Rajasthan By Election: राजस्थान के खींवसर विधानसभा उपचुनाव में सियासी हलचल चरम पर है, जहाँ कांग्रेस, बीजेपी और आरएलपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखा जा रहा है। हनुमान बेनीवाल की पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के लिए यह चुनाव बेहद अहम हो गया है। 2023 के विधानसभा चुनावों में आरएलपी केवल खींवसर सीट पर जीत पाई थी, जहाँ हनुमान बेनीवाल स्वयं विधायक बने थे। इस बार बेनीवाल ने खींवसर सीट से अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को उतारा है, जिससे यह चुनाव उनके सियासी वर्चस्व को बनाए रखने का एक निर्णायक अवसर बन गया है।
कांग्रेस और बीजेपी की चुनौती
बेनीवाल के इस कदम से मुकाबला दिलचस्प हो गया है। बीजेपी ने खींवसर सीट पर रेवताराम डांगा को मैदान में उतारा है, जिन्होंने पिछली बार बेनीवाल से मामूली अंतर से हार का सामना किया था। डांगा बीजेपी के समर्थन और राज्य सरकार की सत्ता के प्रभाव के साथ पूरी ताकत झोंक रहे हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस ने डॉ. रतन चौधरी को उम्मीदवार बनाया है, जिससे यह मुकाबला और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है। इस त्रिकोणीय मुकाबले में बेनीवाल के लिए खींवसर में जीत दर्ज करना आसान नहीं है, क्योंकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही इस सीट को जीतने के लिए अपने-अपने रणनीतिक प्रयासों में जुटी हैं।
खींवसर उपचुनाव की अहमियत
हनुमान बेनीवाल के लिए यह उपचुनाव सिर्फ एक चुनाव नहीं, बल्कि आरएलपी का सियासी भविष्य दांव पर है। 2018 के विधानसभा चुनाव में आरएलपी ने तीन सीटें जीती थीं, लेकिन 2023 में केवल खींवसर पर ही कब्जा बरकरार रह सका। अब यदि उपचुनाव में आरएलपी हार जाती है, तो विधानसभा में उसका कोई भी प्रतिनिधि नहीं बचेगा। इसके कारण बेनीवाल अपनी पत्नी को टिकट देकर इस सीट पर अपने प्रभाव को बनाए रखना चाहते हैं, ताकि उनकी पार्टी का अस्तित्व बना रहे।
किंगमेकर बनने की राह में चुनौती
राजस्थान की राजनीति में खुद को किंगमेकर साबित करने की महत्वाकांक्षा से बेनीवाल ने आरएलपी का गठन किया था। 2018 के चुनाव में तीन सीटें जीतने के बाद उनकी पार्टी ने सियासी क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई थी, लेकिन अब आरएलपी की पकड़ कमजोर पड़ गई है। कांग्रेस और बीजेपी के कई नेता जो आरएलपी में शामिल हुए थे, अब पार्टी छोड़ चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस से समर्थन की कमी और बीजेपी से बढ़ती चुनौती ने बेनीवाल की राह और मुश्किल कर दी है।
चुनाव में आरएलपी का भविष्य
इस चुनाव में हनुमान बेनीवाल का असल इम्तिहान है। उनके लिए यह चुनाव न केवल खींवसर सीट को बचाने का है, बल्कि उनके राजनीतिक सफर की दिशा को भी तय करेगा। खींवसर सीट से उनके परिवार के सदस्य ही चुनाव लड़ते आए हैं, और इस बार भी बेनीवाल ने अपने परिवार का उम्मीदवार चुनते हुए पत्नी कनिका बेनीवाल को उतारा है। इस बीच, बीजेपी ने पुराने साथी रेवंत राम डांगा को उतारा है, तो कांग्रेस ने पूर्व आईपीएस अधिकारी की पत्नी रतन चौधरी पर भरोसा जताया है।अब सवाल यह है कि क्या हनुमान बेनीवाल खींवसर की जनता का विश्वास दोबारा जीत पाते हैं या बीजेपी इस बार कमल खिलाने में सफल होती है। राजस्थान की राजनीति में यह उपचुनाव न केवल खींवसर के लिए, बल्कि हनुमान बेनीवाल के सियासी भविष्य के लिए भी निर्णायक साबित होगा।