Lok Sabha Election / सोनिया गांधी को किसने नहीं बनने दिया PM, राहुल, प्रियंंका या कोई और..?

सोनिया गांधी खुद भले चुनाव न लड़ रही हों लेकिन पार्टी की चुनावी गतिविधियों में उनकी दमदार मौजूदगी बनी हुई है. यूपीए के दौर में प्रधानमंत्री पद ठुकराकर उन्होंने एक बड़ी लकीर खींच दी. पार्टी से जुड़े लोगों के लिए इस त्याग की दूसरी मिसाल नहीं है. बेशक विपक्षी इसके कायल नहीं. वे दस साल के डॉक्टर मनमोहन सिंह के कार्यकाल को पर्दे के पीछे से सोनिया के शासन के तौर पर याद करते हैं. लेकिन इसके बाद भी यह सवाल कायम है कि देश की

Vikrant Shekhawat : Apr 17, 2024, 10:50 AM
Lok Sabha Election: सोनिया गांधी खुद भले चुनाव न लड़ रही हों लेकिन पार्टी की चुनावी गतिविधियों में उनकी दमदार मौजूदगी बनी हुई है. यूपीए के दौर में प्रधानमंत्री पद ठुकराकर उन्होंने एक बड़ी लकीर खींच दी. पार्टी से जुड़े लोगों के लिए इस त्याग की दूसरी मिसाल नहीं है. बेशक विपक्षी इसके कायल नहीं. वे दस साल के डॉक्टर मनमोहन सिंह के कार्यकाल को पर्दे के पीछे से सोनिया के शासन के तौर पर याद करते हैं. लेकिन इसके बाद भी यह सवाल कायम है कि देश की सबसे महत्वपूर्ण कुर्सी पर सोनिया ने बैठना क्यों कुबूल नहीं किया?

18वीं लोकसभा का चुनाव प्रचार चरम पर है. नरेंद्र मोदी हैट्रिक की तैयारी में हैं. इंडी गठबंधन के जरिए कांग्रेस फिर से सत्ता में वापसी की उम्मीद में है. चुनावी इतिहास के पन्ने पलटे जा रहे हैं. 2004 का वो नाटकीय घटनाक्रम भी याद किया जा रहा है, जब कांग्रेस में सिर्फ सोनिया के लिए पुकार थी लेकिन वे प्रधानमंत्री न बनने के लिए अडिग रहीं. गांधी परिवार के काफी निकट रहे पूर्व विदेश मंत्री कुंवर नटवर सिंह के अनुसार यह राहुल गांधी थे जिन्होंने अपनी मां को प्रधानमंत्री बनने से रोका. क्यों? पढ़िए इसकी अंतर्कथा,

इंडिया शाइनिंग नारा हुआ था फुस्स

भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए के लिए यह बड़ा झटका था. अटल बिहारी वाजपेई को भी नतीजों ने चौंका दिया था. समय से छह महीने पहले चुनाव कराने की उनकी रणनीति विफल रही थी. इंडिया शाइनिंग का नारा भी फुस्स हो गया था. सोनिया गांधी 1998 और 1999 में कांग्रेस के लिए भले कारगर साबित न हुई हो लेकिन 2004 में कांग्रेस 145 सदस्यों सहित सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.

चुनाव पूर्व गठबंधन सहयोगियों सहित उसकी संख्या 222 थी. भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए वाम मोर्चा के 59 सदस्य सरकार से बाहर रहते हुए समान न्यूनतम कार्यक्रम की शर्त पर साथ थे. इस गठबंधन को बिन मांगे सपा, बसपा और रालोद का समर्थन प्राप्त हुआ, जिससे लोकसभा में उनकी संख्या 317 पर पहुंच गई.

नतीजों से पहले ही सोनिया की जा रही थीं प्रोजेक्ट

चुनाव नतीजे 13 मई 2004 को घोषित हुए. लेकिन उसके हफ्ते भर पहले ही उनके पॉलिटिकल सेक्रेटरी अहमद पटेल ने सोनिया गांधी का नाम प्रधानमंत्री के तौर पर आगे करना शुरू कर दिया. 15 मई को कांग्रेस संसदीय दल की डॉक्टर मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में सम्पन्न बैठक में पार्टी सांसदों ने उन्हें अपना नेता चुना. 16 मई को सोनिया गांधी ने 10 जनपथ पर यूपीए और वाम मोर्चा के नेताओं को डिनर पर आमंत्रित किया.

इस मौके पर प्रधानमंत्री पद के लिए सोनिया गांधी के नाम पर सहयोगियों ने मोहर लगाई. इस डिनर का सपा को निमंत्रण नहीं था. फिर भी हर किशन सिंह सुरजीत के साथ अमर सिंह इस डिनर में पहुंच गए थे. प्रधानमंत्री पद के लिए सोनिया को समर्थन देने वालों में सपा को शामिल नहीं किया गया था. अमर सिंह ने इसकी शिकायत भी की थी. लेकिन पर्याप्त समर्थन जुटा चुकी कांग्रेस ने इसे नजरंदाज किया.

सिर मुंडाने,सफेद कपड़े पहनने का सुषमा का संकल्प !

सोनिया का रास्ता साफ था. लेकिन चुनाव में शिकस्त के बाद भी भाजपा को वे स्वीकार नहीं थीं. वजह उनका विदेशी मूल था. तब इस मुद्दे को जोर-शोर से सुषमा स्वराज ने उठाया. मीडिया से उन्होंने कहा कि एक विदेशी मूल के प्रधानमंत्री के रहते देश के सुरक्षा हित खतरे में पड़ जाएंगे. आजादी के साठ साल भी एक विदेशी के हाथों में सत्ता जाने का मतलब 100 करोड़ जनता की अक्षमता होगी.

स्वराज यहीं नहीं रुकीं, “सुहागन होने के बाद भी सिर के बाल मुंडवा लूंगी. सफेद कपड़े पहनूंगी. फर्श पर लेटूंगी और सिर्फ भुने चने खाऊंगी.” मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री उमा भारती ने इस्तीफे की घोषणा कर दी. भाजपा समर्थक अनेक महिलाओं ने अपनी कलाई और अंगूठों पर चीरा लगाकर विरोध प्रदर्शित किया. के. एन.गोविंदाचार्य ने राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन का आह्वान किया.

राहुल का वो विरोध

भाजपा सोनिया को लेकर आक्रामक थी. कांग्रेस उनके नेतृत्व को लेकर आश्वस्त थी. लेकिन सोनिया के परिवार के भीतर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने को लेकर तीव्र विरोध था. कुंवर नटवर सिंह ने अपनी आत्मकथा One Life Is Not Enough और नीरजा चौधरी ने How Prime Ministers Decide में इसका जिक्र किया है.

17मई 2004 दोपहर के लगभग दो बजे नटवर सिंह 10 जनपथ पहुंचे. परिवार से उनकी निकटता थी. उन्हें भीतर भेज दिया गया. कमरे में सोनिया सोफे पर बैठी थीं और काफी व्यग्र थीं. मनमोहन सिंह और प्रियंका भी वहां थे. थोड़ी देर में सुमन दुबे भी पहुंचे. तभी राहुल वहां पहुंचे और हम सबके सामने बैठे. सोनिया की ओर मुखातिब होते हुए राहुल ने कहा, “आपको प्रधानमंत्री नहीं बनना है. मेरे पिता की हत्या कर दी गई. दादी की हत्या कर दी गई. छह महीने में आपको भी मार देंगे.”

राहुल ने अपनी बात न मानने पर किसी हद तक जाने की धमकी दी. राहुल ने सोनिया को फैसले के लिए 24 घंटे का वक्त दिया. राहुल के यह कहने पर कि वे उन्हें प्रधानमंत्री पद स्वीकार करने से रोकने के लिए हर मुमकिन कदम उठाएंगे- परेशान सोनिया की आंखों में आंसू थे. तनाव भरे ये पंद्रह-बीस मिनट बहुत मुश्किल समय के थे. मनमोहन सिंह निशब्द थे. प्रियंका ने कुछ ऐसा कहा, “राहुल इसके खिलाफ है और वह कुछ भी कर सकता है.”

चंद नेताओं को ही पता थी इनकार की वजह

नटवर सिंह 17 मई की दोपहर के जिस घटनाक्रम के चश्मदीद थे, संभवतः उससे जुड़ी खींचतान सोनिया के परिवार में उनके कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुने जाने और प्रधानमंत्री पद पर ताजपोशी तय होने के साथ ही शुरू हो चुकी थी. इस दिन सुबह ही सोनिया ने अहमद पटेल, अंबिका सोनी और जनार्दन द्विवेदी को प्रधानमंत्री पद न स्वीकार करने के अपने फैसले की जानकारी दे दी थी.

अंबिका सोनी से उन्होंने यह भी कहा था कि भाजपा उनके लिए काफी मुश्किलें खड़ी करेगी. नटवर सिंह और माखन लाल फोतेदार ने विश्वनाथ प्रताप सिंह को सोनिया के कहने पर इस फैसले की जानकारी दी थी. सिंह उस समय कांग्रेस और सोनिया का समर्थन कर रहे थे. बाद में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पत्रकार नीरजा चौधरी को बताया था कि सोनिया के बच्चों की अपनी मां को प्रधानमंत्री बनने से रोकने की वजह उनकी जिंदगी खतरे में पड़ने का डर था.

माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी ने भी इसकी पुष्टि की थी. चटर्जी ने कहा, “हमने तो उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन दिया. लेकिन उनके बच्चों ने उन्हें रोका क्योंकि उन्हें मां की जिंदगी को लेकर डर था. “शाम को सोनिया ने सहयोगी दलों के नेताओं को 10 जनपथ बुलाकर अपने फैसले की जानकारी दे दी थी. हालांकि, इन नेताओं को इसकी वजह नहीं बताई गई थी. 18 मई की सुबह राष्ट्रपति कलाम से भेंट करने गईं सोनिया के साथ डॉक्टर मनमोहन सिंह भी थे. सोनिया के इनकार के बाद राष्ट्रपति कार्यालय ने सरकार बनाने के निमंत्रण की दूसरी चिट्ठी तैयार कराई.

शाम को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में तमाम मनुहार और दबाव के बाद भी सोनिया अपने फैसले पर अडिग रहीं. हालांकि इसकी वजह “बच्चों का मां की जिंदगी को लेकर डर ” चुनिंदा लोगों को ही तब पता था.