Ashok Kumar Kothari / निर्दलीय विधायक अशोक कोठारी बीजेपी मेंबर बने, नेता प्रतिपक्ष बोले- विधायकी खत्म हो

भीलवाड़ा के निर्दलीय विधायक अशोक कोठारी के बीजेपी में शामिल होने पर सियासी विवाद खड़ा हो गया है। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने विधानसभा स्पीकर से उनकी सदस्यता रद्द करने की मांग की है, citing दल-बदल कानून। कोठारी ने नियमों की अनभिज्ञता बताई है; स्पीकर अब उनकी राजनीतिक स्थिति पर निर्णय लेंगे।

Vikrant Shekhawat : Sep 06, 2024, 10:12 PM
Ashok Kumar Kothari: भीलवाड़ा के निर्दलीय विधायक अशोक कोठारी के भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सदस्यता लेने के बाद से एक नया सियासी विवाद उभर आया है। यह विवाद दल-बदल कानून के तहत कोठारी की विधायकी पर संभावित खतरे को लेकर है। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने इस मुद्दे पर विधानसभा स्पीकर वासुदेव देवनानी को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कोठारी की सदस्यता खत्म करने की मांग की है।

दल-बदल कानून और कोठारी की बीजेपी सदस्यता

टीकाराम जूली ने अपनी चिट्ठी में दल-बदल कानून के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा है कि निर्दलीय विधायक अशोक कोठारी ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता लेकर संविधान की 10वीं अनुसूची का उल्लंघन किया है। दल-बदल कानून के तहत, एक निर्दलीय विधायक यदि किसी पार्टी की सदस्यता लेता है, तो उसकी विधायकी स्वतः समाप्त हो जाती है।

अशोक कोठारी ने 4 सितंबर को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर बीजेपी की सदस्यता का प्रमाण पत्र साझा किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि उन्होंने बीजेपी को जॉइन कर लिया है। इस प्रमाण के बाद अब सवाल उठता है कि क्या उनकी विधायकी पर भी खतरा मंडरा रहा है।

कोठारी का बयान: ‘मुझे कानूनी जानकारी नहीं थी’

अशोक कोठारी ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "मैंने बीजेपी की प्राथमिक सदस्यता ली है क्योंकि मुझे देश की अखंडता और मजबूती के लिए काम करना है। मेरी सदस्यता का उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा करना है। मुझे कानूनी और तकनीकी बारीकियों के बारे में जानकारी नहीं थी।" उनके इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने अपनी सदस्यता के मुद्दे को तकनीकी गलती के रूप में पेश किया है।

स्पीकर की भूमिका और विधायकी पर संभावित असर

नेता प्रतिपक्ष जूली की शिकायत के बाद अब विधानसभा स्पीकर वासुदेव देवनानी कोठारी से उनके मेंबरशिप स्टेटस के बारे में पूछ सकते हैं। अगर कोठारी बीजेपी विधायक दल जॉइन करने से मना कर देते हैं, तो उनका मामला दल-बदल कानून से बाहर हो सकता है। इसके अलावा, निर्दलीय विधायकों के पार्टी जॉइन करने पर कोर्ट के फैसले भी इस मामले को प्रभावित कर सकते हैं।

कानूनी और सियासी जटिलताएं

इस विवाद को लेकर विधानसभा स्पीकर के निर्णय पर निर्भरता है। हालांकि, विधायकी से हटाना आसान नहीं होगा और प्रक्रिया लंबी हो सकती है। वरिष्ठ वकील प्रतीक कासलीवाल ने बताया कि किसी भी निर्दलीय विधायक का पार्टी में शामिल होना दल-बदल कानून के तहत अयोग्यता की श्रेणी में आता है, लेकिन स्पीकर पर सब कुछ निर्भर करेगा। वे मामले को लंबित भी रख सकते हैं और समय खींच सकते हैं।

इस सियासी विवाद के बीच, कोठारी की विधायकी और बीजेपी की सदस्यता का मामला अब एक बड़े राजनीतिक और कानूनी विवाद का रूप ले चुका है। इस मुद्दे की जटिलताओं को समझते हुए, सभी पक्षों को इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि अंतिम निर्णय कैसे होता है और इसकी राजनीति पर क्या असर पड़ता है।