निगम चुनाव में दो बड़े चेहरे- / प्रताप सिंह और सतीश पूनियां पहले छात्रसंघ में आमने-सामने, अब निगम में प्रतिष्ठा की लड़ाई

राजधानी जयपुर की दो नगर निगमों के चुनाव में दो बड़े चेहरों की भूमिका सबसे अहम है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनियां और परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास। शहरी सरकार के इस चुनाव में पूनियां और खाचरियावास की प्रतिष्ठा दांव पर है। क्योंकि, पूनिया आमेर से विधायक हैं एवं प्रदेश में पार्टी की बागडैार उनके पास रहने की वजह से टिकट वितरण में भी उनका बड़ा दखल है। ऐसे ही खाचरियावास का शहर की राजनीति में बड़ा दखल है।

Vikrant Shekhawat : Oct 14, 2020, 11:50 AM

राजधानी जयपुर की दो नगर निगमों के चुनाव में दो बड़े चेहरों की भूमिका सबसे अहम है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनियां और परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास। शहरी सरकार के इस चुनाव में पूनियां और खाचरियावास की प्रतिष्ठा दांव पर है। क्योंकि, पूनिया आमेर से विधायक हैं एवं प्रदेश में पार्टी की बागडैार उनके पास रहने की वजह से टिकट वितरण में भी उनका बड़ा दखल है। ऐसे ही खाचरियावास का शहर की राजनीति में बड़ा दखल है। वजह, वे लंबे समय तक पार्टी के शहर अध्यक्ष रहे हैं और सिविल लाइंस से विधायक हैं। पॉपुलर चेहरा हैं। टिकट वितरण में उनकी बड़ी भूमिका है।


इन दोनों ही नेताओं से जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि वे छात्र राजनीति में भी एक ही समय में सक्रिय रहे हैं। आमने-सामने चुनाव भी लड़ा है। राजस्थान यूनिवर्सिटी में वर्ष 1992 के छात्रसंघ चुनाव में खाचरियावास निर्दलीय मैदान में उतरे थे। सतीश पूनियां एबीवीपी से प्रत्याशी थे।

इस चुनाव में खाचरियावास ने पूनियां को करीब एक हजार मतों से शिकस्त दी थी। अब मामला निकाय चुनावों का है। शहर में दो निकाय हैं, लेकिन दोनों की विधानसभा सीटें हेरिटेज निगम में ही आती हैं। इस लिहाज से भी निगम का यह चुनाव बड़ा दिलचस्प होने वाला है। इन दोनों नेताओं के लिहाज से।


पार्षद के टिकट में सक्रिय रहे कांग्रेस और भाजपा के कई नेता इस बार पिक्चर से गायब

राजनीति कब करवट बदल ले, कोई नहीं जानता। पिछले नगर निगम चुनाव में सक्रिय रहे भाजपा और कांग्रेस के कई नेताओं को देखकर तो यही लगता है। पिछले चुनाव में टिकट वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कई नेताओं के पास इस बार भीड़ नहीं है।

ऐसे नेताओं ने या तो पार्टी में सक्रियता कम कर दी या अब पार्टी स्तर पर उनका वह क्रेज नहीं रहा, जो पिछले चुनाव में था। इनमें पूर्व विधायक घनश्याम तिवाड़ी, ब्रजकिशोर शर्मा, सुरेन्द्र पारीक, पूर्व मेयर विष्णु लाटा, निर्मल नाहटा सहित कई नेता शामिल हैं।

कांग्रेस के गुम कर्णधार

बृजकिशोर शर्माहवामहल से विधायक रहे और प्रदेश में शिक्षा और यातायात मंत्रालय का भार संभाल चुके बृजकिशोर शर्मा इन दिनों राजनीति से गायब हैं। वे विधानसभा चुनाव में हवामहल से टिकट मांग रहे थे। उनका टिकट महेश जोशी को मिला, वो जीते भी। इसके बाद से ही शर्मा की सक्रियता कम हो गई। अब इस क्षेत्र में टिकट वितरण का काम पूरी तरह से विधायक महेश जोशी के हाथ में है। शर्मा के पास दावेदार नहीं पहुंच रहे।

घनश्याम तिवाड़ीभाजपा के बड़े नेता रहे घनश्याम तिवाड़ी ने अब कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं। पिछले निगम चुनाव में वे सांगानेर से विधायक थे। लेकिन इस बार वे कांग्रेस के पाले में हैं। लेकिन यहां से पुष्पेंद्र भारद्वाज टिकट वितरण में प्रमुख भूमिका निभाते दिख रहे हैं। इसके अलावा विष्णु लाटा भी कुछ दखल रखते हैं। ऐसे में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उनसे दूरी बना ली, उनके यहां वो भीड़ नहीं जो पिछले चुनाव में थी। हालांकि उस समय सांसद रामचरण बोहरा भी अपने कई समर्थकों को टिकट दिलवाने में कामयाब रहे थे।

विष्णु लाटाभाजपा से बगावत करके कांग्रेस के समर्थन से महापौर का चुनाव जीतने वाले विष्णु लाटा भी पहले जितने सक्रिय नहीं हैं। महापौर की सीट ओबीसी महिला के लिए आरक्षित होने के चलते इस बार वे चुनाव नहीं लड़ रहे। हालांकि उनका कहना है कि वे कांग्रेस और अपने कार्यकर्ताओं के लिए काम करेंगे।

भाजपा के खामोश खिलाड़ी

सुरेंद्र पारीक हवामहल से इस बार विधानसभा का चुनाव हारने के बाद से ही क्षेत्र में उनकी सक्रियता घट गई थी। निगम चुनाव में ना तो उनकी सक्रियता नजर रही है और ना ही उनके पास टिकट के लिए कार्यकर्ताओं की भीड़ पहुंच रही है। उनको अपने कार्यकर्ताओं को टिकट दिलवाने के लिए भी जोर लगाना पड़ रहा है। हवामहल से ही ताल्लुक रखने वाले राघव शर्मा जब से शहर भाजपा के अध्यक्ष बने हैं। हवामहल के कार्यकर्ताओं ने राघव शर्मा की तरफ रूख कर लिया है।

निर्मल नाहटा- पिछले निगम चुनाव में महापौर का पद मिलने के बाद नाहटा शहर की राजनीति का केंद्र बन गए थे। लेकिन विवादों के बाद अचानक भाजपा ने उनको महापौर के पद से हटा दिया था। इसके बाद से ही वे निष्क्रिय हो गए थे। इस बार निगम चुनाव में वे निष्क्रिय हैं।

संजय जैन पिछले निगम चुनाव में भाजपा के शहर अध्यक्ष के रूप में सक्रिय रहे संजय जैन की भी सक्रियता इन दिनों कम ही नजर रही है। पिछली बार भाजपा का बोर्ड बनने के बाद भाजपा पार्षदों की बाड़ाबंदी और संगठन का निर्देश उन तक पहुंचाने में संजय जैन ने महती भूमिका निभाई थी। लेकिन भाजपा के बागी विष्णु लाटा के महापौर बनने के एपीसोड के बाद जैन को शहर अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। लेकिन अब भी उनकी उतनी सक्रियता नहीं है जितनी पिछली बार थी।

कांग्रेस से पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल और कांग्रेस से बागी होकर विधानसभा चुनाव लड़ने वाले विक्रम सिंह, भाजपा बोर्ड में डिप्टी मेयर रहे मनीष पारीक और मनोज भारद्वाज के पास दावेदार कम ही पहुंंच रहे हैं।