Vikrant Shekhawat : Nov 20, 2019, 04:56 PM
जयपुर | Rajasthan के निकाय चुनाव परिणामों (Municipal Election 2019 Result) में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। नागौर (Nagaur) जिले की डीडवाना (Didwana) और मकराना (Makrana) निकाय सीटों के रिजल्ट (Result) ने बीजेपी (BJP) को तगड़ा झटका दिया है। बताया जा रहा है कि हनुमान बेनिवाल (Hanuman Beniwal) की आरएलपी (RLP) से निकाय चुनावों में गठबंधन (alliance) नहीं करने के चलते बीजेपी को झटका लगा है। हालांकि बेनिवाल की पार्टी ने चुनाव नहीं लड़ा है, लेकिन बेनिवाल के समर्थकों ने कांग्रेस (Congess) को तोहफा दिया है। जो समर्थक कांग्रेस (INC) को पसंद नहीं करते थे। उन्होंने निर्दलियों (Independents) को समर्थन दिया है। बीजेपी का डीडवाना क्यों डूबाडीडवाना में 40 सीटों पर हुए चुनावों में बीजेपी को सिर्फ पांच सीटें मिली हैं। वहां निर्दलीय देश की सबसे बड़ी पार्टी से दुगुनी यानि दस सीटें लेने में कामयाब रहे हैं। 14 जगह वे दूसरे स्थान पर रहे हैं। ऐसे में साफ है कि यदि यहां आरएलपी अपना प्रत्याशी उतारती तो बोतल चुनाव निशान की जातीय लोकप्रियता के चलते उसका बोर्ड बन सकता था। यहां बीजेपी को कुल मिलाकर साढ़े सात हजार वोट भी नहीं मिल पाए हैं। चौंकाने वाली स्थिति यह है कि 13233 वोट कांग्रेस को मिले हैं, लेकिन निर्दलीय 10053 वोट पा गए।
भाजपा मकराना में मात
मकराना नगर परिषद के चुनावों में तो और भी बुरी स्थिति है। वहां बीजेपी को मात्र तीन सीट मिली हैं, जबकि कुल सीटें 55 थीं। यहां कांग्रेस को पूर्ण बहुमत 35 सीटों के साथ मिला है। यहां 17 सीटें निर्दलीय जीते हैं। बीजेपी को निर्दलियों ने चुनाव मैदान में कांग्रेस के पास तक फटकने नहीं दिया। 46 सीटों पर बागी उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे हैं। कुल वोट बीजेपी को मात्र 2314 ही मिल पाए हैं। अर्थात 55 सीटों पर औसतन पचास—पचास वोट भी नहीं मिले। यहां निर्दलियों के पास सीटें भले कम आई हैं, लेकिन वोट वे कांग्रेस से करीब दो गुना खेंच ले गए।
इससे साफ है कि लोगों की मौजूदा सरकार के प्रति भी इतना अधिक प्रेम नहीं रहा। यदि बागियों को नेतृत्व मिल जाता तो पिलानी या पूर्वी राजस्थान की तरह यहां भी बागी बोर्ड बना लेते। यह सब हालात तब हो रहे हैं, जब बीजेपी ने नागौर में आरएलपी को किनारे किया। अपने गठबंधन को नकारते हुए। हनुमान की चुप्पी और निकाय चुनावों के प्रचार में इस प्रदर्शन ने बीजेपी को साफ कर दिया है कि यदि पंचायतराज चुनाव में भी बीजेपी अपना रुख कायम रखती है तो नागौर भी उस पर कोई गौर नहीं करेगा। बीजेपी हनुमान का मान रख लेती तो शायद...ऐसा माना जाता है कि बीजेपी के पक्ष में राजस्थान की जाट बाहुल्य वाली सीटों पर हनुमान बेनिवाल का होना लोकसभा चुनाव में फायदे का सौदा रहा। बीजेपी ने इसके चलते विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन किया था, खींवसर सीट पर। परन्तु हनुमान बेनिवाल द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे और उनके सिपहसालार युनूस खान पर किए एक ट्वीट के बाद प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने गठबंधन निकाय चुनाव में जारी नहीं रखने का ऐलान किया था। बीजेपी का प्रदेशाध्यक्ष जाट समाज से होने, मकराना का विधायक बीजेपी से होने के बावजूद पार्टी की बुरी गत आरएलपी की जीत की ओर इशारा करती है। जिस पर बीजेपी को मंथन की जरूरत है।
भाजपा मकराना में मात
मकराना नगर परिषद के चुनावों में तो और भी बुरी स्थिति है। वहां बीजेपी को मात्र तीन सीट मिली हैं, जबकि कुल सीटें 55 थीं। यहां कांग्रेस को पूर्ण बहुमत 35 सीटों के साथ मिला है। यहां 17 सीटें निर्दलीय जीते हैं। बीजेपी को निर्दलियों ने चुनाव मैदान में कांग्रेस के पास तक फटकने नहीं दिया। 46 सीटों पर बागी उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे हैं। कुल वोट बीजेपी को मात्र 2314 ही मिल पाए हैं। अर्थात 55 सीटों पर औसतन पचास—पचास वोट भी नहीं मिले। यहां निर्दलियों के पास सीटें भले कम आई हैं, लेकिन वोट वे कांग्रेस से करीब दो गुना खेंच ले गए।
इससे साफ है कि लोगों की मौजूदा सरकार के प्रति भी इतना अधिक प्रेम नहीं रहा। यदि बागियों को नेतृत्व मिल जाता तो पिलानी या पूर्वी राजस्थान की तरह यहां भी बागी बोर्ड बना लेते। यह सब हालात तब हो रहे हैं, जब बीजेपी ने नागौर में आरएलपी को किनारे किया। अपने गठबंधन को नकारते हुए। हनुमान की चुप्पी और निकाय चुनावों के प्रचार में इस प्रदर्शन ने बीजेपी को साफ कर दिया है कि यदि पंचायतराज चुनाव में भी बीजेपी अपना रुख कायम रखती है तो नागौर भी उस पर कोई गौर नहीं करेगा। बीजेपी हनुमान का मान रख लेती तो शायद...ऐसा माना जाता है कि बीजेपी के पक्ष में राजस्थान की जाट बाहुल्य वाली सीटों पर हनुमान बेनिवाल का होना लोकसभा चुनाव में फायदे का सौदा रहा। बीजेपी ने इसके चलते विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन किया था, खींवसर सीट पर। परन्तु हनुमान बेनिवाल द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे और उनके सिपहसालार युनूस खान पर किए एक ट्वीट के बाद प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने गठबंधन निकाय चुनाव में जारी नहीं रखने का ऐलान किया था। बीजेपी का प्रदेशाध्यक्ष जाट समाज से होने, मकराना का विधायक बीजेपी से होने के बावजूद पार्टी की बुरी गत आरएलपी की जीत की ओर इशारा करती है। जिस पर बीजेपी को मंथन की जरूरत है।