Delhi Election 2025 / केजरीवाल ने मुस्लिम इलाके वाली सीटों पर प्रचार से क्यों बनाए रखी दूरी?

दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार आज शाम छह बजे थम जाएगा। अरविंद केजरीवाल ने सितंबर में सीएम पद आतिशी को सौंपकर मिशन-दिल्ली पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से दूरी बनाए रखी, जिससे सियासी चर्चाएं तेज हैं। कांग्रेस और ओवैसी की चुनौती से मुकाबला कठिन हुआ।

Delhi Election 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार का आज आखिरी दिन है और शाम छह बजे प्रचार अभियान समाप्त हो जाएगा। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सितंबर में मुख्यमंत्री पद आतिशी को सौंपकर मिशन-दिल्ली की रणनीति अपनाई थी। पिछले साढ़े चार महीनों से वे लगातार आम आदमी पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश में जुटे रहे, लेकिन मुस्लिम बहुल इलाकों से दूरी बनाए रखी। खास बात यह है कि इस बार भी उन्होंने किसी मुस्लिम बहुल सीट पर चुनाव प्रचार नहीं किया, जबकि इन सीटों से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार मैदान में हैं।

दिल्ली की 70 सीटों में से 5 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। 2015 और 2020 के चुनावों में सभी मुस्लिम बहुल सीटें पार्टी ने जीती थीं, इसके बावजूद केजरीवाल इस बार भी इन इलाकों में प्रचार के लिए नहीं पहुंचे। सवाल यह उठता है कि आखिर इसके पीछे क्या रणनीति है?

दिल्ली में लगभग 13 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं और 8 विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल मानी जाती हैं। बल्लीमारान, सीलमपुर, ओखला, मुस्तफाबाद और मटिया महल पर आम आदमी पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं, जहां मुस्लिम वोटर 45 से 60 फीसदी तक हैं। इन सीटों पर आम आदमी पार्टी की कांग्रेस और AIMIM से कड़ी टक्कर मानी जा रही है।

2020 का दिल्ली विधानसभा चुनाव सीएए-एनआरसी आंदोलन की छाया में हुआ था, लेकिन तब भी मुस्लिम मतदाताओं ने एकजुट होकर केजरीवाल का समर्थन किया था। हालांकि, इस बार के चुनावी हालात बदले हुए हैं। आम आदमी पार्टी को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है, फिर भी केजरीवाल ने मुस्लिम इलाकों में प्रचार से दूरी बना रखी है।

इस बार के चुनाव में मुस्लिम बहुल इलाकों में तब्लीगी जमात और दिल्ली दंगे के मुद्दे छाए हुए हैं। कांग्रेस और AIMIM इन मुद्दों को जोर-शोर से उठा रही हैं, जिससे आम आदमी पार्टी के लिए स्थिति चुनौतीपूर्ण हो गई है। आम आदमी पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवारों को अकेले दम पर मैदान संभालना पड़ रहा है, जबकि पार्टी की ओर से संजय सिंह और मेहराज मलिक जैसे नेता प्रचार की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

क्यों बनाए रखी दूरी?

इस चुनाव में मुस्लिम मतदाता राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों को लेकर दुविधा में हैं। दिल्ली दंगों और तब्लीगी जमात मामले में आम आदमी पार्टी के रवैये से मुस्लिम समुदाय में नाराजगी देखी जा रही है।

मुस्लिम मतदाता कांग्रेस और AIMIM के प्रति झुकाव दिखा रहे हैं, जिससे केजरीवाल ने इन सीटों पर प्रचार करने से परहेज किया। अगर वे प्रचार के लिए उतरते, तो विरोध प्रदर्शन और नकारात्मक प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ सकता था। यही वजह है कि उन्होंने संजय सिंह और मेहराज मलिक को चुनाव प्रचार में आगे किया है।

केजरीवाल की यह रणनीति सेफ गेम खेलने जैसी है। अगर वे मुस्लिम बहुल सीटों पर प्रचार करते, तो बीजेपी उन पर मुस्लिम परस्ती का आरोप लगा सकती थी। इसलिए उन्होंने खुद को अलग रखा, लेकिन कांग्रेस और AIMIM को इस मुद्दे पर सवाल उठाने का मौका मिल गया है। उनकी रणनीति यह है कि मुस्लिम मतदाता बीजेपी को हराने के लिए अंततः आम आदमी पार्टी को ही समर्थन देंगे।

दिल्ली में सेफ गेम

संजय सिंह को आम आदमी पार्टी का सेक्युलर चेहरा माना जाता है और मुस्लिमों के बीच उनकी पकड़ मजबूत है। वे सीलमपुर, मुस्तफाबाद और बाबरपुर जैसी सीटों पर प्रचार कर चुके हैं, जो दिल्ली दंगों से प्रभावित रही हैं। वहीं, मेहराज मलिक भी मुस्लिम बहुल सीटों पर रैलियां कर रहे हैं।

केजरीवाल का फोकस यह बताने पर है कि कांग्रेस को वोट देने का फायदा सीधे बीजेपी को होगा। इंडिया गठबंधन के तहत सपा नेता अखिलेश यादव और अन्य नेताओं को भी रैलियों में उतारा गया है।

दिल्ली चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव किस ओर रहेगा, यह देखना दिलचस्प होगा। केजरीवाल की रणनीति कामयाब होगी या कांग्रेस और AIMIM मुस्लिम वोटों में सेंध लगाएंगे, इसका फैसला 8 फरवरी को मतदान के बाद ही होगा।