Telangana Election 2023 / कांग्रेस की तेलंगाना में जीत अखिलेश यादव के लिए कैसे बुरी खबर?

पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस को छत्तीसगढ़ और राजस्थान अपने दो राज्यों की सत्ता गंवानी पड़ी है, लेकिन तेलंगाना की सियासी बाजी अपने नाम कर ली है. कर्नाटक के बाद तेलंगाना में कांग्रेस 119 सीटें में से 64 सीटें जीकर दक्षिण भारत के एक और राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली है. तेलंगाना में मिली कांग्रेस की जीत और बीआरएस की हार का सियासी प्रभाव सिर्फ दक्षिण की सियासत तक ही सीमित नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति

Vikrant Shekhawat : Dec 04, 2023, 04:30 PM
Telangana Election 2023: पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस को छत्तीसगढ़ और राजस्थान अपने दो राज्यों की सत्ता गंवानी पड़ी है, लेकिन तेलंगाना की सियासी बाजी अपने नाम कर ली है. कर्नाटक के बाद तेलंगाना में कांग्रेस 119 सीटें में से 64 सीटें जीकर दक्षिण भारत के एक और राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली है. तेलंगाना में मिली कांग्रेस की जीत और बीआरएस की हार का सियासी प्रभाव सिर्फ दक्षिण की सियासत तक ही सीमित नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति पर पड़ेगा.

तेलंगाना में बीआरएस को असदुद्दीन ओवैसी का साथ भी नहीं बचा सका और केसीआर सत्ता की हैट्रिक लगाने से चूक गए. ओवैसी भले ही सात सीटें अपनी बचाने में कामयाब रहे, लेकिन केसीआर की सत्ता नहीं बचा पाए. कर्नाटक के बाद अब तेलंगाना के नतीजे बताते हैं कि मुसलमानों का भरोसा क्षेत्रीय दलों से उठ रहा है और कांग्रेस की तरफ उनका झुकाव तेजी से बढ़ रहा है. ऐसे में तेलंगाना में कांग्रेस की जीत क्या अखिलेश यादव के लिए बुरी खबर है?

मुस्लिमों का बदला वोटिंग पैटर्न

मुस्लिमों का वोटिंग पैटर्न तेजी से बदल रहा है. पहले दिल्ली के एमसीडी चुनाव में मुसमलानों ने आम आदमी पार्टी से मूंह मोड़ा और कांग्रेस के पक्ष में वोट किया. मुसलमान यह बात अच्छे से जानते हुए कि मुकाबला बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच है और कांग्रेस चुनावी लड़ाई में नहीं है. मुस्लिमों का कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग करना सियासी बदलाव के तौर पर देखा गया. दिल्ली के बाद कर्नाटक के चुनाव में मुसमलानों ने एकमुश्त वोट कांग्रेस के पक्ष में किया और जेडीएस को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया था.

जेडीएस ने 23 मुस्लिम कैंडिडेट उतारे थे, लेकिन मुस्लिम इन सीटों पर कांग्रेस के हिंदू कैंडिडेट के पक्ष में वोटिंग किया था. एचडी देवगौड़ा के मजबूत गढ़ पुराने मैसूर क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं को जेडीएस का कोर वोटबैंक माना जाता था, जहां पर 14 फीसदी मुस्लिम हैं. इस बार के चुनाव में मुस्लिम मतदाता जेडीएस को दरकिनार कर कांग्रेस पार्टी के पक्ष में एकजुट हो गए थे. वहीं, अब मुस्लिमों ने तेलंगाना चुनाव में ओवैसी की पार्टी को पुराने हैदराबाद के इलाके की सीटों पर वोट किया, लेकिन तेलंगाना के बाकी इलाके में कांग्रेस के साथ रहे.

ओवैसी के साथ से भी नहीं बची केसीआर की कुर्सी

देश भर के मुस्लिमों की रहनुमाई का दावा करने वाले असदुद्दीन ओवैसी का गृह राज्य तेलंगाना है. ओवैसी ने तेलंगाना में केसीआर का खुलकर समर्थन किया था. मुस्लिमों ने हैदराबाद में उनकी परंपरागत सात सीटों पर भरोसा जताया, लेकिन बाकी हिस्से में उनका जादू मुस्लिमों पर नहीं चला. ओवैसी के सहारे मुस्लिम वोटों की पूरी तरह से मिलने की आस अधूरी रह गई है. मुस्लिम ने बीआरएस का साथ छोड़कर कांग्रेस के पक्ष में वोट किया जबकि सीएम केसीआर ने सत्ता में रहते हुए मुस्लिमों के लिए बहुत सारे काम किए थे. इसके बावजूद मुसलमानों ने बीआरएस के बजाय कांग्रेस को वोट किया.

केसीआर ने अलग से आईटी-पार्क, शादी मुबारक जैसी योजना के बाद मुस्लिमों ने राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए उसी तरह से किनारे कर दिया, जिस तरह से कर्नाटक में जेडीएस को किया था. मुसलमानों का वोट एकतरफा कांग्रेस को मिला, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी से मुकाबला करने में क्षेत्रीय दल से ज्यादा कांग्रेस सक्षम होगी. इसलिए कांग्रेस को मजबूत करने की मंशा से वोट कर रहा है.