One Nation One Election / 'एक देश-एक चुनाव' को 370, GST की तरह हकीकत में बदलना क्यों आसान नहीं?

मोदी सरकार ने 'एक देश, एक चुनाव' की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश होने की संभावना है, लेकिन इसके लिए संवैधानिक संशोधनों और राज्यों का समर्थन आवश्यक होगा। विपक्षी दलों का विरोध इसे लागू करने में बाधा बन सकता है।

Vikrant Shekhawat : Sep 19, 2024, 06:20 PM
One Nation One Election: मोदी सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ा दिया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद, इस प्रस्तावित विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करने की संभावना है। हालांकि, इसे अमल में लाने के लिए कई कानूनी और राजनीतिक अड़चनों को पार करना होगा।

एक देश, एक चुनाव: क्या है ये अवधारणा?

‘एक देश, एक चुनाव’ का तात्पर्य है कि देश में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। इस पहल का मुख्य उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाना और चुनावों पर होने वाले खर्च को कम करना है। सरकार का मानना है कि इससे प्रशासनिक क्षमता में वृद्धि होगी और मतदाता की भागीदारी भी बढ़ेगी।

संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता

इस योजना को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी, जिसके लिए विपक्षी दलों का समर्थन आवश्यक है। मोदी सरकार को याद दिलाना होगा कि पिछले कार्यकाल में उसने कई महत्वपूर्ण विधेयक, जैसे जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक और नागरिकता संशोधन विधेयक, बिना विपक्षी सहयोग के पारित कराए थे। लेकिन क्या यह इतना आसान होगा?

नंबर गेम की चुनौती

हालांकि लोकसभा और राज्यसभा में एनडीए के पास बहुमत है, लेकिन एक देश, एक चुनाव को पास कराने के लिए केवल संख्या की गणना करना पर्याप्त नहीं होगा। संविधान संशोधन के लिए लोकसभा में 362 सदस्यों और राज्यसभा में 164 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है। वर्तमान में, विपक्षी गठबंधन में 234 सदस्य लोकसभा में और 85 सदस्य राज्यसभा में हैं, जिससे स्थिति जटिल हो जाती है।

राज्यों की सहमति की आवश्यकता

‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए राज्यों की सहमति भी आवश्यक होगी। बीजेपी शासित राज्यों का समर्थन मिलना संभव है, लेकिन कई राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं, जो इस प्रस्ताव का विरोध कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, टीएमसी, कांग्रेस और वाम दल पहले से ही इस मुद्दे पर असहमत हैं।

क्षेत्रीय दलों की चिंताएँ

भारत में चुनाव अक्सर स्थानीय मुद्दों पर आधारित होते हैं, और एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। छोटे राजनीतिक दलों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है, जिससे वे इस योजना के खिलाफ खड़े हो सकते हैं। क्षेत्रीय पार्टियों का यह विरोध सरकार के लिए एक और चुनौती बन सकता है।

आम सहमति बनाने की प्रक्रिया

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि सरकार विभिन्न दलों के साथ बातचीत करके आम सहमति बनाने का प्रयास करेगी। हालांकि, यह कार्य आसान नहीं होगा। पिछले अनुभवों से स्पष्ट है कि राजनीतिक दलों के बीच सहमति बनाना एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है।

निष्कर्ष

मोदी सरकार का ‘एक देश, एक चुनाव’ का प्रस्ताव देश की राजनीति में एक नया अध्याय खोल सकता है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए कई कानूनी, राजनीतिक और सामाजिक बाधाओं को पार करना होगा। क्या यह योजना वास्तव में सफल होगी या यह केवल एक राजनीतिक घोषणा बनकर रह जाएगी, यह भविष्य के घटनाक्रम पर निर्भर करेगा। सरकार को सभी दलों के बीच संवाद और सहमति बनाने की दिशा में सक्रिय प्रयास करना होगा, ताकि इस महत्वाकांक्षी योजना को वास्तविकता में बदल सके।