राजस्थान / कौन है जो राजस्थान में शहीदों के बच्चों पर कर रहा है हमला?

शहीदों के बच्चों के प्रति सभी के मन में सहानुभूति और संवेदनाएं होती हैं। विभिन्न संगठन और सरकार के साथ—साथ आम जनता भी उनके बेहतर भविष्य में अपना योगदान देती है। परन्तु राजस्थान के शहीदों के बच्चों के साथ एक ऐसी समस्या पेश आ रही है, जिस पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है।

Vikrant Shekhawat : Aug 28, 2019, 05:52 PM
शहीदों के बच्चों के प्रति सभी के मन में सहानुभूति और संवेदनाएं होती हैं। विभिन्न संगठन और सरकार के साथ—साथ आम जनता भी उनके बेहतर भविष्य में अपना योगदान देती है। परन्तु राजस्थान के शहीदों के बच्चों के साथ एक ऐसी समस्या पेश आ रही है, जिस पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है। 
हालांकि यह समस्या पूरे राजस्थान में सभी के साथ पेश आ रही है, लेकिन परिजन अपने बच्चों के बेहतर भविष्य की चिंता में होने के बावजूद कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं। यह समस्या है मोबाइल गेम पबजी। जयपुर स्थित शहीदों के परिजनों के लिए बनाए गए छात्रावास में पढ़ने वाले बच्चे इस गेम की चपेट में हैं। उनकी माताओं और शिक्षकों का कहना है कि बच्चों में इस गेम का भारी एडिक्शन है और वे इससे दूर नहीं होना चा​हते। यदि बच्चों को इस गेम से दूर नहीं किया गया तो उनके स्वास्थ्य और मानस पर दुष्प्रभाव पड़ना लाजिमी है। 
आपको बता दें कि गुजरात में यह गेम पबजी बैन है और प्रमोट करने पर गिरफ्तारी तक हो सकती है। परन्तु राजस्थान में यह गेम लोगों के लिए समस्या बन चुका है और लोग उसके आदि हो रहे हैं। जयपुर में हुए एक कार्यक्रम में माताओं ने यह बताया तो समस्या सामने आई कि बच्चे बुरी तरह से इस लत का शिकार हो चुके हैं। सरकार को चाहिए कि वह शीघ्र ही इस समस्या से निजात दिलाने के लिए उचित कदम उठाए ताकि बच्चों के अध्ययन, स्वास्थ्य और उनके भविष्य को लेकर उठ रही आशंकाओं को दूर किया जा सके।
कम करने के बजाय समस्या और बढ़ा दी
पहले यह गेम उच्च क्वालिटी की मेमोरी वाले स्मार्ट फोन पर ही चलता था। परन्तु अब इसका लाइट एप आने से हल्की मेमोरी वाले फोन में भी बच्चे आसानी से चलाने लगे। इसके चलते उनका समय और भी जाया होने लगा। इसमें हल्के ग्राफिक्स, नक्शे को छोटा करके इसके और भी प्रभावी तरीके से बच्चों का ध्यान डायवर्ट करने लायक बना दिया गया है। 
आ रहे हैं खतरनाक परिणाम
'पबजी' के नाम से प्रसिद्ध प्लेयर अननोन्स बैटलग्राउंड्स खेल के देशभर में कई खतरनाक परिणाम सामने आ रहे हैं। इसने एक नशे या लत का रूप ले लिया है। जो भी एक बार इसकी गिरफ्त में आ रहा है, उसका इससे निकलना मुश्किल हो रहा है। इसे खेलने वाले घर-परिवार और दोस्तों से कटकर एक आभासी दुनिया में जीने लगते हैं। 
मां—बाप की हत्या तक कर दी थी बच्चे ने
  • पिछले दिनों गाजियाबाद में रहने वाला दसवीं का एक छात्र इस खेल के चक्कर में अपना घर छोड़ कर चला गया। 
  • कुछ समय पहले दिल्ली के वसंतपुर क्षेत्र में पबजी खेलने से मना करने पर एक लड़के ने अपने मां-बाप की हत्या कर दी थी। 
  • मुंबई के कुर्ला इलाके में एक युवक ने इसी के कारण अपनी जान दे दी। जम्मू-कश्मीर में इसकी लत में फंसकर एक फिजिकल ट्रेनर ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया। 
  • जालंधर में तो इसके लिए 15 साल के एक किशोर ने अपने पिता के अकाउंट से पचास हजार रुपये निकाल लिए। 
  • मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में एक युवक पबजी खेलने में इस कदर मशगूल था कि उसने पानी की जगह एसिड पी लिया। गनीमत है कि उसकी जान बच गई। 
  • ऐसी घटनाएं आए दिन सुनने को मिल रही हैं। 12-12 घंटे तक गेम खेलने की वजह से बच्चों की नींद गायब हो रही है और उनमें एंग्जाइटी की समस्या बढ़ रही है।
रोगी हो रहे हैं बच्चे
यह खेल धीरे-धीरे उन्हें मनोरोगी बना रहा है। हर हफ्ते 8 से 22 साल आयु वर्ग के 4-5 नए मरीज एम्स पहुंच रहे हैं। नौकरी पेशा युवा भी डॉक्टरों के पास काउंसलिंग के लिए जा रहे हैं। आज दुनिया भर में 40 करोड़ बच्चे और युवा इस गेम को हर दिन खेल रहे हैं जबकि भारत में इनकी संख्या करीब 5 करोड़ है। चीन ने इसके नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए 13 साल तक के बच्चों के लिए इसे खेलने पर पाबंदी लगा दी है। भारत में गुजरात एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसने इस पर पाबंदी लगाई है। सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार के साथ ही गेमिंग इंडस्ट्री का भी तेजी से प्रसार हुआ है और नए-नए वीडियो गेम्स सामने आ रहे हैं।
समस्या है मोबाइल 
चूंकि हर तरह की तकनीक आजकल बच्चों तक तुरंत पहुंच जाती है। इसलिए वे नए से नए गेम के बारे में जानते हैं। लेकिन कोई गेम अगर उनके लिए अडिक्शन बन जाए या उनकी जान के लिए खतरा बन जाए, तो उसे रोकना ही होगा। कुछ साल पहले 'ब्लू व्हेल' नामक गेम पर सख्ती से रोक लगाई गई थी। ऐसे कदम अब हमें पबजी को लेकर भी उठाने होंगे। लेकिन इसके साथ ही गैजट्स के सीमित और सकारात्मक इस्तेमाल को लेकर जागरूकता भी फैलानी होगी। यह नहीं भूलना चाहिए कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मोबाइल गेम की लत को भी मनोरोग की श्रेणी में रखा है। ऐेसे खतरनाक गेम्स पर नियंत्रण के लिए तकनीकी स्तर पर भी काफी तैयारी करनी होगी।