Rajasthan Election / राजस्थान में 3M से क्या बदलेगा रिवाज? कांग्रेस ने बनाया नायाब फॉर्मूला

राजस्थान विधानसभा चुनाव का प्रचार भले ही विकास से शुरू हुआ, लेकिन खत्म होते-होते जाति की सियासत आ गया. पीएम मोदी ने बीजेपी के सियासी जनाधार को दोबारा से मजबूत करने का दांव चला और कांग्रेस को दलित व गुर्जर विरोधी कठघरे में खड़े करते नजर आए. वहीं, कांग्रेस इस बार राजस्थान के रिवाज को बदलने के लिए नई सोशल इंजीनियरिंग के साथ मैदान में उतरी है. कांग्रेस अपने थ्री-एम फॉर्मूले यानि मीणा-मुस्लिम-माली समुदाय के वोटबैंक पर

Vikrant Shekhawat : Nov 24, 2023, 01:59 PM
Rajasthan Election: राजस्थान विधानसभा चुनाव का प्रचार भले ही विकास से शुरू हुआ, लेकिन खत्म होते-होते जाति की सियासत आ गया. पीएम मोदी ने बीजेपी के सियासी जनाधार को दोबारा से मजबूत करने का दांव चला और कांग्रेस को दलित व गुर्जर विरोधी कठघरे में खड़े करते नजर आए. वहीं, कांग्रेस इस बार राजस्थान के रिवाज को बदलने के लिए नई सोशल इंजीनियरिंग के साथ मैदान में उतरी है. कांग्रेस अपने थ्री-एम फॉर्मूले यानि मीणा-मुस्लिम-माली समुदाय के वोटबैंक पर मजबूत पकड़ बनाए रखते हुए सत्ता मं वापसी की कवायद में जुटी है.

राजस्थान की सियासत में जाट-राजपूत और गुर्जर वोटों की अहम भूमिका में है. राजपूत समुदाय शरू से बीजेपी को परंपरागत वोटर रहा है और गुर्जर भी, लेकिन जाट मतदाता अपना मिजाज बदलता रहा है. कांग्रेस जाट और आदिवासी वोटों पर मजबूत बनाए रखते हुए गुर्जरों को साधे रखने और अपने कोर वोटबैंक मीणा-मुस्लिम-माली यानि एम-फॉर्मूले के सहारे रिवाज बदलने की कोशिश में है.

सीएम गहलोत खुद माली समुदाय से आते हैं. कांग्रेस ने 17 नवंबर को गहलोत का एक वीडियो जारी किया है, जिसमें गहलोत यह कहते हुए नजर आ रहे हैं, ‘जैसे एक माली बगीचे में हर फूल की देखभाल करता है, उसी तरह से मैंने राजस्थान के सभी 36 समुदायों की देखभाल की है.’ इस तरह से गहलोत खुद को सर्वसमाज का नेता बताने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन थ्री-एम कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़ा है. ऐसे में बात कांग्रेस के थ्री-एम फॉर्मूले की है…

मीणा-माली-मुस्लिम (थ्री-एम)

राजस्थान में कांग्रेस थ्री-एम समीकरण के सहारे सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए हुए है. राज्य में मीणा 7 फीसदी, मुस्लिम 9 फीसदी और माली ढाई से तीन फीसदी हैं. इस तरह इन तीनों जातियों का वोट 19 फीसदी के करीब होता, जिसका एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस को मिलने की उम्मीद है. मीणा शुरू से ही कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा है और गहलोत के चलते माली वोटर्स भी पार्टी का कोर वोटबैंक बना चुका है. मीणा और गुर्जर की अपनी एक अलग सियासी अदावत रही है. गुर्जर बीजेपी के साथ रहे हैं तो मीणा समुदाय का भरोसा कांग्रेस की तरफ रहा है.

बीजेपी ने इस बार राजस्थान में एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया और खुलकर हिंदुत्व का दांव खेल रही है, जिसके चलते मुस्लिम मतदाताओं का एकमुश्त वोट कांग्रेस को मिल सकता है. कर्नाटक, बंगाल और यूपी चुनाव में मुस्लिम वोटिंग पैटर्न से भी साफ जाहिर होता है कि राजस्थान में एकतरफा वोटिंग कर सकते हैं. इस तरह से मीणा-मुस्लिम और माली तीनों ही जाति का वोट कांग्रेस को मिलने की उम्मीद दिख रही है.

मीणा वोटर 7 फीसदी

राजस्थान में आदिवासी समुदाय में बड़ा तबका मीणा समुदाय का है. सियासी तौर पर मीणा समाज काफी मजबूत माना जाता है और कांग्रेस को पुराना वोटबैंक रहा है.इसीलिए बीजेपी इस समुदाय के सबसे बड़े नेता किरोड़ी लाल मीणा को चुनावी मैदान में उतारा है, लेकिन वसुंधरा राजे के साथ उनके पुराने मतभेद रहे हैं. इसके चलते उन्होंने 2008 में बीजेपी छोड़ दी थी, लेकिन पार्टी में उनकी वापसी हुई और लोकसभा सांसद होते हुए चुनाव में उतारा है. कांग्रेस के पास मीणा समुदाय के नेताओं की एक लंबी फेहरिश्त है

मीणा समाज राजस्थान की करीब 40 से 50 सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. मीणा वोटर्स अलवर, सवाई माधोपुर, करौली, दौसा, झालावाड़, टोंक, उदयपुर, कोटा, बारां, राजसमंद, उदयपुर, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़ और चित्तौड़गढ़ जिले में प्रभावी हैं. इसीलिए कांग्रेस ने आदिवासी समुदाय को दिए गए टिकट में सबसे ज्यादा मीणा कैंडिडेट उतारे हैं. इतना ही नहीं उन्हें रिजर्व सीट के साथ-साथ सामान्य सीट पर भी प्रत्याशी बना रखा है.

मुस्लिम समुदाय 9 फीसदी

राजस्थान में 9 फीसदी मुस्लिम मतदाता 40 विधानसभा सीटों पर हार जीत तय करते हैं. राजस्थान की पुष्कर, सीकर, झुंझुनूं, चूरू, जयपुर, अलवर, भरतपुर, नागौर, जैसलमेर और बाड़मेर जैसी 16 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी जीतते रहे हैं. इसके अलावा प्रदेश की 24 सीटें ऐसी हैं, जहां पर मुस्लिम मतदाता अहम भूमिका अदा करते हैं. इनके वोट से ना केवल चुनाव के नतीजों पर असर पड़ता है बल्कि कई बार हार जीत भी तय करती है.

बीजेपी अपने गठन के बाद पहली बार राजस्थान में किसी भी मुस्लिम को इस बार के चुनाव में प्रत्याशी नहीं बनाया है. कांग्रेस ने इस बार 14 मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं. बीजेपी 1980 से लेकर 2018 तक हर चुनाव में मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं. 2013 में 4 मुस्लिमों को टिकट दिया था, जिनमें से दो जीते थे जबकि 2018 में सिर्फ एक यूनुस खान को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन 2023 में किसी को टिकट नहीं दिया. यही वजह है कि कांग्रेस इस बार मुस्लिमों के वोट एकमुश्त मिलने की उम्मीद लगाए हुए है और मुस्लिम मतदाता राजस्थान की 40 विधानसभा सीटों का भाग्य तय करते हैं, जिनमें से 33 सीटों पर इस समय कांग्रेस काबिज है.

माली 3% पर MBC की ताकत ज्यादा

राजस्थान में माली समुदाय ढाई से तीन फीसदी है और 26 विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा करते है. माली वोटर्स जयपुर, आमेर, विराट नगर, सिविल लाइन, मालवीय नगर, सांगानेर, विद्याधर नगर, गंगापुर, धौल धौलपुर, अलवर शहर, रामगढ़, बांदीकुई, दौसा, चौमूं. नीम का थाना, उदयपुरवाटी, नवलगढ़, अजमेर उत्तर, केकड़ी, कोटा, लाडपुरा, सांगोद, अंता, हिंडोली, सिरोही, जैतारण, बीकानेर पूर्व के साथ ही जोधपुर और नागौर सीट पर अहम है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत माली समुदाय से आते हैं, जिसके चलते कांग्रेस का मजबूत वोटबैंक बन चुका है. माली भले ही तीन फीसदी के करीब हों, लेकिन सैनी, कुशवाहा, शाक्य, मौर्य, मौर्या, सुमन, वनमाली, भोई माली समाज भी माली की ही उपजाति हैं, जिनका वोटबैंक करीब 15 फीसदी है. गहलोत को कांग्रेस ओबीसी नेता के तौर पर प्रोजेक्ट राजस्थान ही नहीं देश में करती रही है. यही वजह है कि माली ही नहीं एमबीसी यानि अति पिछड़े वर्ग का वोट है, उसे भी कांग्रेस साधने की कवायद में है.

राजस्थान में कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए अपने 23 मौजूदा विधायकों का टिकट काटकर उनकी जगह पर नए चेहरे पर दांव लगा रखा है. राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो इस बार अशोक गहलोत को लेकर किसी तरह से नाराजगी नहीं है, जिसके चलते ही कांग्रेस उन्हीं के इर्द-गिर्द रखकर चुनावी मैदान में उतरी है. नाराजगी विधायकों को लेकर थी और कांग्रेस ने 23 विधायकों के टिकट काट दिए हैं. कांग्रेस ने जाट समुदाय से सबसे ज्यादा टिकट दिए हैं तो बीजेपी से ज्यादा गुर्जर समाज से भी उतार रखा है. आदिवासी समुदाय में कांग्रेस ने मीणा जाति पर दांव खेला है तो मुस्लिमों पर भी अपना भरोसा कायम रखा है. इस तरह से कांग्रेस ने अपने कोर वोटबैंक थ्री-एम के साथ अन्य जातियों को भी साधने की रणनीति अपनाई है. ऐसे में अब देखना है कि कांग्रेस का यह दांव सफल होता है कि नहीं?