NavBharat Times : Apr 30, 2020, 09:04 PM
नई दिल्ली | क्या कोरोना वायरस महामारी से बचने के लिए सभी लोगों को इससे संक्रमित होने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए? हो सकता है कि यह आपको मजाक लगे या यह सुनकर आपको गुस्सा आए लेकिन दुनिया में इसे भी एक विकल्प के तौर पर देखा जाने लगा है। अभी दुनिया में विशेषज्ञों के बीच इसे लेकर बहस छिड़ी हुई है कि ऐसा किया जाना चाहिए या नहीं। इसके पक्ष में भी दलीलें आ रही हैं तो इसके खिलाफ भी। आखिर इस विकल्प का आधार क्या है और क्यों इस तरह की चर्चा छिड़ी है, आइए समझते हैं।क्या है वह प्लान बी, जिस पर छिड़ी है बहसदरअसल, लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग हमेशा के लिए लागू नहीं हो सकता। जब तक कोविड-19 की वैक्सीन नहीं बन जाती तब तक तो खतरा बहुत ही ज्यादा है। तो क्या वैक्सीन बनने तक लॉकडाउन जारी रहे? बिल्कुल नहीं, क्योंकि तब बीमारी से ज्यादा लोग इसे रोकने की इस कवायद से मरने लगेंगे। इकॉनमी चौपट हो जाएगी, अभूतपूर्व बेरोजगारी बढ़ जाएगी। हो सकता है कि लोगों के भूखों मरने की नौबत तक आ जाए।वैक्सीन बनने तक लॉकडाउन में रहना बहुत मुश्किलऐसी सूरत में वैक्सीन बनने तक 'हर्ड इम्यूनिटी' के कॉन्सेप्ट से लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं। इसी को प्लान बी के तौर पर बताया जा रहा है कि लोगों को खुला छोड़ दें संक्रमण के लिए, इससे 'हर्ड इम्यूनिटी' विकसित होगी और आखिरकार महामारी खत्म हो जाएगी। लेकिन इसमें इतना ज्यादा जोखिम है कि दुनिया भर के विशेषज्ञ इसे लेकर बंट चुके हैं।तो क्या एक बड़ी आबादी मरने के लिए छोड़ दी जाए?कई विशेषज्ञ इस विकल्प का तीखा विरोध कर रहे हैं। अगर लोगों को वायरस के संक्रमण में आने के लिए छोड़ दिया जाए तो जोखिम वाले लोग जैसे बुजुर्ग और पहले से गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों के साथ यह बहुत बड़ा अन्याय होगा। ऑस्ट्रेलिया के एपिडेमियोलॉजिस्ट गिडियन मेयरोविट्जकाट्ज ने द गार्डियन में लिखा, 'इसके लिए हमें इकॉनमी की बलि वेदी पर जोखिम वाले लोगों की बलि देनी पड़ेगी।'विश्व स्वास्थ्य संगठन भी विरोध मेंक्या हर्ड इम्यूनिटी के लिए लोगों को संक्रमित होने के लिए खुला छोड़ देना बेहतर विकल्प है? विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह कतई समझदारी भरा नहीं है।स्वीडन में कोई लॉकडाउन नहीं हुआ, बढ़ रही इम्यूनिटीस्वीडन ने अपने यहां लॉकडाउन नहीं किया। इस वजह से वहां पड़ोसी देशों के मुकाबले ज्यादा लोगों की मौत जरूर हुई लेकिन इसके बावजूद वहां कई अन्य यूरोपीय देशों के मुकाबले कोरोना की स्थिति अच्छी है।बहुत जोखिमभरा है यह विकल्पहर्ड इम्यूनिटी के लिए लोगों को संक्रमित होने के लिए छोड़ना बहुत खतरनाक हो सकता है। 60 से 85 प्रतिशत आबादी संक्रमित हो जाए तो इसके विनाशकारी नतीजों की कल्पना तक नहीं की जा सकती। तब लाखों लोग या हो सकता है कि करोड़ में लोगों की मौत हो जाए। कनाडा के चीफ पब्लिक हेल्थ ऑफिसर थेरेसा टैम ने चेताया है कि अगर ऐसा किया गया तो मौत ही नहीं, बीमारी के असर भी खतरनाक साबित होंगे। उन्होंने कहा, 'सिर्फ मौत ही चिंता की बात नहीं है। बीमारी से जो जिंदा बच रहे हैं उनके किडनी, लिवर, हृदय और दिमाग को होने वाला नुकसान भी बड़ी चिंता की बात होगी।'क्या है 'हर्ड इम्यूनिटी'दरअसल जब बहुत सारे लोग किसी संक्रामक बीमारी के प्रति इम्यून हो जाते हैं यानी उनमें उसके प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है तो वह बीमारी बाकी बचे असंक्रमित लोगों को अपनी चपेट में नहीं ले पाती है क्योंकि पूरा समूह ही इम्यून हो चुका होता है। इसी को हर्ड इम्यूनिटी कहते हैं। यह प्रतिरोधक क्षमता या तो वैक्सीन के जरिए मिलेगी या फिर बड़ी तादाद में लोगों के संक्रमित होने और उनके भीतर संबंधित बीमारी के प्रति इम्यूनिटी विकसित होने से होगी। उदाहरण के तौर पर न्यूमोनिया और मेनिन्जाइटिस जैसी बीमारियों की वैक्सीन देकर बच्चों को इसके प्रति इम्यून बनाने का नतीजा यह हुआ कि वयस्क लोगों के इन बीमारियों की चपेट में आने की गुंजाइश बहुत कम हो गई।कैसे काम करती है हर्ड इम्यूनिटीअगर कुछ लोगों में ही किसी बीमारी के प्रति इम्यूनिटी है तो वह संक्रामक बीमारी आसानी से फैलती है। अगर ज्यादातर लोगों में वैक्सीन या एक्सपोजर की वजह से इम्यूनिटी आ जाए तो वायरस का फैलना रुक जाता है।कितने प्रतिशत लोगों में इम्यूनिटी मानी जाएगी हर्ड इम्यूनिटीविशेषज्ञों के मुताबिक, कोविड-19 की बात करें तो अगर 60 से 85 प्रतिशत आबादी में इसके प्रति इम्यूनिटी आ जाए तो इसे हर्ड इम्यूनिटी करेंगे। डिप्थीरिया में यह आंकड़ा 75 प्रतिशत, पोलियो में 80 से 85 प्रतिशत और मीजल्स में 95 प्रतिशत है।