Vikrant Shekhawat : Nov 12, 2021, 11:01 AM
नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बांग्लादेशी नागरिक कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर को पद्मश्री सम्मान से समानित किया है। 71 साल के जहीर को 1971 के युद्ध नायक के तौर पर जाना जाता है। 1970-71 के दौरान जहीर सियालकोट सेक्टर में तैनात थे। वह कई खुफिया डॉक्यूमेंट्स और मैप के साथ भारत पहुंचने में कामयाब रहे थे। जब वह भारत पहुंचे थे तो उनकी जेब में सिर्फ 20 रुपये थे। इन डॉक्यूमेंट्स में पूर्वी पाकिस्तान में अत्याचार बढ़ाने और नरसंहार की योजना आदि के बारे में बताया गया था। मुक्ति वाहिनी को दिया था ट्रेनिंगशुरू में जहीर को पाकिस्तानी जासूस के तौर पर देखा गया और उन्हें हिरासत में ले लिया गया। जल्द ही उन्हें पठानकोट लाया गया जहां सीनियर सैन्य अधिकारियों ने उनसे पूछताछ की। फिर विस्तार से बातचीत करने पर पता चला कि वह बहुत महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंट्स के साथ भारत पहुंचे हैं और बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) की मदद करना चाहते हैं। पठानकोट के बाद जहीर को दिल्ली भेजा गया जहां वह महीनों तक एक सेफ हाउस में रहे। बाद में उन्होंने पाकिस्तानी सेना से मुकाबला करने के लिए गुरिल्ला युद्ध में मुक्ति वाहिनी को ट्रेनिंग देने का भी काम किया था।जब भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को बचायापाकिस्तान सेना को जब जहीर के बारे में पता चला था तो उनके लिए मौत की सजा की वारंट निकाली गई। पाकिस्तान में उनके परिवार को बुरी तरह से टॉर्चर किया गया लेकिन उनकी मां और बहन किसी तरह से सुरक्षित ठिकाने तक पहुंच गयीं थी। कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि जहीर आज भी पाकिस्तान के लिए मोस्ट वांटेड हैं।पाकिस्तान से भागने के कारणों को याद करते हुए जहीर बताते हैं कि जिन्ना का पाकिस्तान हमारे लिए कब्रिस्तान बन गया। हमें सिर्फ मार्शल लॉ मिला। जिन्ना ने कहा कि हमारे पास समान अधिकार होंगे लेकिन हमारे पास नहीं थे। हमें पाकिस्तान के नौकरों के रूप में माना जाता था।भारतीय सेना की तारीफ करते हुए वह कहते हैं कि वह भारतीय सेना ही थी जिसने हजारों पाकिस्तानी सैनिकों की जान बचाई थी। अगर भारतीय सेना ने उनकी मदद नहीं की होती तो मुक्ति बाहिनी के लड़ाकों उन्हें मार देते।यह लेफ्टिनेंट कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर रिटायर्ड की कहानी है, जो बांग्लादेश सेना में सेवा के लिए गए और एक हाई रैंक अधिकारी रहे हैं।