Assembly Election 2023 / अब क्या करेंगे राठौड़-पूनिया-नरोत्तम? BJP की लहर होने पर भी हारे ये दिग्गज

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार बनाने जा रही है. मुख्यमंत्री का नाम तय करने के लिए बीजेपी ने तीनों ही राज्यों में पर्यवेक्षक नियुक्त तय कर दिए हैं. बीजेपी ने कांग्रेस से भले ही दो राज्य की सत्ता छीन ली हो और अपनी एमपी की सरकार बचाने में कामयाब रही है, लेकिन पार्टी के कई दिग्गज नेता अपनी सीट बचाने में सफल नहीं रहे. शिवराज सरकार में नंबर दो पोजिशन और गृहमंत्री रहे नरोत्तम मिश्रा

Vikrant Shekhawat : Dec 08, 2023, 05:47 PM
Assembly Election 2023: राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार बनाने जा रही है. मुख्यमंत्री का नाम तय करने के लिए बीजेपी ने तीनों ही राज्यों में पर्यवेक्षक नियुक्त तय कर दिए हैं. बीजेपी ने कांग्रेस से भले ही दो राज्य की सत्ता छीन ली हो और अपनी एमपी की सरकार बचाने में कामयाब रही है, लेकिन पार्टी के कई दिग्गज नेता अपनी सीट बचाने में सफल नहीं रहे. शिवराज सरकार में नंबर दो पोजिशन और गृहमंत्री रहे नरोत्तम मिश्रा, राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष रहे राजेंद्र सिंह राठौड़ और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया विधायक नहीं बन सकें.

मध्य प्रदेश में बीजेपी के दिग्गज नेता माने जाने वाले नरोत्तम मिश्रा दतिया सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी राजेंद्र भारती से करीब 7700 से अधिक वोटों से हार गए. तारानगर से बीजेपी के राजेंद्र सिंह राठौड़ कांग्रेस के नरेंद्र बेदुनिया से 10 हजार वोटों से हारे. इसी तरह सतीश पुनिया भी आमेर सीट पर कांग्रेस के प्रशांत शर्मा से चुनाव हारे. तीनों ही नेता बीजेपी के दिग्गज माने जाते हैं और सीएम पद के दावेदारों में से एक थे, लेकिन चुनावी हार के बाद उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया.

राजेंद्र सिंह राठौड़ क्यों हारे?

राजस्थान में बीजेपी की सियासत में राजेंद्र सिंह राठौड़ का अपना सियासी कद है. गुलाब सिंह कटारिया को असम का राज्यपाल बनाया गया तो उनकी जगह पर राजेंद्र सिंह राठौड़ को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था. गहलोत सरकार के खिलाफ सदन से लेकर सड़क तक मोर्चा खोलने वाले नेताओं में राजेंद्र सिंह राठौड़ का नाम प्रमुख था, जिसकी वजह से उन्हें सीएम पद का दावेदार भी माना जा रहा था. लेकिन, राजेंद्र सिंह राठौड़ तारानगर सीट से चुनाव हार गए, जो उनके लिए सियासी तौर पर बड़ा झटका है.

राजेंद्र सिंह राठौड़ चुरू जिले के हरपालसर के रहने वाले हैं. वे छात्र जीवन से ही राजनीति में हैं. 1980 में पहली बार तारानगर सीट से जनता पार्टी से चुनाव लड़े, लेकिन वो जीत नहीं सके. 1885 में पहली बार विधायक बने और 1990 में जनता दल से जीते. इसके बाद 1993 से लेकर 2018 तक बीजेपी के टिकट पर विधायक बने और बीजेपी की सरकार में मंत्री भी रहे, लेकिन इस बार उन्हें करारी मात खानी पड़ी है. बीजेपी के दिग्गज नेता और राजपूत समुदाय के चेहरा माने जाते थे, लेकिन अब जब चुनाव नहीं जीत सके है तो उनके सियासी भविष्य को लेकर कयास लगाए जाने लगे हैं.

नरोत्तम मिश्रा क्यों हारे ?

मध्य प्रदेश की सियासत में नरोत्तम मिश्रा को बीजेपी के कद्दावर नेताओं में गिना जाता है. उनकी सियासी कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शिवराज सिंह चौहान की सरकार में गृहमंत्री थे और नंबर दो की पोजिशन पर थे. मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल बेल्ट में बीजेपी के सबसे बड़े नेताओं में एक हैं, सीएम के दावेदारों में उन्हें भी गिना जाता था. दतिया सीट से चुनाव हार जाने के चलते नरोत्तम मिश्रा के सियासी भविष्य को लेकर सवाल खड़े होने लगे है, क्योंकि राज्य में विधान परिषद की व्यवस्था नहीं है, जिससे उन्हें एमएलसी बनाकर कैबिनेट में जगह दे दी जाए.

15 अप्रैल, 1960 को जन्में नरोत्तम मिश्रा को विरासत में सियासत मिली है. छात्र जीवन से ही संघ से जुड़े. डबरा सीट से 1998 से 2003 तक विधायक रहे. बाबूलाल गौर सरकार में मंत्री भी रहे. इसके बाद शिवराज सरकार में भी मंत्री रहे. मध्य प्रदेश में बीजेपी का ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले नरोत्तम मिश्रा की हैसियत ‘शिवराज सरकार’ में नंबर दो की थी. 2020 में बीजेपी की सरकार बनी तो आपरेशन लोटस का आरोप नरोत्तम मिश्रा पर कांग्रेस ने लगाया था. इसके चलते उन्हें शिवराज सरकार में गृहमंत्री का पद दिया गया था, जिससे वो लगातार सुर्खियों में रहे. हालांकि, चुनाव हार जाने के बाद अब बीजेपी उन्हें किस भूमिका में रखेगी.

सतीश पूनिया क्यों हारे?

राजस्थान में बीजेपी के दिग्गज नेता और गहलोत सरकार के खिलाफ लगातार मोर्चा खोलने वाले सतीश पूनिया आमेर सीट से इस बार चुनाव नहीं जीत सके, जो उनके लिए सियासी तौर पर बड़ा झटका है. चूरू जिले के रहने वाले पूनिया छात्र जीवन से ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और 1989 में राजस्थान विश्वविद्यालय से छात्रसंघ महासचिव भी चुने गए. इसके बाद बीजेपी युवा मोर्टा के विभिन्न पद पर रह काम किया. 2000 में पहली बार सादुलपुर सीट से उपचुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके.

2013 में भी किस्मत आजमाई, लेकिन जीत नहीं मिली. 2018 में पहली बार सतीश पूनिया पहली बार विधायक बने. केंद्रीय नेतृत्व के साथ बेहतर तालमेल और संघ परिवार के के साथ अच्छे संबंध के चलते बीजेपी के राजस्थान अध्यक्ष नियुक्त किए गए. पार्टी की कमान संभालते ही पूनिया आक्रमक तरीके से गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और वसुंधरा राजे के बराबर अपना गुट तैयार कर लिया. गहलोत सरकार के खिलाफ जनता के बीच एंटी इंकंबेंसी बना पाने में पूनिया कई मौकों पर कमजोर भी दिखाई दिए हैं, जिसके चलते सीएम के दावेदारों में उन्हें भी गिना जाने लगा था. हालांकि, अपनी सीट नहीं बचा सके तो अब उनके सियासी तौर पर बड़ा झटका लगा है.

पूनिया-नरोत्तम-राठौड़ का क्या होगा?

मध्य प्रदेश में नरोत्तम मिश्रा और राजस्थान में राजेंद्र सिंह राठौड़ व सतीश पूनिया के चुनाव हार जाने के बाद उनके सियासी भविष्य को लेकर कयास लगाए जाने लगे हैं. बीजेपी अपने तीनों दिग्गज नेताओं को किस तरह से एडजेस्ट करेगी, क्या उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव लड़ाएगी या फिर राज्यसभा के जरिए संसद में भेजेगी. इसके अलावा बीजेपी संगठन में भी जगह दे सकती है, क्योंकि तीनों ही नेता काफी तेज-तर्रार है. लंबा राजनीतिक अनुभव है. नरोत्तम मिश्रा पांच बार के विधायक रह चुके हैं तो राजेंद्र सिंह राठौड़ छह बार विधायक रहे हैं. बीजेपी के संगठन में भी कई पदों पर रह चुके हैं, जिसके चलते माना जा रहा है कि पार्टी संगठन में जगह मिल सकती है.