News18 : May 21, 2020, 09:10 AM
दिल्ली: चीन ने भारत पर आरोप लगाकर अक्साई चिन में फिर से दादागीरी दिखाने की कोशिश की है। भारत के साथ सीमा विवाद में चीन अक्सर कोई न कोई ओछी हरकत करता रहता है। साल 2017 में डोकलाम में भी चीन के साथ भारत विवाद गहरा गया था। तब भारत ने चीन को कड़ा जवाब दिया था। माना जा रहा था कि ये विवाद बढ़ेगा लेकिन फिर चीन ने पैर पीछे खींच लिए थे। दरअसल भारत और चीन के बीच सीमा विवाद कई दशक से चला आ रहा है। ऐसे ही एक विवाद को लेकर 1966-67 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने चीन को ऐसा सबक सिखाया था जिसके जख्म आज भी हरे हैं। चीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा दी गई रणनीतिक और सशस्त्र पटखनी को भुला नहीं पाया है।
तकरीबन 53 साल पहले भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भूटान की रक्षा करने की वजह से चीन के निशाने पर आ गई थीं। तब चीन सैनिक डोकलाम में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे थे। 1966 में चीन ने भूटान का पक्ष लेने के लिए भारत की कड़ी आलोचना की थी। लेकिन बेहद नजदीकी और मित्र देश होने के भारत की प्रतिबद्धता भूटान के प्रति थी। भारत मजबूती के साथ उसके साथ खड़ा रहा।इसे लेकर दोनों देशों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा। ये आरोप-प्रत्यारोप का दौर बेहद गर्म हो गया और आखिरकार सिक्किम में सशस्त्र संघर्ष और भारत की जीत के साथ खत्म हुआ। ये चीन को इंदिरा गांधी का ऐसा सबक था जिससे वो आजतक उबर नहीं पाया है। तब चीन के शासक माओ जेदॉन्ग हुआ करते थे। जो चीन के सर्वमान्य सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। माओ जेदॉन्ग की पूरी दुनिया में हनक थी लेकिन इंदिरा गांधी ने उन्हें ऐसी रणनीतिक पटखनी दी थी जो इतिहास बन गई।भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 7 अक्टूबर 1966 में खुले तौर प्रेस कॉन्फरेंस में कहा था कि वे भूटान की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। एक तरीके से चीन को सीधे तौर पर चैलेंज था। इंदिरा गांधी ने साफ कर दिया था कि चीन का दखल डोकलाम में अवांछित है और उसे अपने कदम पीछे खीच लेने चाहिए। उधर 1962 के युद्ध में मिली जीत से चीन के हौसले बुलंद थे। उसे लग रहा था कि भारत वही गलती करेगा जो उसने पहले की थी। दरअसल ये इंदिरा गांधी की तरफ से उठाया गया ये कदम न सिर्फ भूटान की सुरक्षा करने वाला था बल्कि रणनीतिक तौर से महत्वपूर्ण भूटान में भारत का दखल भी बढ़ाने वाला था। चीन भी इस बात को समझ रहा था।भारत के इन कदमों से भड़के चीन ने सितंबर 1967 में सिक्किम में पड़ने वाले नाथूला पास पर हमला कर दिया था। उस वक्त तक सिक्किम भारत का हिस्सा नहीं हुआ करता था। वहां पर राजशाही का शासन था। भारतीय सेना ने नाथू ला पास और चो ला पास पर चीनी सेना को वापस खदेड़ दिया था। भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इन संघर्षों में भारत के 88 के सैनिकों की शहादत हुई थी। जबकि भारतीय सैनिकों ने चीन के साढ़े तीन सौ से ज्यादा सैनिक मारे थे। घायल होने वालों की संख्या 500 से ज्यादा थी। अन्य आंकड़ों के मुताबिक चीन के मृत सैनिकों की संख्या और भी ज्यादा थी।इस जीत के बाद भारतीय सेनाओं का मनोबल बहुत ऊंचा हुआ था। 1962 की हार से मिले जख्मों का भारतीय सैनिकों ने बदला ले लिया था। इंदिरा गांधी ने इसके बाद सिक्किम से बातचीत जारी रखी। बाद में 1975 में सिक्किम का विलय भारत में हो गया और वो आधिकारिक रूप से भारत का हिस्सा बन गया था।
तकरीबन 53 साल पहले भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भूटान की रक्षा करने की वजह से चीन के निशाने पर आ गई थीं। तब चीन सैनिक डोकलाम में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे थे। 1966 में चीन ने भूटान का पक्ष लेने के लिए भारत की कड़ी आलोचना की थी। लेकिन बेहद नजदीकी और मित्र देश होने के भारत की प्रतिबद्धता भूटान के प्रति थी। भारत मजबूती के साथ उसके साथ खड़ा रहा।इसे लेकर दोनों देशों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा। ये आरोप-प्रत्यारोप का दौर बेहद गर्म हो गया और आखिरकार सिक्किम में सशस्त्र संघर्ष और भारत की जीत के साथ खत्म हुआ। ये चीन को इंदिरा गांधी का ऐसा सबक था जिससे वो आजतक उबर नहीं पाया है। तब चीन के शासक माओ जेदॉन्ग हुआ करते थे। जो चीन के सर्वमान्य सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। माओ जेदॉन्ग की पूरी दुनिया में हनक थी लेकिन इंदिरा गांधी ने उन्हें ऐसी रणनीतिक पटखनी दी थी जो इतिहास बन गई।भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 7 अक्टूबर 1966 में खुले तौर प्रेस कॉन्फरेंस में कहा था कि वे भूटान की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। एक तरीके से चीन को सीधे तौर पर चैलेंज था। इंदिरा गांधी ने साफ कर दिया था कि चीन का दखल डोकलाम में अवांछित है और उसे अपने कदम पीछे खीच लेने चाहिए। उधर 1962 के युद्ध में मिली जीत से चीन के हौसले बुलंद थे। उसे लग रहा था कि भारत वही गलती करेगा जो उसने पहले की थी। दरअसल ये इंदिरा गांधी की तरफ से उठाया गया ये कदम न सिर्फ भूटान की सुरक्षा करने वाला था बल्कि रणनीतिक तौर से महत्वपूर्ण भूटान में भारत का दखल भी बढ़ाने वाला था। चीन भी इस बात को समझ रहा था।भारत के इन कदमों से भड़के चीन ने सितंबर 1967 में सिक्किम में पड़ने वाले नाथूला पास पर हमला कर दिया था। उस वक्त तक सिक्किम भारत का हिस्सा नहीं हुआ करता था। वहां पर राजशाही का शासन था। भारतीय सेना ने नाथू ला पास और चो ला पास पर चीनी सेना को वापस खदेड़ दिया था। भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इन संघर्षों में भारत के 88 के सैनिकों की शहादत हुई थी। जबकि भारतीय सैनिकों ने चीन के साढ़े तीन सौ से ज्यादा सैनिक मारे थे। घायल होने वालों की संख्या 500 से ज्यादा थी। अन्य आंकड़ों के मुताबिक चीन के मृत सैनिकों की संख्या और भी ज्यादा थी।इस जीत के बाद भारतीय सेनाओं का मनोबल बहुत ऊंचा हुआ था। 1962 की हार से मिले जख्मों का भारतीय सैनिकों ने बदला ले लिया था। इंदिरा गांधी ने इसके बाद सिक्किम से बातचीत जारी रखी। बाद में 1975 में सिक्किम का विलय भारत में हो गया और वो आधिकारिक रूप से भारत का हिस्सा बन गया था।