Vikrant Shekhawat : Nov 16, 2023, 04:00 PM
Rajasthan Election: उत्तर प्रदेश और बिहार में ही जाति की सियासत का दबदबा नहीं है, बल्कि राजस्थान भी कास्ट पॉलिटिक्स के इर्द-गिर्द सिमटा हुआ है. चुनाव में जाति ऐसा फैक्टर है, जो विकास पर भी हावी नजर आ रहा है. विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले ही अलग-अलग जाति और सामाजिक संगठनों ने जयपुर में अपनी ताकत दिखाकर ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधित्व की मांग उठाई थी, जिससे राजस्थान की कास्ट पॉलिटिक्स को समझा जा सकता है. यही वजह है कि कांग्रेस और बीजेपी ने कैंडिडेट के जरिए सोशल इंजीनियरिंग का दांव चला है, लेकिन इस बार दोनों ही दलों ने 2018 से अलग जातीय गणित बैठाने की कोशिश की है.राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले जाट, गुर्जर, ब्राह्मण, राजपूत, सैनी, वैश्य, विश्वकर्मा, कुमावत जैसी जातीय संगठनों ने राजधानी जयपुर में अलग-अलग तारीखों में महापंचायत आयोजित की थी. इन सभी संगठनों ने कांग्रेस और बीजेपी सहित सभी राजनीतिक दलों से एक ही मांग की थी कि उनके समाज को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिया जाए. प्रदेश में जो भी सियासी दल सबसे ज्यादा टिकट देगा, उसी को वो समर्थन देंगे. सामाजिक और जातीय संगठनों के प्रेशर पॉलिटिक्स और उनकी वोटों की सियासी ताकत को देखते हुए कांग्रेस और बीजेपी ने दांव खेला है.कांग्रेस और बीजेपी ने अपने कोर वोटबैंक का ध्यान रखते हुए, उसी जाति पर ज्यादा तवज्जो दी है, जिसका विश्वास आसानी से जीत सकते हैं. इस तरह से कांग्रेस ने राजस्थान में जाट-दलित-आदिवासी पर खास फोकस किया है, तो बीजेपी ने ब्राह्मण-राजपूत और आदिवासी वोटों को साधने के लिए दांव चला है. हालांकि, दोनों ही दलों ने पिछले चुनाव से अलग सोशल इंजीनियरिंग इस बार बनाने की रणनीति अपनाई है. ऐसे में देखना है कि किसका दांव कितना सफल होता है.कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंगराजस्थान में कांग्रेस इस बार एक नई सोशल इंजीनियरिगं के साथ चुनावी मैदान में उतरी है. कांग्रेस ने सबसे ज्यादा जाट समुदाय के 36 उम्मीदवार उतारे हैं जबकि 2018 में 31 जाट प्रत्याशी उतारे थे. कांग्रेस ने दूसरा फोकस आदिवासी समुदाय के वोटों पर किया है और उन्हें 33 टिकट दिए हैं, जबकि 2018 में 29 प्रत्याशी उतारे थे. दलित समुदाय से कांग्रेस ने पिछली बार की तरह ही 34 सीट पर प्रत्याशी बनाए हैं. कांग्रेस ने इस बार 62 ओबीसी समुदाय के लोगों को प्रत्याशी बनाया है जबकि पिछले चुनाव में ये संख्या 50 थी. इसके अलावा स्पेशल बैकवर्ड क्लास में शामिल गुर्जर सहित अन्य जातियों को 13 टिकट दिए हैं. कांग्रेस ने इस बार दलित और आदिवासी समुदाय को रिजर्व सीटों से साथ-साथ सामान्य सीटों पर भी प्रत्याशी बनाए है. इस तरह से कांग्रेस ने एक मजबूत सोशल इंजीनियरिंग के जरिए सत्ता में वापसी की पटकथा लिखी है.बीजेपी की कास्ट पॉलिटिक्सबीजेपी राजस्थान की सत्ता में वापसी के लिए हर सियासी दांव चल रही है. कांग्रेस ने कैंडिडेट के चयन में अपने कोर वोटबैंक का ख्याल रखते हुए पिछले चुनाव की तरह ही इस बार भी ब्राह्मण और राजपूत पर सबसे ज्यादा भरोसा जताया और 2018 के बराबर ही कमोबेश टिकट दिए हैं. इस तरह से बीजेपी ने 20 ब्राह्मण कैंडिडेट को टिकट दिया है, जबकि 2018 में 23 टिकट दिए थे. 25 राजपूत समुदाय के प्रत्याशी उतारे हैं तो 2018 में 26 थे. बीजेपी ने इस बार आदिवासी समुदाय को पिछली बार से ज्यादा प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी ने 30 आदिवासियों को टिकट दिया है जबकि पिछले चुनाल में 28 प्रत्याशी उतारे थे.राजस्थान का सियासी समीकरणराजस्थान में जातीय समीकरण को जो भी दल साधने में सफल रहता है, उसी के हाथों में सत्ता होती है. राजस्थान में 89 फीसदी आबादी हिंदू, 9 फीसदी मुस्लिम और 2 फीसदी अन्य धर्म के लोग हैं. अनुसूचित जाति की आबादी 18 फीसदी, अनुसूचित जनजाति की आबादी 13 फीसदी, जाटों की आबादी 12 फीसदी, गुर्जर और राजपूतों की आबादी 9-9 फीसदी, ब्राह्मण और मीणा की आबादी 7-7 फीसदी है. इस लिहाज से किसी भी दल को सत्ता में आने के लिए ओबीसी वोट को साधना बेहद जरूरी हो जाता है. यही वजह है कि भले ही कांग्रेस और बीजेपी विकास, लोक कल्याण के नाम पर प्रचार करते हो, लेकिन टिकट का वितरण जाति के आधार पर ही होता है.