US-Iran War / अमेरिका को ईरान ने दिखा दिया ठेंगा! ईरानी विदेश मंत्री ने दिया बड़ा बयान

ईरान पर अमेरिकी दबाव के बीच विदेश मंत्री अराघची ने ओमान में अमेरिकी राजदूत से अप्रत्यक्ष वार्ता की पुष्टि की। उन्होंने लोगों के अधिकारों की बहाली और प्रतिबंधों को हटाने को प्राथमिकता बताया। वहीं, ट्रंप ने प्रत्यक्ष वार्ता और असफलता पर गंभीर खतरे की चेतावनी दी।

US-Iran War: ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु कार्यक्रम को लेकर जारी तनाव एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है। अमेरिका लगातार ईरान पर उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर दबाव बना रहा है, वहीं अब ईरान की ओर से एक नई कूटनीतिक पहल सामने आई है। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि वह ओमान में अमेरिकी राजदूत स्टीव विटकॉफ से अप्रत्यक्ष वार्ता करेंगे।

ओमान में संभावित अप्रत्यक्ष वार्ता

अब्बास अराघची ने अल्जीरिया की यात्रा के दौरान ईरानी सरकारी टेलीविजन को दिए गए साक्षात्कार में बताया कि यह वार्ता अप्रत्यक्ष होगी और इसमें ओमान मध्यस्थ की भूमिका निभाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि ईरान की फिलहाल प्रत्यक्ष वार्ता करने की कोई योजना नहीं है। उन्होंने कहा, “हमारा मुख्य उद्देश्य लोगों के अधिकारों की बहाली और प्रतिबंधों को हटाना है। यदि दूसरा पक्ष इच्छाशक्ति दिखाता है, तो यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।”

ट्रंप की प्रत्यक्ष वार्ता की इच्छा

इस बीच, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अलग ही रुख दिखाते हुए कहा है कि अमेरिका और ईरान के बीच प्रत्यक्ष वार्ता होगी। ट्रंप के अनुसार, यह वार्ता आवश्यक है और अगर यह सफल नहीं होती तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “मुझे यह कहना पसंद नहीं, लेकिन अगर बातचीत विफल होती है तो ईरान बहुत बड़े खतरे में पड़ जाएगा।”

तनाव की पृष्ठभूमि

गौरतलब है कि अमेरिका और इजरायल दोनों ने ईरान को उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर सैन्य हमले तक की धमकी दी है। ईरान ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अगर उस पर हमला हुआ, तो वह पूरी ताकत से जवाब देगा। यह बयानबाजी दर्शाती है कि क्षेत्र में हालात कितने नाजुक हैं और जरा सी चूक भी गंभीर संकट को जन्म दे सकती है।

वार्ता से क्या निकल सकता है?

हालांकि, वार्ता की पहल एक सकारात्मक संकेत है, खासकर ऐसे समय में जब सैन्य तनाव का खतरा लगातार मंडरा रहा है। ओमान पहले भी दोनों देशों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा चुका है और उसके पास इस तरह के संकट प्रबंधन का अनुभव है। अगर यह वार्ता सफल रहती है, तो इससे न केवल पश्चिम एशिया में स्थिरता की दिशा में कदम बढ़ेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी ऊर्जा सुरक्षा और शांति को लेकर राहत मिलेगी।