Vikrant Shekhawat : Apr 26, 2022, 09:28 AM
एसएमएस (सवाई मानसिंह हॉस्पिटल) के डॉक्टर्स ने ओपन हार्ट सर्जरी एक नया कीर्तिमान रचा है। यहां कार्डियो थोरेसिक डिपार्टमेंट के डॉक्टर्स ने 1 हजार से ज्यादा हार्ट ऑपरेशन छाती की हड्डी काटे बिना किए हैं। इसे मिनीमली इनवेजिव कार्डियक सर्जरी (MICS) कहा जाता है।
इसके तहत दिल में छेद, कोरोनरी वॉल्व रिप्लेसमेंट, आर्टरी बाइपास, अन्य कॉम्प्लीकेटेड केसेज समेत 27 तरह की दिल की बीमारियों को ठीक करने के लिए जांघ या पैरों पर चीरा ( फिमेरेलो बाइपास ) नहीं लगाया गया। न ही छाती की हड्डी काटी गई।
जिस सर्जरी में 3 से 4 जगह चीरा लगता था। वो सिर्फ एक चीरे में कर दी गई। पहले होने वाली सर्जरी की एक बड़ी समस्या ये थी कि ज्यादा चीरे और सीने की हड्डी काटने के निशान होने की वजह से युवतियों की शादी में भी बड़ी समस्या आ रही थी।
इस सर्जरी की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि इससे 15 साल तक के छोटे बच्चों की ओपन हार्ट सर्जरी भी की जा रही है, जो पूरे भारत में कहीं नहीं होती। अब तक 70 छोटे बच्चों की यहां ओपन आर्ट सर्जरी की जा चुकी है।
बच्चों में इस तरह की सर्जरी देश में और कहीं नहींएसएमएस सिटी सर्जरी डिपार्टमेंट के सीनियर प्रोफेसर डॉ. अनिल शर्मा ने दावा किया है कि जिस तरह की सर्जरी हम करते हैं। ऐसी पूरे देश में कहीं नहीं होती। दूसरी जगहों पर ऐसे ऑपरेशन में जवान व्यक्ति की छाती पर 2 से 3 चीरे लगाए जाते है, जबकि एक चीरा जांघ या पैर पर लगाया जाता है। जांघ पर चीरा लगाने की प्रक्रिया को फिमेरेलो बाइपास कहते हैं। इस बाइपास में जांघ से नसों के जरिए एक तार अंदर डाला जाता है। जिसके जरिए हार्ट को स्लीप मोड पर लाने और उसकी लोकेशन को देखने का काम करते हैं।
फिमेरेलो बाइपास के जरिए छोटे बच्चों की ओपन हार्ट सर्जरी बड़ी समस्या रहती है। क्योंकि जांघ के जरिए जो तार डाला जाता है, वह छोटे बच्चों के हिसाब से उपलब्ध ही नहीं होते। छोटे बच्चों की आर्टरी (नसें) छोटी होती है। उसे ऑपरेट करना बहुत मुश्किल होता है। अगर करने का प्रयास भी करते है तो बच्चों में पैरों से संबंधित समस्याएं आनी शुरू हो जाती हैं।
डॉ. अनिल शर्मा ने बताया कि हमारे हम छाती पर फ्रंट में चीरा नहीं लगाते। दाएं या बाएं सिर्फ एक ही चीरा लगाते हैं। वहीं, पैर या जांघ पर चीरा लगाते ही नहीं हैं। उसकी जगह दूसरी तकनीक से हार्ट को स्लीप मोड पर लेकर जाते है।
70 बच्चों की अब तक की सर्जरीडॉ. शर्मा ने बताया कि साल 2014 से हमने इस नई तकनीक से सर्जरी करने की शुरुआत की थी। साल 2018 से हमने छोटे बच्चों की भी ओपन हार्ट सर्जरी को इसी तकनीक से करने का निर्णय किया। तब से अब तक हम 70 से ज्यादा छोटे बच्चों का ऑपरेशन कर चुके है। इनकी उम्र 5 साल से लेकर 15 साल तक है। 54 बच्चों की सर्जरी का रिसर्च लेटर तो पिछले महीने ही इंडियन जनरल ऑफ थोरसिक एण्ड कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी (आईजेसीटीवीएस) में पब्लिश हुए हैं।
युवतियों के नहीं होते रिश्तेजिन अविवाहत युवतियां की ओपन हार्ट सर्जरी होती है। उनके रिश्ते को देकर बाद में काफी परेशानी आती है। डॉ. शर्मा ने बताया कि उनके सामने कुछ ऐसे केस आए, जिनकी ओपन हार्ट सर्जरी के बाद बच्चियों के रिश्ते नहीं हुए। छाती के फ्रंट में चीरा लगाने के बाद भद्दा दिखता है। इसे देखते हमने दाएं या बाएं तरफ चीरा लगाकर ऑपरेशन करने की तकनीक ईजाद की।
हार्ट की 27 तरह की बीमारियों का इस सर्जरी से करते है इलाजडॉ. शर्मा ने बताया कि वह और उनकी टीम के मेम्बर एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुनील दीक्षित और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मोहित शर्मा इन ऑपरेशन को करते हैं। इस तरह की तकनीक से ऑपरेशन के लिए वे आगे की जनरेशन को भी तैयार कर रहे हैं।
इन ऑपरेशन के जरिए 27 तरह की हार्ट संबंधित बीमारियों का इलाज करते है। इसमें एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट (AVR), डबल वॉल रिप्लेसमेंट (DVR), मिट्रल वॉल्व रिप्लेसमेंट (MVR) तो है ही। इसके अलावा एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट (ASD), एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट विद पलमोनरी स्टेनोसिस (ASD With PS), डबल चैम्बर्ड राइट वैंट्रिकल (DCRV) और पलमोनरी स्टेनोसिस (PS) भी शामिल है। इन सभी सर्जरी में मरीज से ऑप्शन पूछा जाता है कि सर्जरी के समय चीरा राइट साइट लगाना है या लेफ्ट साइड।
इस तकनीक को पेटेंट करवाने के लिए किया अप्लाईडॉ. शर्मा ने बताया कि साल 1990 में भी कंपनियों ने कुछ इंस्ट्रूमेंट बनाए थे, तब इन मशीनों की मदद से हार्ट को रोटेट कर देखा जाता था कि हार्ट के किस हिस्से में छेद है, कौन से आर्टरी या वॉल्व खराब है। करीब 12 साल पहले तक भी हमारे पर ये इंस्ट्रूमेंट नहीं थे, जिसके कारण हमें ओपन हार्ट सर्जरी में छाती पर चीरा लगाकर उसकी हड्डी काटकर देखना पड़ता था। लेकिन हमने अब ऐसी तकनीक इजाद की है, जिसमें इन उपकरणों का इस्तेमाल किए बिना और छाती की हड्डी काटे बिना ही हार्ट के हर हिस्से को देख सकते है। इसी तकनीक को हमने अब पेटेंट के लिए भी भेजा है।
इसके तहत दिल में छेद, कोरोनरी वॉल्व रिप्लेसमेंट, आर्टरी बाइपास, अन्य कॉम्प्लीकेटेड केसेज समेत 27 तरह की दिल की बीमारियों को ठीक करने के लिए जांघ या पैरों पर चीरा ( फिमेरेलो बाइपास ) नहीं लगाया गया। न ही छाती की हड्डी काटी गई।
जिस सर्जरी में 3 से 4 जगह चीरा लगता था। वो सिर्फ एक चीरे में कर दी गई। पहले होने वाली सर्जरी की एक बड़ी समस्या ये थी कि ज्यादा चीरे और सीने की हड्डी काटने के निशान होने की वजह से युवतियों की शादी में भी बड़ी समस्या आ रही थी।
इस सर्जरी की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि इससे 15 साल तक के छोटे बच्चों की ओपन हार्ट सर्जरी भी की जा रही है, जो पूरे भारत में कहीं नहीं होती। अब तक 70 छोटे बच्चों की यहां ओपन आर्ट सर्जरी की जा चुकी है।
बच्चों में इस तरह की सर्जरी देश में और कहीं नहींएसएमएस सिटी सर्जरी डिपार्टमेंट के सीनियर प्रोफेसर डॉ. अनिल शर्मा ने दावा किया है कि जिस तरह की सर्जरी हम करते हैं। ऐसी पूरे देश में कहीं नहीं होती। दूसरी जगहों पर ऐसे ऑपरेशन में जवान व्यक्ति की छाती पर 2 से 3 चीरे लगाए जाते है, जबकि एक चीरा जांघ या पैर पर लगाया जाता है। जांघ पर चीरा लगाने की प्रक्रिया को फिमेरेलो बाइपास कहते हैं। इस बाइपास में जांघ से नसों के जरिए एक तार अंदर डाला जाता है। जिसके जरिए हार्ट को स्लीप मोड पर लाने और उसकी लोकेशन को देखने का काम करते हैं।
फिमेरेलो बाइपास के जरिए छोटे बच्चों की ओपन हार्ट सर्जरी बड़ी समस्या रहती है। क्योंकि जांघ के जरिए जो तार डाला जाता है, वह छोटे बच्चों के हिसाब से उपलब्ध ही नहीं होते। छोटे बच्चों की आर्टरी (नसें) छोटी होती है। उसे ऑपरेट करना बहुत मुश्किल होता है। अगर करने का प्रयास भी करते है तो बच्चों में पैरों से संबंधित समस्याएं आनी शुरू हो जाती हैं।
डॉ. अनिल शर्मा ने बताया कि हमारे हम छाती पर फ्रंट में चीरा नहीं लगाते। दाएं या बाएं सिर्फ एक ही चीरा लगाते हैं। वहीं, पैर या जांघ पर चीरा लगाते ही नहीं हैं। उसकी जगह दूसरी तकनीक से हार्ट को स्लीप मोड पर लेकर जाते है।
70 बच्चों की अब तक की सर्जरीडॉ. शर्मा ने बताया कि साल 2014 से हमने इस नई तकनीक से सर्जरी करने की शुरुआत की थी। साल 2018 से हमने छोटे बच्चों की भी ओपन हार्ट सर्जरी को इसी तकनीक से करने का निर्णय किया। तब से अब तक हम 70 से ज्यादा छोटे बच्चों का ऑपरेशन कर चुके है। इनकी उम्र 5 साल से लेकर 15 साल तक है। 54 बच्चों की सर्जरी का रिसर्च लेटर तो पिछले महीने ही इंडियन जनरल ऑफ थोरसिक एण्ड कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी (आईजेसीटीवीएस) में पब्लिश हुए हैं।
युवतियों के नहीं होते रिश्तेजिन अविवाहत युवतियां की ओपन हार्ट सर्जरी होती है। उनके रिश्ते को देकर बाद में काफी परेशानी आती है। डॉ. शर्मा ने बताया कि उनके सामने कुछ ऐसे केस आए, जिनकी ओपन हार्ट सर्जरी के बाद बच्चियों के रिश्ते नहीं हुए। छाती के फ्रंट में चीरा लगाने के बाद भद्दा दिखता है। इसे देखते हमने दाएं या बाएं तरफ चीरा लगाकर ऑपरेशन करने की तकनीक ईजाद की।
हार्ट की 27 तरह की बीमारियों का इस सर्जरी से करते है इलाजडॉ. शर्मा ने बताया कि वह और उनकी टीम के मेम्बर एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुनील दीक्षित और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मोहित शर्मा इन ऑपरेशन को करते हैं। इस तरह की तकनीक से ऑपरेशन के लिए वे आगे की जनरेशन को भी तैयार कर रहे हैं।
इन ऑपरेशन के जरिए 27 तरह की हार्ट संबंधित बीमारियों का इलाज करते है। इसमें एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट (AVR), डबल वॉल रिप्लेसमेंट (DVR), मिट्रल वॉल्व रिप्लेसमेंट (MVR) तो है ही। इसके अलावा एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट (ASD), एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट विद पलमोनरी स्टेनोसिस (ASD With PS), डबल चैम्बर्ड राइट वैंट्रिकल (DCRV) और पलमोनरी स्टेनोसिस (PS) भी शामिल है। इन सभी सर्जरी में मरीज से ऑप्शन पूछा जाता है कि सर्जरी के समय चीरा राइट साइट लगाना है या लेफ्ट साइड।
इस तकनीक को पेटेंट करवाने के लिए किया अप्लाईडॉ. शर्मा ने बताया कि साल 1990 में भी कंपनियों ने कुछ इंस्ट्रूमेंट बनाए थे, तब इन मशीनों की मदद से हार्ट को रोटेट कर देखा जाता था कि हार्ट के किस हिस्से में छेद है, कौन से आर्टरी या वॉल्व खराब है। करीब 12 साल पहले तक भी हमारे पर ये इंस्ट्रूमेंट नहीं थे, जिसके कारण हमें ओपन हार्ट सर्जरी में छाती पर चीरा लगाकर उसकी हड्डी काटकर देखना पड़ता था। लेकिन हमने अब ऐसी तकनीक इजाद की है, जिसमें इन उपकरणों का इस्तेमाल किए बिना और छाती की हड्डी काटे बिना ही हार्ट के हर हिस्से को देख सकते है। इसी तकनीक को हमने अब पेटेंट के लिए भी भेजा है।