Bihar By-Election: बिहार के उपचुनाव में प्रशांत किशोर (पीके) की पार्टी ‘जनसुराज’ ने अपना पहला बड़ा राजनीतिक मुकाबला लड़ा, लेकिन नतीजे बेहद निराशाजनक रहे। चार विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में से तीन पर जनसुराज के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई, जबकि एक सीट पर पार्टी चौथे स्थान पर पहुंची। ये परिणाम न केवल जनसुराज के लिए एक झटका साबित हुए, बल्कि बिहार की राजनीति में भी चर्चा का विषय बन गए हैं।
चारों सीटों पर हार, लेकिन खेल बिगाड़ने में कामयाब
तराड़ी सीट पर जनसुराज ने किरण सिंह को मैदान में उतारा, लेकिन वे केवल 5,622 वोट ही ला सकीं। इस सीट पर बीजेपी के विशाल प्रशांत ने जीत हासिल की, जबकि माले के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे। 2020 के चुनाव में यह सीट माले के पास थी।रामगढ़ में सुशील कुमार सिंह को प्रत्याशी बनाया गया, लेकिन वे भी 6,513 वोटों के साथ मुख्य मुकाबले से बाहर रहे। यहां भी बीजेपी के अशोक कुमार सिंह ने जीत दर्ज की।ईमामगंज सीट पर जीतन राम मांझी की बहू का मुकाबला था, और यहां जनसुराज के उम्मीदवार जितेंद्र पासवान 35,000 वोट पाकर अपनी जमानत बचाने में कामयाब रहे।बेलागंज सीट पर जेडीयू की मनोरमा देवी विजयी रहीं, जबकि जनसुराज के उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे। उन्हें 17,000 वोट मिले।
पीके के दावे और जमीनी हकीकत
जनसुराज लॉन्च के समय पीके ने दावा किया था कि वे बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव लाएंगे। उपचुनाव को उन्होंने अपनी पार्टी की ताकत दिखाने का जरिया बताया था। प्रशांत किशोर ने चुनाव प्रचार के दौरान जोरदार कैंपेन किया, गांव-गांव घूमे, लेकिन नतीजे उनके लिए निराशाजनक रहे।हालांकि, हार के बावजूद पीके ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी को दो सीटों पर नुकसान पहुंचाया। ईमामगंज में आरजेडी का उम्मीदवार करीब 6,000 वोटों से हार गया, जबकि बेलागंज में आरजेडी के विश्वनाथ सिंह को 21,000 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। यहां पीके के उम्मीदवार को करीब 18,000 वोट मिले।
बिहार के सियासी मिजाज को समझने में चूक?
प्रशांत किशोर ने चुनावी रणनीतिकार के रूप में बड़ी पहचान बनाई है, लेकिन बिहार के उपचुनाव में उनकी पार्टी की दुर्गति ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या पीके बिहार के सियासी मिजाज को समझने में चूक गए?इन चार सीटों पर चुनाव दक्षिण बिहार में हुआ था। तराड़ी, ईमामगंज, बेलागंज और रामगढ़ की इन सीटों पर जातिगत समीकरण और क्षेत्रीय मुद्दे हावी रहे। लेकिन पीके की पार्टी इन समीकरणों को भुनाने में नाकाम रही।
आगे की राह और 2025 की तैयारी
प्रशांत किशोर की नजर अब 2025 के विधानसभा चुनावों पर है। इस उपचुनाव को उन्होंने अपनी पार्टी का लिटमस टेस्ट बनाने की कोशिश की, लेकिन परिणाम ने उनकी रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए।आने वाले समय में पीके को अपने उम्मीदवारों के चयन में अधिक सावधानी बरतनी होगी। जनसुराज की वर्तमान छवि एक "वोटकटवा" पार्टी की बन गई है। ऐसे में, प्रशांत किशोर को न केवल अपने संगठन को मजबूत करना होगा, बल्कि बिहार के जमीनी सियासी समीकरणों को भी समझना होगा।
निष्कर्ष
बिहार के उपचुनाव के नतीजे प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी के लिए सीखने का अवसर हैं। हालांकि उनकी रणनीति इस बार कारगर नहीं रही, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि वे आगामी चुनावों में अपनी गलतियों से क्या सबक लेते हैं और अपनी राजनीतिक जमीन कैसे मजबूत करते हैं। बिहार की राजनीति में बदलाव लाने का उनका सपना फिलहाल मुश्किल जरूर दिख रहा है, लेकिन इसकी पूरी संभावना है कि वे एक बार फिर नए जोश और रणनीति के साथ मैदान में उतरेंगे।