Vikrant Shekhawat : Sep 03, 2019, 06:04 PM
एक था आनन्दपाल! अपराध जगत का ऐसा कुख्यात चेहरा, जिसने राजस्थान पुलिस की नाक में सालों तक दम किए रखा। एनकाउंटर में मारे जाने के बाद भी प्रदेश की कानून और शांति व्यवस्था बेदम हुई और लाश रखकर कई दिनों तक हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया, जिससे राज्य की राजनीति भी अछूती नहीं। आनन्दपाल एनकाउंटर के बाद जातीय और राजनीतिक लाभ के लिए लोगों ने उसके नाम को खूब भुनाया भी। ऐसे में जब अपराध की दुनिया में उसके पड़ने वाले कदम जहां से तेज हुए, उस मामले में आए फैसले ने उसी कहानी एक बार फिर से याद दिलाती है।
आनन्दपाल करीब दो साल पहले मालासर गांव में राजस्थान पुलिस और एसओजी के संयुक्त आपरेशन में मारा गया। दो साल तक उसने राजस्थान पुलिस को छकाया। आपरेशन के दिन दो—तीन घंटे तक गोलीबारी में छह गोलियां आनंदपाल के सीने में लगी और वह मारा गया। उसके दो साथी पुलिस के हत्थे चढ़े। राजनीति से लेकर आपराधिक गैंग बनाने, बदमाशी से लेकर लूट, तथा चुनाव में हाथ आजमाने वाले आनन्दपाल को कुछ लोगों ने मसीहा तक बता दिया। परन्तु अपराध की दुनिया में कदम रखने से पहले वह वैसा नहीं था...।
फिर सुर्खियों में आनन्दपाल का मामला, भाई मनजीत समेत तीन को खेराज हत्याकांड में आजीवन कारावास
पहले शिक्षक बनना चाहता था, फिर दाउद
लाडनूं तहसील के सांवराद गांव का रहने वाला आनंदपाल सिंह पढ़—लिखकर कॅरियर बनाना चाहता था। बांगड़ कॉलेज डीडवाना से स्नातक करने के बाद उसने बीएड की। बताया जाता है कि आनन्दपाल खुद भेद—भाव का शिकार था। यहां तक कि उसकी खुद की बन्दौली तक घोड़ी पर निकालने लिए उसे अपने मित्र जो कि बाद में उसका दुश्मन बना की मदद लेनी पड़ी। वह शिक्षक बनना चाहता था, लेकिन अपराध की राह में ऐसा भटका कि दाउद इब्राहिम उसका आदर्श हो गया। वह उसकी स्टाइल फॉलो करता था। जो युवक पढ़ लिखकर चॉक थामना चाहता था, वह बुलेटप्रूफ जैकेट पहनकर खून की होली खेलने का शौक पाल बैठा। बताया जाता है आनंदपाल जब जेल में बंद था, उस वक्त वह दाऊद पर लिखी किताबें पढ़ता था। वह दाउद की तरह जिदंगी जीना चाह रहा था। दाऊद की तरह आनंदपाल को भी पार्टियां पसंद थी। वह दाऊद की तरह ही गॉगल पहनता था और काफी फैशनेबल था।
राजनीति ने दिया पहला धक्का
आनन्दपाल ने साल 2000 में हुए पंचायत समिति के चुनाव में पंचायत समिति का चुनाव जीता और प्रधान के चुनाव में पूर्व कैबिनेट मंत्री हरजीराम बुरड़क के पुत्र जगन्नाथ से दो वोटों से चुनाव हार गया। उसने चुनाव में धांधली की शिकायत की। इसी साल पंचायत समिति के स्थायी समितियों के चुनाव में हरजीराम बुरड़क से उसका विवाद हो गया। और आनन्दपाल का राजनीति में एक मुकाम हासिल करने का सपना चकनाचूर हो गया। कहा जाना गलत नहीं है कि आनन्दपाल को राजनीति ने पहला धक्का दिया, जिससे फिसलकर वह अपराध के दलदल में जा फंसा और निकल नहीं पाया। उसने निकलने की कोशिश भी नहीं की और उसी को वह अपना पेशा बना बैठा और शांत माने जाने वाले राजस्थान प्रदेश में अपराधों की नई बानगी ने फिजाओं में बारूदी धुएं की ऐसी गंध भरी कि सांस लेना भारी हो चला है।
ऐसे आया अपराध की दुनिया में
शराब व्यवसाई बलबीर बानूड़ा के साले विजयपाल और राजू ठेहठ के बीच विवाद होने के बाद आनंदपाल अपराध की दुनिया मेंआया। ठेहठ ने विजयपाल की हत्या करवा दी। इससे बलबीर और राजू ठेहठ की गैंग अलग हो गई। 2006 में आनंदपाल ने बानूड़ा की गैंग जॉइन कर ली और अपराध की दुनिया में आगे बढ़ता चला गया। आनंदपाल ने लूट, डकैती, गैंगवार व हत्या की दो दर्जन से अधिक वारदातों को अंजाम दे डाला। 2011 तक खुद गोदारा मर्डर, फोगावट हत्याकांड से कुख्यात हुआ। इसके बाद आनंदपाल ने अपना आतंक रोका नहीं और राजस्थान में अपना वर्चस्व बनाने की राह पर निकला। डीडवाना में ही 13 मामले दर्ज थे, जहां 8 मामलों में उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया था।
जीवनराम से दुश्मनी और उसकी दिन दहाड़े हत्या
आनंदपाल और जीवनराम कॉलेज के दिनों से ही बहुत अच्छे मित्र थे। आनन्दपाल की घोड़ी पर बिन्दौरी जीवनराम ने ही निकलवाई थी लेकिन चुनावी राजनीति में हार के जातीय समीकरण और शराब के धंधे में अलग होने के बाद जीवनराम गोदारा से उसके संबंध बिगड़ते चले गए। इसी बीच खेराज हत्याकांड के अहम गवाह महीप कुमार को लेकर जीवनराम द्वारा संरक्षण दिए जाने से उनके बीच दुश्मनी बढ़ती गई। खेराज हत्याकांड के बाद एक साथ काम करने वाले दो दोस्त एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। 27 जून 2006 में आनंदपाल ने डीडवाना में दिन दहाड़े जीवण गोदारा की दुकान में बैठे गोलियों से भूनकर हत्या कर दी और अपने गैंग के सदस्यों के साथ फरार हो गया। यह वही महीप कुमार है, जिसकी पुरानी गवाही के आधार पर न्यायालय ने आनन्दपाल के भाई को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इस घटना के बाद ही आनंदपाल अपराध की दुनिया में चर्चा में आया और इस हत्याकांड के बाद दिनों-दिन वह पुलिस की नजर में बड़ा अपराधी बन गया था। 2011 तक वह लगातार खुद अपराध को अंजाम देता रहा। परन्तु 2011 से 2015 के बीच अपने गुर्गों से ही वारदात करवाता। 10—20 युवकों वाला एक छोटा—मोटा गिरोह दो सौ युवकों की गैंग में बदल गया। राजस्थान में संगठित अपराधों का ऐसा सिलसिला शुरू हो गया, जो प्रदेश की पहचान नहीं थी।
जेल से ही चलती थी गैंग, मेगा हाईवे ने किया मालामाल
पूरी टीम तैयार होते ही आनंदपाल ने जयपुर के निकट फागी में एसओजी के सामने सरेंडर कर दिया। इसके बाद आनंदपाल जेल से ही गैंग को चलाने लगा और फिरौती, वसूली, मारकाट का सिलसिला चलता रहा। आनंदपाल को करीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि आनंदपाल ने हवाला, हुंडी के रुपए इस कदर लूटे कि वह करोड़पति बन गया। इस दौरान जयपुर-नागौर का मेगा हाईवे बनने लगा, डीडवाना से लेकर कुचमान तक जमीन की कीमत आसमान छूने लगी। आनंदपाल ने गुर्गों व बंदूक के दम पर सैंकड़ों बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया, जो मेगा हाईवे के किनारे थी। आनंदपाल ने एक-एक कर दर्जनों व्यापारियों, उधोगपतियों को निशाना बनाया। हालात ऐसे पैदा हुए कि लोग आपसी झगड़े में भी पुलिस की बजाए आनंदपाल की मदद लेने लगे।
जेल में शाही लाइफ जीता था
जेल से भागने के लिए आनंदपाल ने जेल के डिप्टी से लेकर मुख्य प्रहरी को धन-बल के प्रभाव से काबू में कर लिया था। बताया जाता है कि जेल में उसकी एक महिला सहयोगी अनुराधा भी मिलने आती थी। अजमेर हाई सिक्यूरिटी जेल के सामने चाय की दुकान चलाने वाले रविकुमार रील ने अपने बयान में बताया था कि उसकी दुकान से रोज सुबह 5 लीटर दूध व 5 लीटर छाछ, जबकि शाम को 6 लीटर दूध जाता था। आनंदपाल के खाते में हर महीने 20 हजार रुपए का दूध-छाछ जेल में पहुंचाए जाते थे। अजमेर का रहने वाला महेंद्र सिंह हर सप्ताह इसका एडवांस हिसाब करता था। इसमें से आधा से भी ज्यादा दूध कुख्यात कैदी आनंदपाल खुद पीता था।
मेरे उड़न छू होने का वक्त आ गया!
यहां से उसे अजमेर की हाई सिक्योरिटी जेल में शिफ्ट किया गया। इससे तीन दिन पहले ही उसने अपने साथियों और जेल अधिकारियों से कहा था कि अब उसके फुर्र होने का वक्त आ गया है। लेकिन उसका यह संकेत जेल अधिकारी समझ ही नहीं पाए थे। आनंदपाल अक्सर कहा भी करता था कि जेल तो टुच्चे (छोटे) अपराधी तोड़ते हैं वो तो पुलिस पहरा तोड़कर भागेगा। आनंदपाल ने अपनी इस बात को 3 सितम्बर 2015 को साबित भी कर दिखाया। वापसी में नागौर जिले के परबतसर के निकट आनन्दपाल सिंह का छोटा भाई विक्की अपने साथियों के साथ हथियार से लैस होकर आया और उसने पुलिस वाहन पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। विक्की अपने बड़े भाई आनन्दपाल सिंह, श्रीवल्लभ और सुभाष मुंड को भगा ले गया। दो साल तक वह भागता रहा। जून 2017 में उसकी पुलिस के साथ मुठभेड़ हुई और वह एनकाउंटर में मारा गया। उसके बाद सांवराद में उसकी लाश रखकर कई दिन तक प्रदर्शन किया गया। इस मामले में सीबीआई को जांच दी गई थी।
भाई को हुई सजा
3 सितम्बर को आए एडीजे कोर्ट डीडवाना के फैसले में 2001 में हुई हत्या के मामले में आनन्दपाल के छोटे भाई मंजीतपाल समेत तीन को आजीवन कारावास की सजा हुई है। जिस मामले में 3 सितम्बर 2019 को एडीजे डीडवाना ने फैसला सुनाया है। वह आनन्दपाल के जीवन का टर्निंग पाइंट था। 2001 में हुई इस हत्या के बाद उसकी अपने दोस्त जीवनराम गोदारा से अदावत हो गई। जीवनराम ने मुख्य गवाह महीप मास्टर को शरण दी तो आनन्दपाल ने जीवनराम की दिन दहाड़े हत्या कर दी। बाद में आनंदपाल ने मुख्य गवाह महीप मास्टर को गैंगस्टर अनुराधा के जरिये अगुआ करवा लिया और इस मामले में बयान बदलवा दिए। लेकिन कोर्ट ने दुबारा दिए उसके बयानों को रिकॉर्ड में नहीं लेते हुए पहले दिए बयानों के आधार पर ही आज सजा सुनाई। एक वर्ष पूर्व इस मामले में पुलिस ने अनुराधा को गिरफ्तार किया था।
तीन आरोपी मर चुके
यह मामला लगातार 18 साल तक डीडवाना कोर्ट में चला इस दौरान तीन आरोपियों की मौत भी हो गई जिनमे सबसे अहम था खुद आनंदपाल जिसकी 2017 में हुए पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई। इससे पहले मनीष हरिजन की भी गैंगवॉर के दौरान मौत हो गई थी। सुरपत सुराणा की भी दौरान ए ट्रायल मौत हो गई थी।