Vikrant Shekhawat : Dec 17, 2024, 08:46 AM
One Nation One Election: सरकार आज लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से संबंधित विधेयक पेश करने जा रही है। इस विधेयक का उद्देश्य देशभर में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और संभवतः स्थानीय निकायों के चुनावों को एक साथ कराने की व्यवस्था करना है। यह विधेयक केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा सदन में प्रस्तुत किए जाने की संभावना है।
क्या है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’?
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ एक ऐसी चुनावी व्यवस्था की परिकल्पना है जिसमें देश के सभी राज्यों और केंद्र के चुनाव एक साथ कराए जाएं। इससे चुनावी खर्चों में कमी आने के साथ-साथ बार-बार लगने वाली आचार संहिता से प्रशासनिक कार्यों पर पड़ने वाले प्रभाव को भी कम किया जा सकेगा। इसके साथ ही यह प्रस्तावित विधेयक देश की राजनीतिक स्थिरता में भी योगदान दे सकता है।राजनीतिक हलचल तेज: प्रमुख दलों ने जारी किए व्हिप
इस अहम विधेयक को देखते हुए सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपने सांसदों को सदन में अनिवार्य उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए व्हिप जारी किया है।- शिवसेना की तैयारी:
शिवसेना ने अपने सभी लोकसभा सांसदों के लिए 17 दिसंबर 2024 को सदन में उपस्थित रहने हेतु व्हिप जारी किया है। पार्टी ने इस विधेयक पर चर्चा में अपनी सक्रिय भागीदारी की योजना बनाई है। - कांग्रेस की रणनीति:
कांग्रेस ने भी अपने सांसदों को तीन लाइन का व्हिप जारी किया है। इसके अलावा कांग्रेस के लोकसभा सांसदों की एक तत्काल बैठक मंगलवार सुबह 10:30 बजे बुलाई गई है। यह बैठक सीपीपी कार्यालय में होगी, जहां ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक के संदर्भ में पार्टी की रणनीति पर मंथन किया जाएगा। - बीजेपी का आक्रामक रुख:
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने भी अपने सभी लोकसभा सांसदों को सदन में उपस्थित रहने के लिए तीन लाइन का व्हिप जारी किया है। बीजेपी का मानना है कि यह विधेयक चुनावी प्रक्रिया में सुधार के लिए “एक बड़ा कदम” साबित हो सकता है।
विधेयक पर विपक्ष की प्रतिक्रिया
हालांकि, विपक्षी दलों में इसे लेकर अभी भी मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कांग्रेस समेत अन्य दलों ने इस पर गहराई से चर्चा की मांग की है, जबकि बीजेपी ने इसे चुनावी प्रक्रिया के ‘एकीकरण और पारदर्शिता’ का अहम कदम बताया है।संभावित लाभ और चुनौतियां
लाभ:- चुनावी खर्च में भारी कटौती।
- बार-बार आचार संहिता लागू होने से प्रशासनिक बाधाएं कम होंगी।
- एक स्थायी और प्रभावी शासन की संभावनाएं।
- संविधान में आवश्यक संशोधनों की जरूरत।
- राज्यों की स्वायत्तता पर प्रभाव को लेकर आशंकाएं।
- एक साथ चुनाव कराने के लिए लॉजिस्टिक और तकनीकी तैयारियों की जटिलता।