बीकानेर । सीमा पार पाकिस्तान के बलूचिस्तान में दुर्लभ पक्षी होबारा बस्टर्ड ( तिलोर ) की ब्रीडिंग बड़े पैमाने पर हो रही है। वहां से छोड़े गए पक्षी राजस्थान की पश्चिमी सीमा में पहुंच रहे हैं। भारत-पाक सीमा की गज्जेवाला पोस्ट के पास दो दिन पहले एक तिलोर मिला है, जिसके पंजों में पहनी रिंग के जरिये उसकी हिस्ट्री पता चली है।
बलूचिस्तान से अक्टूबर 2019 में 100 तिलोर छोड़े गए थे जिनमें से एक 23 जून 2020 को गज्जेवाला में जख्मी हालत में बीएसएफ को मिला था। इससे पूर्व आठ अप्रैल को जैसलमेर के नाचना में भी एक तिलोर पाया गया था। दोनों ही फीमेल हैं। उन्हें जोधपुर के माचिया बायोलॉजिकल पार्क में रखा गया है। वहां उन पर रिसर्च की जाएगी।
जानकारी मिली है कि पाकिस्तान के बलूचिस्तान में चोलिस्तान डेजर्ट नागवेली में होबारा बस्टर्ड का हैचिंग सेंटर है। आबूधाबी की इंटरनेशनल फ़ॉर होबारा कंजर्वेशन (आईएफएचसी) और होबारा फाउंडेशन इंटरनेशनल पाकिस्तान का एक संयुक्त प्रोजेक्ट चल रहा है। आबूधाबी की सोसायटी तिलोर की ब्रीडिंग के लिए पाकिस्तानी सोसायटी को फंड और सुविधाएं मुहैया कराती है। वहां से अलग-अलग रंग की रिंग पहनाकर हर साल सैकड़ों तिलोर छोड़े जाते हैं जो साउथ एशिया और मिडिल एशिया में चले जाते हैं। प्रथम दृष्टया इसका उद्देश्य इस दुर्लभ प्रजाति को बचाकर जनसंख्या में इजाफा करना बताया जा रहा है।
रिंग से कैसे पता चलती है हिस्ट्री
कुरजा, तिलोर जैसे अनेक माइग्रेटेड बर्ड्स दुनियाभर में घूमते हैं। उनका संरक्षण करने वाली संस्थाएं उनके पंजों में रिंग पहना देती हैं। इससे उन्हें पता रहता है कि उनका बर्ड विश्व में कब-कहां विचरण कर रहा है। गज्जेवाला में मिले तिलोर के पंजों में लाल, नीली, हरी और एक मेटल की रिंग मिली है।
वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ डीएल बोहरा के अनुसार मेटल वाली रिंग यूएई की है। रिंग पर नंबर और कोडिंग के कारण पक्षी की हिस्ट्री का पता लगाया जा सकता है। नीले रिंग की तब डाली गई थी, जब है बच्चा था। लाल रंग की रिंग जेंडर की जानकारी देती है। फीमेल के पंजे में यह रिंग डाली जाती है। हरे रंग की रिंग देश की पहचान बताती है। यानी तिलोर पाकिस्तान से छोड़ा गया है।
शिकार के कारण कम हुए तिलोर: तिलोर की संख्या शिकार के कारण कम हो गई। पाकिस्तान और अरब देशो में इसका मीट शौक से खाया जाता है। पाकिस्तान ने बाकायदा इसका शिकार करने के लाइसेंस दे रखे हैं। शिकार के लिए पालतू बाज लेजर फाल्कन का उपयोग किया जाता है। बंदूक से भी शिकार किया जाता है।
पाकिस्तान में हो रही ब्रीडिंग
यह सही है कि पाकिस्तान में तिलोर की बड़े पैमाने पर ब्रीडिंग हो रही है। इंटरनेट के जरिये उसकी पूरी जानकारी मिली है। हालांकि यह एक रिसर्च का पार्ट बताया जा रहा है। तिलोर रेड बुक में है। इसकी जनसंख्या बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं। राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर सहित कई इलाकों में पाए जाते हैं। बीकानेर के जोड़बीड़ कंजर्वेशन रिजर्व में भी उनकी साइटिंग हो चुकी है। - डीएल वोहरा, वाइल्डलाइफ विशेषज्ञ
कब कितने तिलोर छोड़े
- 2015 - 600
- 2016 - 200
- 2017 - 500
- 2019 - 100
बीएसएफ को मिला था घायल तिलोर
सीमावर्ती क्षेत्र में बीएसएफ को तिलोर घायल अवस्था में मिला था, जिसे उन्होंने वन विभाग के सुपुर्द किया। तिलोर को जोधपुर भेज दिया है। उसे वहां बायोलॉजिकल पार्क में रखा है। वाइल्ड लाइफ के डॉक्टर उसकी जांच करेंगे। वीएस जोरा, डीएफओ, वाइल्डलाइफ, बीकानेर