Vikrant Shekhawat : Jan 08, 2025, 09:00 PM
Delhi Assembly Elections: दिल्ली की राजनीति में एक बार फिर से पैर जमाने की कोशिश कर रही कांग्रेस इस बार दलित-मुस्लिम (डीएम) फैक्टर को केंद्र में रखकर चुनावी रणनीति बना रही है। हालांकि, इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों के कारण उसकी राह मुश्किल होती दिख रही है। खासतौर पर समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की प्रमुख ममता बनर्जी ने आम आदमी पार्टी (आप) को समर्थन देने का ऐलान कर कांग्रेस की रणनीति को झटका दिया है।
2013 में डीएम फैक्टर की ताकत
2013 के चुनावों में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की हार के बावजूद कांग्रेस ने आठ सीटें जीती थीं। इनमें सुल्तानपुर माजरा, गांधी नगर, बल्लीमारान और चांदनी चौक जैसी सीटें शामिल थीं। इन सीटों पर कांग्रेस की जीत का श्रेय मुख्य रूप से दलित-मुस्लिम वोट बैंक को दिया गया था। इस बार भी कांग्रेस इन्हीं समुदायों पर भरोसा कर रही है ताकि वह दिल्ली विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कर सके।दलित और मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस का फोकस
दिल्ली में 12 आरक्षित और लगभग 8 मुस्लिम बहुल सीटें हैं। इन 20 सीटों पर दलित और मुस्लिम वोटर्स का प्रभाव निर्णायक होता है। 1998 से 2013 तक कांग्रेस ने इन सीटों पर बेहतरीन प्रदर्शन किया था। पार्टी का मानना है कि इन्हीं सीटों पर जीत हासिल कर सत्ता में वापसी की राह बनाई जा सकती है।कांग्रेस की रणनीति और उम्मीदें
कांग्रेस को उम्मीद है कि उसका पारंपरिक दलित और मुस्लिम वोट बैंक इस बार वापस लौटेगा। इसके लिए पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने संदीप दीक्षित और सीएम उम्मीदवार आतिशी के सामने अलका लांबा को उतारा है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा का कहना है कि कांग्रेस जब वापसी करती है, तो अपने साथ नए वोटर भी लेकर आती है।मुश्किलें कम नहीं
हालांकि, कांग्रेस की राह आसान नहीं है।- इंडिया गठबंधन की चुनौती: गठबंधन को बचाने के लिए कांग्रेस दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ रही है। केंद्रीय नेतृत्व का सक्रिय रूप से चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा न लेना भी पार्टी की स्थिति कमजोर कर सकता है।
- त्रिकोणीय मुकाबला: आप और बीजेपी के बीच मुकाबले को त्रिकोणीय बनाना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है।
- सपा और टीएमसी का समर्थन: सपा और टीएमसी द्वारा आप को समर्थन देना कांग्रेस की रणनीति पर बड़ा असर डाल सकता है। खासकर यूपी और बंगाली वोटरों के बीच यह फैसला कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।