Vikrant Shekhawat : Sep 06, 2023, 05:49 PM
India vs Bharat: देश का नाम बदलने को लेकर सियासत गरमाई हुई है. इंडिया को भारत नाम देने को लेकर चर्चा चल रही है. बीजेपी खुलकर भारत नाम रखने की पैरवी कर रही तो कांग्रेस सहित विपक्षी गठबंधन मोदी सरकार पर हमलावर हैं. ऐसे में बसपा प्रमुख मायावती ने बुधवार को एक बयान जारी किया है, जिसमें बीजेपी का बचाव करती दिख रही है तो INDIA का नाम बदले जाने के लिए विपक्षी गठबंधन को जिम्मेदार ठहरा रही है. मायावती का साफ-साथ कहना है कि विपक्ष ने अपने गठबंधन का नाम INDIA रखकर बीजेपी को मौका दे दिया है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से हस्ताक्षेप करने की मांग बसपा प्रमुख ने उठाई है तो साथ ही संविधान बदले जाने की चिंता भी जाहिर कर रही हैं?उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि देश के नाम को बदले जाने के मामले में पक्ष और विपक्ष एक साथ हैं. दोनों की मिलीभगत है. बसपा इसका समर्थन नहीं करती है.मायावती के निशाने पर INDIA गठबंधनINDIA गठबंधन के नाम पर सवाल खड़े करते हुए मायावती ने कहा कि विपक्ष अपने गठबंधन का नाम इंडिया न रखता तो बीजेपी को यह मौका नहीं मिलता. मायावती ने कहा कि अगर बीजेपी को विपक्षी गठबंधन के नाम से आपत्ति थी तो उन्हें इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए था. इस मुद्दे पर जो संकीर्ण राजनीति की जा रही है वह गलत है.बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि हमारी मांग है कि सुप्रीम कोर्ट खुद इस मामले का संज्ञान ले. उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय को स्वतः संज्ञान लेकर ऐसे नाम रखने वाले संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए जो देश के नाम पर बने है. अन्यथा ऐसे ही देश की गरिमा को लगातार ठेस पहुंचती ही रहेगी. विपक्ष और सत्ता पक्ष द्वारा देश के नाम पर संकीर्ण राजनीति करने का मौका मिला है और उसके चलते संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का मौका मिल जाएगा.उन्होंने मांग किया केंद्र सरकार को इस मामले (विपक्षी गठबंधन के नाम पर) में कानून बदलकर संबंधित रखे जाने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए था. सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में स्वत: संज्ञान लेना चाहिए.मायावती की बातों से एक बात तो साफ दिख रही है कि उनके निशाने पर बीजेपी से कहीं ज्यादा विपक्षी गठबंधन INDIA है. इसीलिए मायावती ने सारे आरोप विपक्ष पर ही मढ़े हैं और कहा है कि अगर विपक्ष अपने गठबंधन का नाम INDIA नहीं रखता तो आज देश के नाम को बदलने की यह स्थिति नहीं बनती.वोटबैंक बचाने के लिए मायावती की चालमतलब साफ है कि INDIA को भारत नाम रखने की बात जो चल रही है, उसके जिम्मेदार सिर्फ विपक्षी गठबंधन है. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट से INDIA गठबंधन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है. इस तरह बीजेपी का बचाव भी करती दिखी, लेकिन संविधान बदले जाने की संभावना पर चिंता जरूर जाहिर किया. इसके पीछे मायावती के सियासी निहतार्थ भी छिपे हुए हैं.दरअसल, विपक्षी गठबंधन INDIA का हिस्सा बसपा नहीं है. मायावती अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है, लेकिन उत्तर प्रदेश में उनकी विरोधी सपा, कांग्रेस और आरएलडी INDIA गठबंधन के साथ हैं. इतना ही नहीं दलित नेता और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद और अपना दल (कमेरावादी) की कृष्णा पटेल व पल्लवी पटेल भी विपक्षी गठबंधन के साथ हैं. इस तरह से यूपी में बसपा अलग-थलग पड़ चुकी है. उनके लिए न तो एनडीए में और न ही INDIA में जगह बन पा रही.बीजेपी उत्तर प्रदेश में इतनी मजबूत स्थिति में है, जिसके चलते बसपा के लिए बहुत ज्यादा स्पेस वहां बन नहीं रहा. बसपा का छिटका हुआ दलित और अतिपिछड़ा वोटबैंक बीजेपी का सियासी आधार व मजबूत वोटबैंक बन चुका है. ऐसे में बीजेपी उन्हें साथ लेकर दोबारा से सियासी तौर पर उभरने का मौका क्यों देना चाहेगी.मायावती की भी सियासी मजबूरी है कि बीजेपी के साथ जाने पर मुस्लिम वोट भी बसपा के छिटकने का भी खतरा है. बीएसपी पर बीजेपी के बी-टीम के नैरेटिव लगाने को साबित करने का मौका मिल जाएगा. इस तरह मायावती के लिए विपक्षी गठबंधन में जगह नहीं बन पा रही तो बीजेपी के साथ जाने का रास्ता नहीं बन रहा. ऐसे में मायावती एकला चलो की राह पर कदम बढ़ा रही हैं और उनके निशाने पर सत्ताधारी बीजेपी से ज्यादा विपक्षी गठबंधन है.‘INDIA’ पर क्यों मायावती हमलावरबसपा प्रमुख मायावती यूं ही विपक्षी गठबंधन पर हमलावर नहीं है बल्कि उसके पीछे सोची-समझी रणनीति है. मायावती इस बात को समझ रही हैं कि बीजेपी पर हमला करने से उन्हें सियासी तौर पर कोई बड़ा फायदा नहीं होने वाला है, क्योंकि बीजेपी के साथ जो वोटर है, वो तो फिलहाल खिसने वाला नहीं है. ऐसे में विपक्षी गठबंधन जिस वोट को अपने साथ जोड़ने की कवायद कर रहा है, उसमें मायावती का अपना कोर वोटबैंक भी है. सपा ने यूपी में तमाम बसपा नेताओं को मिलाकर मायावती के वोटबैंक को अपने साथ जोड़ने की कवायद की है.कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खरगे को पार्टी अध्यक्ष बनाकर दलित वोटों को जोड़ने की मुहिम में जुटी है. कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इसका सियासी फायदा भी मिल चुका है. 82 फीसदी दलित समुदाय के मतदाताओं ने कर्नाटक में कांग्रेस को वोट किए हैं. यूपी में भी कांग्रेस दलित वोटों को दोबारा से हासिल करने की कोशिशों में जुटी है तो राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी पार्टी का फोकस इसी वोटबैंक पर है.ऐसे में मायावती को लगता है कि सत्तापक्ष से ज्यादा उनके खतरा विपक्ष से है. इसीलिए उनके टारगेट पर बीजेपी से कहीं ज्यादा कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन है. इस पर मायावती को सियासी नुकसान का भी खतरा है, लेकिन वक्त और सियासत ने उन्हें ऐसी जगह पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां से उनके लिए सियासी राह मुश्किलों भरी होती जा रही है?