Rajasthan Election / राजस्थान के चुनावी रण में इस बार मुकाबला सीधा नहीं- गहलोत या वसुंधरा?

राजस्थान में अब चुनाव प्रचार चरम पर है. वहांं पर 25 नवंबर को वोट पड़ेंगे. हालांकि पहले यह तारीख 23 थी, लेकिन उस दिन देव उठावनी एकादशी पड़ रही है, इसलिए मतदान की तारीख दो दिन आगे बढ़ा दी गई थी. यहांं दोनों प्रमुख दल- कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे को घेरने की कोशिश में है. दोनों दलों में भितरघात भी जमकर है. हालांकि अपने दल के भीतर की टांग-खिंचाई को जाहिर न होने देने के लिए दोनों ही एक-दूसरे के भीतर की लड़ाई को हाई-लाइट

Vikrant Shekhawat : Nov 21, 2023, 10:06 PM
Rajasthan Election: राजस्थान में अब चुनाव प्रचार चरम पर है. वहांं पर 25 नवंबर को वोट पड़ेंगे. हालांकि पहले यह तारीख 23 थी, लेकिन उस दिन देव उठावनी एकादशी पड़ रही है, इसलिए मतदान की तारीख दो दिन आगे बढ़ा दी गई थी. यहांं दोनों प्रमुख दल- कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे को घेरने की कोशिश में है. दोनों दलों में भितरघात भी जमकर है. हालांकि अपने दल के भीतर की टांग-खिंचाई को जाहिर न होने देने के लिए दोनों ही एक-दूसरे के भीतर की लड़ाई को हाई-लाइट कर रहे हैं. सत्तारूढ़ कांग्रेस के अंदर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तीन और छह का आंकड़ा है तो भाजपा में वसुंधरा और गजेंद्र सिंह के बीच. इसलिए यह कहना आसान नहीं कि राजस्थान के रण में किसका पलड़ा भारी है.

गहलोत से बैर नहीं पर भितरघात से कैसे निपटें

राजस्थान में पिछले कई चुनावों से दिखता रहा है कि एक बार विधानसभा में कांग्रेस का कब्जा होता है तो अगली बार भाजपा का. मगर इस बार यह भविष्यवाणी मुश्किल है. इसमें कोई शक नहीं कि लोक लुभावन कार्यों में अशोक गहलोत उत्तर भारत में सबसे ऊपर हैं. उनकी सरकार द्वारा लाई गई चिरंजीवी स्वास्थ्य योजना और इंदिरा भोजनालय की योजना हिट रही है. प्रदेश की जनता को इसका बहुत लाभ मिला. लोग गहलोत सरकार से खुश हैं. किंतु पार्टी के भीतर जो कलह है, उससे गहलोत सरकार पर संकट के बादल गहराये हैं. सचिन समर्थकों में पार्टी की जीत के प्रति कोई उत्साह नहीं है. उलटे गुर्जर समाज का बड़ा हिस्सा कांग्रेस को हराने के लिए जुटा है. यद्यपि सोनिया गांधी और राहुल के लम्बे जयपुर प्रवास के कारण कुछ शांति है.

शेखावत का पेंच वसुंधरा के लिए भारी

दरअसल कांग्रेस पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. क्योंकि पिछले वर्ष राहुल गांधी जब भारत जोड़ो यात्रा पर निकले थे, तब उनकी यात्रा का काफी लम्बा वक्त राजस्थान में गुजरा था. पिछले माह कर्नाटक में कांग्रेस को जिस तरह जीत मिली थी, उससे माना जा रहा है कि राहुल गांधी की यात्रा सफल रही थी. इसलिए लोग कयास लगा रहे हैं कि राजस्थान में इस बार कांग्रेस रिपीट करेगी. उधर भाजपा में अंतर्कलह बहुत अधिक है. वसुंधरा राजे सिंधिया का वहां दो बार मुख्यमंत्री रही हैं इसलिए वे राजस्थान को अपनी जागीर समझती हैं. लेकिन भाजपा ने इस बार उन्हें सीएम फेस नहीं बनाया है, बल्कि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को रण में लाकर उसने यह संकेत भी दिया है कि यदि भाजपा जीती तो उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी दी जा सकती है.

ईस्टर्न कैनाल प्रोजेक्ट को लेकर घिरे गहलोत

जाहिर है भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही संतुष्टि नहीं है. चूंकि कांग्रेस वहांं सत्ता में है इसलिए भाजपा गहलोत सरकार को घेर रही है. गजेंद्र सिंह शेखावत ने ईस्टर्न कैनाल प्रोजेक्ट में रोड अटकाने का आरोप अशोक गहलाेत पर लगाया और कहा, कि प्रोजेक्ट पूरा होकर रहेगा और हमारी पार्टी की सरकार इसका उद्घाटन करेगी. पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के लिए यह परियोजना वरदान बनेगी. उम्मीद है कि इस परियोजना के पूरी हो जाने से साढ़े तीन करोड़ लोगों की प्यास बुझेगी. मगर केंद्र और राज्य सरकार की खींचतान से यह परियोजना अधर में लटक गई. भाजपा इसके लिए कांग्रेस को कोस रही है और कांग्रेस भाजपा को. यह मुद्दा चुनाव में 86 सीटों को प्रभावित करेगा. हालांकि इस परियोजना के अधीन आने वाले जिलों- भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, टोंक, दौसा जिलों में से केवल धौलपुर में ही भाजपा का विधायक है.

पूर्वी राजस्थान में असंतोष

इस परियोजना की घोषणा 2018 के पूर्व की भाजपा सरकार ने की थी. यह उम्मीद की गई थी, कि 2051 तक झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, करौली, अलवर, भरतपुर, दौसा व धौलपुर जिलों के विभिन्न शहरों में पीने का पानी और उद्योगों के लिए जरूरत भर का भरपूर पानी मिला करेगा. इसके तहत छह बैराज और एक बांध बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. धौलपुर व सवाई माधोपुर जिले में लगभग 2 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई की सुविधा भी मिलती है. इस परियोजना से प्रभावित होने वाली सीटों पर अब दोनों दलों की नजर है. कांग्रेस अपनी जीती हुई सीटों को गंवाना नहीं चाहती और भाजपा कांग्रेस को घेरे में लेकर अपना दायर बढ़ाने के लिए दम-खम लगाए हैं.

86 सीटों पर लड़ाई रोमांचक

ख़ासकर कुछ सीटों पर लड़ाई रोमांचक हो गई है. ये सीटें हैं- करौली, सपोटरा, टोडाभीम, हिंडौन सिटी, गंगापुरसिटी, बामनवास, सवाई माधोपुर, खंडार, नदबई, बयाना, वैर, भरतपुर, डीग-कुम्हेर, नगर, कामा, धौलपुर, बसेड़ी, बाड़ी, राजाखेड़ा, अलवर ग्रामीण, अलवर शहर, बानसूर, बहरोड़, कठूमर, किशनगढ़ बांस, मुंडावर, राजगढ़-लक्ष्मणगढ़, रामगढ़, थानागाजी, तिजारा, बारां-अटरू, छबड़ा, किशनगंज, अंता, झालरापाटन, खानपुर, डग, मनोहरथाना, बूंदी, केशवरायपाटन, हिंडोली, पीपल्दा, सांगोद, लाडपुरा, रामगंजमंडी, टोंक, देवली-उनियारा, मालपुरा, निवाई, दौसा, लालसोट, बांदीकुई, सिकराय, महवा, अजमेर नॉर्थ, अजमेर साउथ, मसूदा, केकड़ी, पुष्कर, नसीराबाद, किशनगढ़, ब्यावर. अब देखना है कि यहां कौन अपने पांव अंगद की तरह जमा पाता है.

किसी के लिए हलवा नहीं चुनाव

यह पहली बार हुआ है कि राजस्थान में किसी की भी जीत हलवा नहीं लग रही. इसकी एक प्रमुख वजह यह भी है कि सिटिंग-गेटिंग का फार्मूला इस बार नहीं अपनाया गया. दूसरे कई सीटों पर क्षेत्रीय दलों ने समीकरण बिगाड़ दिया है. कहीं निर्दलीय हैं तो कहीं आम आदमी पार्टी कहीं सपा तो कहीं बसपा. राजस्थान में उत्तर प्रदेश से सटे जिलों में सपा और बसपा का ठीक ठाक प्रभाव है. पिछली बार भरतपुर की नदबई सीट से बसपा के जोगेंद्र अवाना जीते थे, लेकिन जीत के बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए और मंत्री भी बने. हालांकि अवाना उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले के रहने वाले हैं. किंतु नदबई के गुर्जर बहुल होने के कारण वे वहां जाकर चुनाव लड़े और जीत गए. इस बार उनके सामने नदबई से जगत सिंह हैं. जो पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह के बेटे हैं.

पूरी ताकत अब राजस्थान में

भाजपा से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्टार प्रचारक हैं. प्रधानमंत्री ने जयपुर में रोड शो किया. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी वहां कई जन सभाएं कर चुके हैं. दोनों प्रमुख दल अपनी पूरी ताकत झोंक चुके हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस नीत इंडिया गठबंधन के घटक दल भी यहां भिड़े हैं. इस प्रकार वे कांग्रेस के ही वोट काट रहे हैं. ये सभी लोग निर्दलीय लड़ रहे हैं. अधिकांश तो कांग्रेस या भाजपा के बागी हैं. इसलिए ये लोग जिताऊ उम्मीदवार के वोट तो काटेंगे ही. इसलिए दोनों ही प्रमुख दल फंसे हैं. अलबत्ता डेढ़ सौ सीटों पर कांग्रेस व भाजपा में सीधा मुक़ाबला है. वसुंधरा और अशोक गहलोत जिन सीटों पर उतरे हैं, वहां बागी अवश्य नहीं हैं, लेकिन देखना है कि 25 नवंबर को मतदाता के मन में कौन आता है.