Vikrant Shekhawat : Mar 19, 2022, 02:28 PM
आज मेरा नियमित स्वास्थ्य चेकअप के लिए दिल्ली जाने का कार्यक्रम था, लेकिन मैं नहीं जा रहा हूं। मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं और अपने डॉक्टर को बॉक्सिंग के लिए भी चुनौती दे सकता हूं। तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने शुक्रवार को यह बात अपने शुभचिंतकों को अपने स्वास्थ्य के प्रति निश्चिंत करते हुए कही।कोरोना महामारी के चलते दलाईलामा दो वर्षों के लंबे अंतराल के बाद अपने अनुयायियों को पहली बार ऑफलाइन टीचिंग दे रहे थे। उन्होंने कहा कि तिब्बत में पवित्र लोसर पर्व के बाद जातक कथाओं के वाचन की परंपरा रही है। इस दौरान दलाईलामा ने उपस्थित लोगों को महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाओं यानी जातक कथाओं की संक्षेप शिक्षा भी दी।कार्यक्रम में तिब्बतियों को तिब्बती भाषा का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि राजा स्त्रोड चाड गंपो ने तिब्बतियों के लिए एक अपनी भाषा की जरूरत महसूस की थी। तब उन्होंने तिब्बती भाषा के विकास के लिए चीनी या पाली भाषा के बजाय संस्कृत भाषा को देवनागरी लिपि का आधार बनाया था।आठवीं शताब्दी के राजा ने बौद्ध धर्म के करीब 100 सूत्रों और 200 शास्त्रों का तिब्बती भाषा में अनुवाद करवाया। इस प्रकार करीब 300 पोथियों के साथ तिब्बती भाषा में एक समृद्ध साहित्य है। उन्होंने कहा कि चीनी खाना निश्चित तौर पर स्वादिष्ट है, लेकिन जहां अक्षर की बात है तो तिब्बती भाषा सबसे श्रेष्ठ है। उन्होंने कहा कि तिब्बती भाषा हमारे लिए गर्व का विषय है। उसके बाद उन्होंने स्कूली बच्चों को तिब्बती भाषा का महत्व बताते हुए कहा कि मैंने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से ऐसे स्कूल स्थापित करने के लिए मदद मांगी थी, जहां तिब्बती बच्चे तिब्बती में शिक्षा हासिल कर सकें। उन्होंने कहा कि भले ही वे शारीरिक रूप से निर्वासन में हो भारत और अन्य जगहों पर तिब्बती अपनी खुद की परंपराओं, धर्म और संस्कृति को करीब से महसूस करते हैं।इसके बाद यहां सुगलखांग स्थित मुख्य तिब्बती मठ में बोधिचित्त यानी जागृत मन उत्पन्न करने के लिए एक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया। करीब दो वर्ष बाद ऑफलाइन हो रहे कार्यक्रम में बड़ी संख्या में उनके अनुयायी उपस्थित रहे।कोरोना से पहले दिसंबर 2019 में दी थी ऑफलाइन टीचिंगधर्मगुरु दलाईलामा ने दिसंबर 2019 में अंतिम बार ऑफलाइन टीचिंग दी थी। इसके बाद चीन में कोविड की दस्तक के बाद जनवरी 2020 से धर्मगुरु दलाईलामा ने ऑफलाइन टीचिंग और बाहरी लोगों से मिलना बंद कर दिया था। दलाईलामा सिर्फ एक बार जोनल अस्पताल तक वैक्सीन लगवाने अपने निवास से बाहर आए थे।दूसरी वैक्सीन उन्होंने अपने घर पर ही ली थी। इसके बाद कोरोना की दूसरी लहर कम होने के बाद 15 दिसंबर से दलाईलामा ने दुनिया के प्रमुख लोगों से मिलना जुलना शुरू किया था। दलाईलामा निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रधानमंत्री पेंपा सेरिंग और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से अपने निवास स्थान मैकलोडगंज में पहली बार मिले थे। अब शुक्रवार को दो साल बाद दलाईलामा ने खुद मुख्य बौद्ध मंदिर में आकर अनुयायियों को टीचिंग दी।