जयपुर | सुषमा स्वराज! महिला राजनीति का एक महत्वपूर्ण चेहरा। एक ऐसी महिला, जिसकी ओजस्वी वाणी से संसद के सदन में भारतीय जनता की आवाज सालों तक गूंजती रही। भारत की किसी भी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी में पहली प्रवक्ता और देश की पहली पूर्णकालिक विदेश मंत्री रहने का गौरव प्राप्त करने वाली फायरब्राण्ड लेडी सुषमा स्वराज 25 वर्ष की उम्र में किसी भी सरकार में केबिनेट मंत्री बनने वाली पहली महिला थी।
इतनी कम उम्र में सुषमा हरियाणा केबिनेट मिनीस्टर कैसे बनीं। वह भी तब जब राज्य के मुख्यमंत्री उन्हें सरकार में लेना नहीं चाहते थे और सिर्फ राज्यमंत्री का दर्जा देना चाहते थे। परन्तु समाजवादी राजनीति के शिखर पुरुष और जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष चन्द्रशेखर जो कि बाद में भारत के प्रधानमंत्री भी रहे। उनके दखल पर सुषमा को केबिनेट मंत्री बनाया गया। हालांकि सुषमा को दो—तीन महीने बाद ही देवीलाल ने बर्खास्त कर दिया, लेकिन चन्द्रशेखर ने तीखे तेवर दिखाते हुए मुख्यमंत्री देवीलाल को हटाने की धमकी दी। इस पर देवीलाल सुषमा को मंत्रीमण्डल में रखने पर राजी हो गए। हालांकि बाद में देवीलाल इन्हीं चन्द्रशेखर की पार्टी में सरकार में उप प्रधानमंत्री रहे। वैसे वे देवीलाल ही थे जो 1989 में चन्द्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता रोकने वाले षड्यंत्र के सूत्र में खुद को पिरो बैठे और वीपीसिंह देश के पीएम बने। हालांकि एक साल बाद ही वीपी सिंह के इस्तीफा देने पर ताउ के नाम से मशहूर देवीलाल ने चन्द्रशेखर को समर्थन किया।
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1990—1991 में भारत के प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर अपनी आत्मकथा जीवन जैसा जिया में लिखते हैं सुषमा स्वराज को देवीलाल मंत्री नहीं बनाना चाहते थे। वे बहाने बना रहे थे। उन्होंने सुषमा जी को केबिनेट की शपथ नहीं दिलाई। कहते थे, राज्यमंत्री बन जाओ। एक दिन मधु लिमए के साथ सुषमा स्वराज आईं। उनको भय था कि देवीलाल शपथ नहीं दिलाएंगे। मैंने कहा : ऐसा नहीं हो सकता। जनता पार्टी संसदीय बोर्ड का फैसला है। मैंने देवीलाल से बात की। देवीलाल कहने लगे कि उनसे कहिए, राज्यमंत्री की शपथ ले लें। उन्हें उस पर आपत्ति थी। मधु लिमए का कहना था कि यह बात यदि प्रधानमंत्री चरणसिंह चौधरी को मालूम हो गईं और उन्होंने सुषमा स्वराज को देख लिया तो तो राज्यमंत्री बनने का मौका भी हाथ से निकल जाएगा।
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पूर्व पीएम चन्द्रशेखर आगे लिखते हैं कि मैंने देवीलाल को कहा कि यह संसदीय बोर्ड का फैसला है, जिस पर मैंने दस्तखत गए हैं। आपको उसका आदर करना चाहिए। इस पर चौधरी देवीलाल ने सवालिया अंदाज में कहा कि मंत्री—पद की शपथ कैसे दिलवा दें, वह बहुत छोटी है, परन्तु उन्होंने सुषमाजी को शपथ दिला दी।
ज्यादा दिन नहीं निभी, सुषमा हुईं बर्खास्त
चन्द्रशेखर लिखते हैं कि सुषमा स्वराज की देवीलाल जी से ज्यादा दिन तक नहीं निभ सकी। दो—तीन महीने बाद ही फिर वे मधु लिमए के साथ आईं। कहने लगीं कि मुख्यमंत्री मुझे बर्खास्त करने वाले हैं। मेरा इस्तीफा ले लीजिए, नहीं तो बेइज्जती होगी। मैंने कहा : ऐसा कैसे होगा? बिना पूछे वे ऐसा नहीं कर सकते। अगर आशंका है तो मधु को त्यागपत्र दे देना। सुषमा स्वराज के जाने के थोड़ी देर बाद एजेंसियों से खबर आई कि हरियाणा के मुख्यमंत्री ने अपने एक मंत्री को फरीदाबाद के मर्चेंट चेम्बर आफ कॉमर्स की सभा में बर्खास्त कर दिया।
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सीएम बोले सुषमा किसी काम की नहीं, चन्द्रशेखर ने कहा आप चीफ मिनीस्टर नहीं रह सकते
चन्द्रशेखर आगे लिखते हैं कि मैं उनके इस अभद्र व्यवहार पर हैरान था। मैंने देवीलाल से बात की। मैंने कहा कि खबर आई है, आपने सुषमा स्वराज को बर्खास्त कर दिया? देवीलाल कहने लगे, वह किसी काम की नहीं है। कोई काम नहीं करतीं, परेशानी पैदा करती हैं। मैंने कहा कि आप उनको वापस लीजिए। उन्होंने सुषमा स्वराज को वापस लेने से इनकार कर दिया और कहा कि अब वे मंत्री नहीं रह सकतीं। मैंने कहा कि चौधरी साहब, अगर आपने सुषमा स्वराज को वापस नहीं लिया तो आप चीफ मिनीस्टर नहीं रह सकते। मुझे पार्टी अध्यक्ष होने के नाते जरूरत पड़ने पर इस बात का अधिकार है कि आपको पार्टी से निकाल दूं। नोटिस पीरियड 15 दिन का रहेगा। उस दौरान मैं नए नेता के चुनाव का आर्डर कर दूंगा। आपका ही कोई आदमी आपके खिलाफ खड़ा हो जाएगा, और वह चुन लिया जाएगा।
देवीलाल आए चरण की शरण में
आत्मकथा के अनुसार कड़े फैसलों के चलते बलिया के बाबू साहब नाम से मशहूर चन्द्रशेखर के इस कथन के बाद देवीलाल दौड़े हुए दिल्ली आए। चौधरी चरणसिंह ने मुझसे पूछा कि आपने देवीलाल को बर्खास्त करने की धमकी दी है? मैंने कहा : हां। उन्होंने पूछा कि बात क्या है? मैंने कहा कि देवीलाल ने अपने एक मंत्री को सार्वजनिक सभा में बर्खास्त कर दिया। चौधरी चरणसिंह ने पूछा कि क्या आपसे सलाह ली थी? मैंने कहा, नहीं। उनका अगला सवाल था, क्या गर्वनर को चिट्ठी भेज दी है? मैंने बताया कि जहां तक मेरी जानकारी है, उन्होंने राज्यपाल से भी बात नहीं की है। मैंने उन्हें यह भी बताया कि मुख्यमंत्री ने अपने मंत्री को फरीदाबाद की मर्चेंट चेम्बर आफ कॉमर्स की मीटिंग में बर्खास्त किया है। यह सुनना था कि चौधरी चरणसिंह बोले : इसे पार्टी से निकालो। पार्टी में रहने लायक नहीं है। पार्टी का अनुशासन नहीं मानता। चौधरी देवीलाल वहीं रहे होंगे। थोड़ी देर बाद वे मेरे यहां आए। उनकी भाषा बदली हुई थी। मैंने कहा कि चौधरी साहब सुषमा आपकी बेटी के समान है। सुषमा को समझाया, दोनों को अपने यहां बुलाकर चाय पिलाई। सुषमा मंत्रिमंडल में बनी रहीं।
जब सुषमा ने चन्द्रशेखर को कह दिया था कौरवों के भीष्म पितामह
जब सुषमा ने चन्द्रशेखर को कह दिया था कौरवों के भीष्म पितामह
शुरूआत में जॉर्ज फर्नांडिस की टीम की सदस्य रहीं सुषमा जेपी के सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन में सक्रिय थी। बाद में सुषमा जनता पार्टी से भाजपा में शामिल हो गईं। उनके नाना आरएसएस से जुड़े रहे थे। सदन में उन्होंने एक बार चन्द्रशेखर को भीष्म पितामह की उपाधि दे डाली। 11 जून 1996 को भारत—भारतीयता संस्कृति के मुद्दे पर मुरासोली मारन की टिप्पणी से आहत सुषमा ने कहा कि मुझे उम्मीद सिर्फ चन्द्रशेखरजी से थी कि वे कुछ बोलेंगे, लेकिन वे भी कौरवों के भीष्म पितामह की तरह चुप ही रहे। इस पर चन्द्रशेखर भी हंस दिए। सुषमा चन्द्रशेखर को शुरुआत में राजनीतिक गुरु मानती रहीं, बाद में उनका झुकाव आडवाणी की ओर हो गया। हालांकि साल 2004 में सोनिया गांधी को लेकर दिए गए एक बयान को लेकर चंद्रशेखर ने सुषमा स्वराज की राज्यसभा की सदस्यता बर्ख़ास्त करने तक की मांग की। लेकिन, दोनो तरफ़ से कभी भी कोई अमर्यादित टिप्पणी नहीं की गई। 11 जून के दिन विश्वास मत के विरोध में सम्बोधन करते हुए सुषमा कहने लगीं 'त्रेता में राम के साथ यही घटना घटी... द्वापर में यही घटना युधिष्ठिर के साथ भी घटी. सिर्फ एक मंथरा और एक शकुनी की वजह से ऐसा हुआ तो आज तो हमारे सामने तो कितनी मंथराएं और कितने शकुनी हैं. हम राज्य में बने कैसे रह सकते हैं।' इस पर विरोधियों ने हंगामा शुरू कर दिया। उस दौरान लोकसभा के इस सत्र को पीठासीन नीतीश कुमार संचालित कर रहे थे। सदन में हंगामे को देखते हुए उस समय बलिया लोकसभा सीट के तत्कालीन सांसद और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर खड़े हुए, उन्होंने नीतीश कुमार के सहारे पूरे सदन से कहा कि जब सुषमा स्वाराज बोल रही हैं तो उन्हें सुनना चाहिए।
चंद्रशेखर ने कहा, 'मैं यह नहीं जानता की सदन में कितने अध्यक्ष काम कर रहे हैं. मैं केवल आपसे यह निवेदन कर रहा था कि कोई भी सदस्य अगर बोल रहा हो... तो दूसरे सदस्यों को अनुमति देने चाहिए कि उन्हें सुनना चाहिए. मैं यह कहना चाहता हूं कि जब सुषमा जी बोल रही हैं तो उन्हें सुनना चाहिए, और जिनको उत्तर देना हो उन्हें उत्तर देना चाहिए।' पूर्व प्रधानमंत्री के इस हस्तक्षेप के बाद सदन शांत हुई और सुषमा स्वाराज बड़े ही ओजस्वी स्वर में और सही तर्कों के साथ 26 मिनट का अपना भाषण समाप्त किया, अपने इस भाषण में उन्होंने विश्वासमत के विरोध में अपनी बात रखी।