Vikrant Shekhawat : Jan 14, 2021, 12:08 PM
- जयपुर समेत प्रदेश के विभिन्न अंचलों में अलग-अलग तरह का है नजारा
- उदयपुर, जोधपुर, बीकानेर में छतों पर हैं पतंगबाज
- अलवर में गेंद-बल्ला और सतोलिया की है धूम
मकर राशि में प्रवेश के साथ उत्तर की ओर गमन करने वाले सूर्य की पहली किरणें प्रदेश के आसमान पर गोते खाती पतंगों पर पड़ती दिखाई दे रही हैं। संक्रमण काल में शुभ मकर संक्रान्ति के दिन गुरुवार की यह सुबह जयपुर सहित प्रदेश के विभिन्न अंचलों में कुछ खास बनी है। इस खास अवसर पर शहर के शहर छतों पर हैं। छतों पर पतंग हैं, चरखे हैं, पेच लड़ने-लड़ाने की बातें हैं और ये काटा-वो काटा की पुकार है। रजवाड़ों से चली आ रही परंपरा की डोर जितनी ऊंचाई तक पहुंच रही है, हर मन की खुशियां उतनी ही ऊंचाइयां ले उठी हैं।
मकर संक्रान्ति का यह अवसर दिल खोलकर त्योहार मनाने का अवसर है। जयपुर, कोटा, बीकानेर, उदयपुर, जोधपुर समेत तमाम छोटे-बड़े शहरों का नजारा कहीं कम तो कहीं ज्यादा का भले ही हो, उत्साह किसी से कम नहीं है। अलवर में पतंगबाजी नहीं है, लेकिन अपनी परंपरा के अनुसार बच्चों से लेकर बड़े तक मैदानों में, छतों पर, घर की चार दीवारी में गेंद लेकर सतोलिया, राउंडल और क्रिकेट का लुत्फ उठा रहे हैं।
परिंदों की ऐसी परीक्षा, बचाने वालों की कवायद:आकाश में उड़ती पतंग और उनके डोर की लकड़पेच के बीच सुबह-शाम यहां-वहां प्रवास करने वाले परिंदों की परीक्षा भी शुरू हो गई है। यह परीक्षा ऐसी है, जिसमें अनजान पतंगों के काट डालने वाले मांझे के इस मकड़जाल को उन्हें समझना होगा। पर ऐसा होता कहां है? वे बचते-बचाते अपने गंतव्य तक पहुंच पाते हैं या नहीं, लेकिन उलझकर घायल हो जाते हैं तो उनको बचाने सैकड़ों हाथ तैयार भी हैं। कठिन परीक्षा से निकलने की कवायद प्रदेशभर में आकाशीय ऊंचाइयों पर दिखाई दे रही है। रक्षा, वर्ल्ड जैसी संस्थाएं सरकारी विभाग के साथ मिलकर परिंदों को बचाने की मुहिम में लगे हैं। यह राहत की बात भी है।
जयपुर। प्रदेश की राजधानी में पतंगबाजी का कोलाहल छतों से सुनाई दे रहा है। यह कोलाहल कोई शोर नहीं, बल्कि पतंगों की डोर की सांय-सांय और छतों पर रखे म्यूजिक सिस्टम का है। जिस पर नए-पुराने गानों के साथ बीच-बीच में ये काटा-वो काटा, पेच लड़इयो जैसे शब्द गूंज उठते हैं।
इस बार भले ही कोरोना के कारण पर्यटन विभाग का पतंग महोत्सव नहीं हो रहा हो, लेकिन छतें पूरी तरह आबाद हैं। विदेशी मेहमानों की भले ही कमी हो, लेकिन देशी मेहमान जरूर अपनों के यहां संक्रांति मनाने आए हुए है। यह ऐसा पल है जो सभी अपने जेहन में संजोकर ले जाना चाहते हैं।
उदयपुर:राजधानी जैसा आलम यहां अभी नहीं बन पाया है, लेकिन धार्मिक गतिविधियां तेज हैं। सूर्य के उत्तर की ओर गमन करने का यह पहला दिन अपनी संस्कृति का महत्वपूर्ण पल है, इसलिए मंदिरों में रौनक है। घर-घर तिल गुड़ के पकवानों से महक उठे हैं।
अजमेर:अजमेर की धार्मिक नगरी पुष्कर का माहौल पूरी तरह बदला हुआ है। यहां पुष्कर सरोवर तड़के से ही आबाद हो गया था। मंदिरों में श्रद्धालुओं की नियमित संख्या कई गुना दिखाई दे रही है। पुष्कर सरोवर में स्नान-ध्यान और मंदिरों में प्रभु की आराधना का सिलसिला लगातार चल रहा है।पतंगबाजी- अभी तक जयपुर के बाद सबसे अधिक पतंगबाजी यहीं नजर आती है। छतों पर बच्चे-बड़े और महिलाएं भी हैं। गाने बज रहे हैं और डांस भी चल रहे हैं। पतंग की डोर पतंग को आसमान की ओर ले जाने की जद्दोजहद में है।
कोटा:कोचिंग हब कोटा में धूप निकल आई है। हवा पतंगबाजी के अनुकूल है। लोग छतों पर पहुंच गए हैं और चरखे में मांझा लपेट पतंग को उड़ान देना शुरू कर दिया है। छतों पर परिवार हैं। उनकी बातें भी हैं और हवा में गोते खाती पतंगों के कटने का कोलाहल भी है। छतों का एक हिस्सा कटी हुई पतंग के लिए तो दूसरा नई पतंगों के लिए जैसे चुन लिया गया है।
जोधपुर:
सूर्य नगरी में पतंगबाजी की परंपरा नहीं के बराबर है। राजस्थान की धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं को मानने वाले इस शहर में तड़के उठना, स्नान-ध्यान करना और मंदिरों तक जाना, कुछ ऐसा ही सिलसिला मकर संक्रांति को देखने को मिल रहा है। यह सिलसिला इस खास पर्व के लिए आम इसलिए बन गया है, क्योंकि मंदिरो की रौनक बढ़ गई है। दान-पुण्य की परंपरा का निर्वहरण किया जा रहा है। हर हाथ से समर्पण का भाव खुल कर दिखाई दे रहा है।