे।छाया के श्राप के कारण सूर्य देव को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने अपने पुत्र शनिदेव से मिलकर उनके प्रति प्रेम और सम्मान प्रकट किया। शनिदेव ने भी अपने पिता का स्वागत काले तिल से किया। इस प्रेम और सौहार्द के प्रतीक स्वरूप सूर्य देव ने शनिदेव को दो राशियों - मकर और कुंभ - का स्वामी बना दिया। इसके बाद से हर साल सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश करने पर मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव को काले तिल अर्पित करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
मकर संक्रांति की दूसरी कथा: कपिल मुनि और राजा सगर की कथा
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय में कपिल मुनि नामक एक प्रभावशाली ऋषि हुआ करते थे। राजा सगर के 60,000 पुत्रों ने देव इंद्र का घोड़ा चोरी करने का झूठा आरोप कपिल मुनि पर लगाया। इससे क्रोधित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के पुत्रों को श्राप दे दिया कि वे सभी भस्म हो जाएंगे।इस श्राप से छुटकारा पाने के लिए राजा सगर के पोते अंशुमान और राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा पृथ्वी पर प्रकट हुईं और उनके पवित्र जल के स्पर्श से राजा सगर के 60,000 पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई। यह घटना मकर संक्रांति के महत्व को और भी अधिक बढ़ाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मकर संक्रांति पर पूजा और दान का महत्व
मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस दिन विशेष रूप से काले तिल, गुड़, खिचड़ी और गर्म कपड़ों का दान करना शुभ माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन किया गया दान कई गुना अधिक फल प्रदान करता है।इसके साथ ही, मकर संक्रांति के अवसर पर पतंग उड़ाने की परंपरा भी भारत के कई राज्यों में प्रचलित है। पतंग उड़ाना इस पर्व की खुशी और उल्लास को दर्शाता है।
निष्कर्ष
मकर संक्रांति न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह ऋतु परिवर्तन का भी प्रतीक है। इस दिन से दिन लंबे होने लगते हैं और सकारात्मकता का आगमन होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मकर संक्रांति का पर्व सूर्य देव की कृपा और उनके आशीर्वाद को पाने का श्रेष्ठ समय है। इस दिन दान-पुण्य करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।