Vikrant Shekhawat : Feb 04, 2023, 12:19 PM
Chiranjeevi Yojana: कैंसर! मर्ज से बड़ा इलाज का दर्द है...। ‘द यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल’ की इस साल कैंसर डे की थीम ‘क्लोज द केयर गैप’ है। यानी मरीजों को समान और अच्छा इलाज मिले।राजस्थान में 80% मरीज थर्ड-फोर्थ स्टेज की दवाएं नहीं खरीद पाते हैं। सस्ते से सस्ता इलाज भी 25-30 लाख रु. का है।इसका कारण दवाओं का पेटेंट है। कंपनियां रिसर्च पर करोड़ों खर्च करती हैं, फिर मनमानी वसूली करती हैं। पेटेंट 10 साल का होता है।इस दौरान दूसरी कंपनी वह दवा नहीं बना सकती है। दूसरी परेशानी चिरंजीवी में महंगे इंजेक्शन शामिल नहीं हैं।कैंसर डे की थीम-हर पीड़ित को अच्छा इलाज मिले; पर ‘पेटेंट’ से दवा की कीमतें.....नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम, आईसीएमआर की रिपोर्ट के अनुसार 2020 से 2022 तक कैंसर मरीजों में हर साल करीब 2 हज़ार की वृद्धि देखी जा रही है।2020 में 70 हज़ार 987 मरीज़ थे वहीं 2021 में 72 हज़ार 825 व 2022 में 74 हज़ार 725 मरीज़ रजिस्टर हुए।बीएमसीएचआरसी की वरिष्ठ चेयरपर्सन अनिला कोठारी का कहना है कि 25 वर्षों से हमारा यह अनुभव रहा है कि लोग जागरूकता की कमी और जांच सुविधाओं के अभाव के चलते रोग की बड़ी हुई अवस्था में कैंसर हॉस्पिटल पहुंच पाते है। बीएमसीएचआरसी और कैंसर केयर ने ‘कैंसर जांच आपके द्वार’ अभियान शुरू किया है।टाटा मेमोरियल ह़ॉस्पिटल के डॉ. कुमार प्रभाष का कहना है कि मेडिसिन पर रिसर्च बढ़ाई जाए। जरूरी नहीं कि जो डोज़ बाजार में है उसे वैसे ही दिया जाए।किसी का डोज़ 200 मिलीग्राम है तो उसकी जगह 20 या 40 मिलीग्राम का इस्तेमाल करें और शेड्यूल बदलें।कंपलसरी लाइसेंस सिर्फ एक बार मिला, तब 2.80लाख की दवा 8800 में मिली थीदेश में कंपलसरी लाइसेंस सिर्फ 2012 में जारी हुआ था। यह बेमर्स के सोराफेनिब टॉसिलेट के लिए लेट-स्टेज फेफड़ों के किडनी के लिए था।इसमें दवा की कीमत 2,80,000 रुपए से कम होकर 8,800 रुपये तक आई थी। भारत के पेटेंट कानून किसी भी दवा, पेटेंट या गैर-पेटेंट को एक अनिवार्य लाइसेंस के माध्यम से एक सस्ती कीमत पर उत्पादन और उपलब्ध कराने की अनुमति देते हैं।3.60 लाख रुपए का एक इंजेक्शन लगा, पर पैसे रिअम्बर्स नहीं किए गए
केस-162 वर्षीय राम अवतार लंग्स कैंसर के मरीज हैं। इन्हें महंगा इंजेक्शन लगना था। डॉक्टरों ने एटेज़ोलिज़ुमाब लिखी। इसकी कीमत 3.60 लाख रुपए थी। रिअम्बर्समेंट लिस्ट में इस इंजेक्शन का नाम ही नहीं है।केस-2अमृता (36) को ओवेरियन कैंसर था। फोर्थ स्टेज में बीमारी का पता चला। समय पर दवा न मिलने से टाटा मेमाेरिअल मुंबई में इलाज कराना पड़ा। इलाज में देरी से कैंसर शरीर में फैल गया। काफी इलाज के बाद भी मौत हो गई।जांचों के लिए 75-80 हजार रुपए चाहिए। जेनेटिक एवम माॅल्यूकुलर की जांच मुंबई, हैदराबाद, बंगलुरू और दिल्ली में होती है।छोटी सर्जरी पर भी 1.50 से 2 लाख रुपए और रेडियोथेरेपी पर 60 हजार से 3.60 लाख तक का खर्च आता है। कीमोथेरेपी में 6000 से 5 लाख तक के इंजेक्शन लगते हैं।कुछ इंजेक्शन तो हर 22 दिन में और सालभर तक लगते हैं। 10 इंजेक्शन का खर्च 50 लाख तक आता है।बच्चों में फैल रहा आई कैंसरराजस्थान में अब हर महीने 60 से अधिक बच्चे हो रहे है इसका शिकारवर्ल्ड कैंसर-डे पर बच्चों को लेकर आंखें खोल देने के लिए रिपोर्ट सामने आई है। बच्चाें में अधिकांशत: (90 फीसदी में) दो प्रकार का कैंसर होता है। इनमें ब्लड कैंसर और आई कैंसर है। हैरान कर देने वाली बात यह है कि जानकारी नहीं होने की वजह से 70 प्रतिशत बच्चों के प्रारंभिक लक्षणों के बारे में माता-पिता, परिजनों को पता ही नहीं चल पाता और लगभग 65 प्रतिशत में कैंसर तीसरी से चौथी स्टेज तक पहुंच जाता है।अधिकांश लोगों को इस कैंसर के लक्षणों का पता नहीं चल पाता और वे तीसरी और चौथी स्टेज तक पहुंच जाते हैं। ऐसे में बेहद जागरूकता की जरूरत है। वर्ल्ड कैंसर डे पर आई कैंसर पर विशेष रिपोर्ट...।जागरूकता की कमी; 65% को तीसरी स्टेज में पता चलता हैआंख का कैंसर होने का सबसे बड़ा कारण जेनेटिक है। आंख में भेंगापन, पुतली का सफेद होना, जैसे बिल्ली की आंख चमकती है, वैसे ही बच्चे की काली पुतली सफेद होकर चमकने लगती है। आंख का आकार बड़ा होने लगता है। यदि बीमारी का समय पर पता चले तो 90 प्रतिशत का आंख का कैंसर सही किया जा सकता है।सरकार और चिकित्सा विभाग के पास आंकड़ा नहींबच्चों में आई कैंसर से संबंधित सरकार-चिकित्सा विभाग के पास डेटा नहीं है। भास्कर ने नेत्र रोग विशेषज्ञों से बात की तो सामने आया कि हर माह 60 से अधिक बच्चों में आई कैंसर डायग्नोस हो रहा है। वहीं देशभर में ऐसे 5500 बच्चे हैं।पहले आंख निकालनी पड़ती थी, अब ऐसा नहींआई कैंसर में इलाज संभव है। पहले कैंसर में आंख की रोशनी बचाना भी मुश्किल होता था और पूरी आंख निकालनी पड़ती थी, अब उसे बचाया जा सकता है। बशर्त है कि कैंसर किस स्टेज का है। एक्सपर्टस बताते हैं- कीमोथैरेपी से आई कैंसर का 90 फीसदी तक इलाज संभव है।आधुनिक तकनीक में इंट्रा आर्टियल कीमोथैरेपी है, जिसमें फिमोरल से केथेटर डालकर हार्ट से होते हुए आई की वेन तक ले जाते हैं। इसके बाद कीमो दी जाती है। इस तकनीक से कीमो देना बेहद महंगा है और एक सिटिंग ही दो लाख रुपए में होती है। कम से कम तीन बार मरीज को देनी होती है। यानि कि कम से कम छह लाख रुपए का खर्च इस तकनीक में आता है।
केस-162 वर्षीय राम अवतार लंग्स कैंसर के मरीज हैं। इन्हें महंगा इंजेक्शन लगना था। डॉक्टरों ने एटेज़ोलिज़ुमाब लिखी। इसकी कीमत 3.60 लाख रुपए थी। रिअम्बर्समेंट लिस्ट में इस इंजेक्शन का नाम ही नहीं है।केस-2अमृता (36) को ओवेरियन कैंसर था। फोर्थ स्टेज में बीमारी का पता चला। समय पर दवा न मिलने से टाटा मेमाेरिअल मुंबई में इलाज कराना पड़ा। इलाज में देरी से कैंसर शरीर में फैल गया। काफी इलाज के बाद भी मौत हो गई।जांचों के लिए 75-80 हजार रुपए चाहिए। जेनेटिक एवम माॅल्यूकुलर की जांच मुंबई, हैदराबाद, बंगलुरू और दिल्ली में होती है।छोटी सर्जरी पर भी 1.50 से 2 लाख रुपए और रेडियोथेरेपी पर 60 हजार से 3.60 लाख तक का खर्च आता है। कीमोथेरेपी में 6000 से 5 लाख तक के इंजेक्शन लगते हैं।कुछ इंजेक्शन तो हर 22 दिन में और सालभर तक लगते हैं। 10 इंजेक्शन का खर्च 50 लाख तक आता है।बच्चों में फैल रहा आई कैंसरराजस्थान में अब हर महीने 60 से अधिक बच्चे हो रहे है इसका शिकारवर्ल्ड कैंसर-डे पर बच्चों को लेकर आंखें खोल देने के लिए रिपोर्ट सामने आई है। बच्चाें में अधिकांशत: (90 फीसदी में) दो प्रकार का कैंसर होता है। इनमें ब्लड कैंसर और आई कैंसर है। हैरान कर देने वाली बात यह है कि जानकारी नहीं होने की वजह से 70 प्रतिशत बच्चों के प्रारंभिक लक्षणों के बारे में माता-पिता, परिजनों को पता ही नहीं चल पाता और लगभग 65 प्रतिशत में कैंसर तीसरी से चौथी स्टेज तक पहुंच जाता है।अधिकांश लोगों को इस कैंसर के लक्षणों का पता नहीं चल पाता और वे तीसरी और चौथी स्टेज तक पहुंच जाते हैं। ऐसे में बेहद जागरूकता की जरूरत है। वर्ल्ड कैंसर डे पर आई कैंसर पर विशेष रिपोर्ट...।जागरूकता की कमी; 65% को तीसरी स्टेज में पता चलता हैआंख का कैंसर होने का सबसे बड़ा कारण जेनेटिक है। आंख में भेंगापन, पुतली का सफेद होना, जैसे बिल्ली की आंख चमकती है, वैसे ही बच्चे की काली पुतली सफेद होकर चमकने लगती है। आंख का आकार बड़ा होने लगता है। यदि बीमारी का समय पर पता चले तो 90 प्रतिशत का आंख का कैंसर सही किया जा सकता है।सरकार और चिकित्सा विभाग के पास आंकड़ा नहींबच्चों में आई कैंसर से संबंधित सरकार-चिकित्सा विभाग के पास डेटा नहीं है। भास्कर ने नेत्र रोग विशेषज्ञों से बात की तो सामने आया कि हर माह 60 से अधिक बच्चों में आई कैंसर डायग्नोस हो रहा है। वहीं देशभर में ऐसे 5500 बच्चे हैं।पहले आंख निकालनी पड़ती थी, अब ऐसा नहींआई कैंसर में इलाज संभव है। पहले कैंसर में आंख की रोशनी बचाना भी मुश्किल होता था और पूरी आंख निकालनी पड़ती थी, अब उसे बचाया जा सकता है। बशर्त है कि कैंसर किस स्टेज का है। एक्सपर्टस बताते हैं- कीमोथैरेपी से आई कैंसर का 90 फीसदी तक इलाज संभव है।आधुनिक तकनीक में इंट्रा आर्टियल कीमोथैरेपी है, जिसमें फिमोरल से केथेटर डालकर हार्ट से होते हुए आई की वेन तक ले जाते हैं। इसके बाद कीमो दी जाती है। इस तकनीक से कीमो देना बेहद महंगा है और एक सिटिंग ही दो लाख रुपए में होती है। कम से कम तीन बार मरीज को देनी होती है। यानि कि कम से कम छह लाख रुपए का खर्च इस तकनीक में आता है।