Vikrant Shekhawat : Oct 01, 2019, 04:54 PM
जयपुर । रजिस्ट्रार सहकारिता डॉ. नीरज के. पवन ने कहा कि महात्मा गांधी जी के सहअस्तित्व, सद्भाव जैसे सभी सिद्धान्तों के पीछे सहकारिता की मूल भावना छिपी हुई है। उन्होंने कहा कि गांधी के सार्वजनिक जीवन में उनके आदर्श, उनकी सीख ही हमारे एवं समाज के लिए प्रेरक हैं। महात्मा गांधी के आदर्श वर्तमान समय की जरूरत है। गांधी के विचार अथाह समुद्र है, जिनके कारण देश विनीत भाव से उनको राष्ट्रपिता की संज्ञा देता है।
डॉ. पवन मंगलवार को सहकार भवन में महात्मा गांधी के 150वीं जयन्ती वर्ष के उपलक्ष्य में ’’सत्य के साथ मेरे प्रयोग’’ विषय पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के मूल्य और उनका जीवन दर्शन आज भी प्रासांगिक है तथा उन्होंने हरिजन जैसा शब्द देकर समाज में समरसता एवं सौहार्द्र को स्थापित करने प्रयास किया।
राजस्थान लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर बीएम शर्मा ने कहा कि गांधी जी ने अपने जीवन में पांच आश्रम स्थापित किए, जो सहकारिता के उत्कृष्ट उदहारण है। उन्होंने जो भी विचार दिये आश्रमों के माध्यम से दिए। उनके द्वारा स्थापित आश्रम समाज दर्शन की प्रयोगशाला एवं सहकारिता से सत्याग्रही तैयार करने के केन्द्र थे।
उन्होंने कहा कि गांधी जी ने सत्य, अहिंसा और आत्मबल को हथियार बनाकर आजादी की लड़ाई लड़ी। उन्होंने भूख को हथियार बनाया, उपवास का प्रशिक्षण किया ताकि भूख हमारी लड़ाई को कमजोर ना बना सकें। उन्होंने कहा कि गांधी जी ने जो भी आंदोलन खडे़ किए, उनके पीछे प्रबंधन की गहरी समझ थी और उनके क्रियान्वयन का आधार सहकारिता का विचार था।
राजस्थान विश्वविद्यालय के महात्मा गांधी अध्ययन केन्द्र के निदेशक, डॉ. राजेश शर्मा ने कहा कि महात्मा गांधी की यह देन है कि सत्य एवं अहिंसा के उनके सफल प्रयोगों के बदौलत ही आज विश्व भारत की ओर देख रहा है। उनका जीवन ही उनका संदेश है। गांधी अधिकारों की मांग करते हैं लेकिन स्वयं के लिए नही उन्होंने दूसरों के लिए अपने जीवन को समर्पित किया। उन्होंने कहा कि कायर व्यक्ति सत्य एवं अहिंसा के रास्ते पर नहीं चल सकता। डॉ. शर्मा ने कहा कि गांधी के पास न शस्त्र था न धन था फिर भी वे महाबली थे केवल सत्य और अहिंसा के आधार पर। उन्होंने कहा कि विभिन्न उददरणों के द्वारा गांधी जी के जीवन के सिद्धान्तों को समझाया। उन्होंने कहा कि गांधी जी की सोच थी कि सभी धर्मो का सम्मान करना स्वयं के धर्म का सम्मान करना है। उन्होंने कहा कि गांधीवाद युगों-युगों तक प्रासांगिक रहेगा।
संयुक्त रजिस्ट्रार, सहकारिता (नियम) विवेकानन्द यादव ने कहा कि ’सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ विश्व की उत्कृष्ट आत्मकथा है जिसमें अपने उजले एवं अंधेरे दोनो पक्षो को पूरी प्रमाणिकता के साथ गांधी जी ने लिखा है। सत्य से गांधी जी का आशय परमसता से है। जो कुछ भी परिवर्तनशील है वह सब माया है और जो कुछ स्थाई है वह ’सत्य’ है। इसलिए गांधी जी ’सत्य’ को ही ईश्वर कहते है। इस अवसर पर संयुक्त रजिस्ट्रार राइसेम, आर.एस. चौहान ने भी विचार व्यक्त किए।
निदेशक राइसेम, विजय शर्मा ने सभी अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर सहकारिता विभाग के वरिष्ठ अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे।